संदेश

2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कोशिश तो कर

बीते कटु पल भुलाने मुश्किल हैं कोशिश की जा सकती है। बीते पलों से उभर पाना मुश्किल है कोशिश की जा सकती है। कटु अनुभव से सतर्कता मुश्किल है कोशिश की जा सकती है। कोशिशें ही परिवर्तन में सहायक हैं कोशिश दर कोशिश की जा सकती है। अनुभव से तुरंत मोड़ देना मुश्किल है कोशिश करना हमारे हाथ है, अपना हाथ जगन्नाथ बन जा कटुता से उभर पाना मुश्किल है कोशिश करके तो देख,प्यारे! मानव में ही अद्भुत गुण हैं मानवीय गुणों को अनुभव तो कर प्यारे जग में कुछ भी मुश्किल नहीं एक बार कोशिश करने की हिम्मत तो कर प्यारे! अरुणा कालिया

हक़ीक़त की चादर

सपनों से बाहर निकल हक़ीक़त की चादर ओढ़  कर्म-क्षेत्र का योद्धा बन जीत अपनी अधिकृत कर। तू अर्जुन है अर्जुन बनकर मार्ग अपना प्रशस्त कर भटकना तेरा काम नहीं मीन अक्ष पर ध्यान धर। अरुणा कालिया

सपने में सपना

सपने में सपना-- एक रात सपने में देखा एक सपना चांद मिलने आया धरा पर था छाया। आश्चर्य हुआ इतना किंकर्तव्यविमूढ़-सा मेरा मन विचलित-सा हैरां-परेशां डोल रहा मन हतप्रभ-सा,  शरमाया घबराया कुछ समझ न पाया। यथार्थ देख समक्ष कल्पना देख प्रत्यक्ष तैयार न था मन संभाल न पाया पल। वापिस जाने को किया विवश कर-युगल विनती कर क्षमा मांग खड़ी विकल। अरुणा कालिया

ल्हासा की ओर

प्रश्न 1. थोड्ला के पहले के आखिरी गांव पहुंचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश में भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका,क्यों? उत्तर - थोड्ला के पहले के आखिरी गांव तक लेखक के साथ मंगोल भिक्षु सुमति था। उसकी उस गांव में जान-पहचान थी, जिसके कारण भिखमंगो के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला। दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश में घोड़ों पर सवार होने के बावजूद लेखक को ठहरने का उचित स्थान नहीं मिला क्योंकि उसकी वहां कोई जान-पहचान नहीं थी। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि लेखक शाम के समय वहां पहुंचा था और उस समय वहां लोग छड् पीकर होशो-हवास में नहीं थे। प्रश्न-2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था। उत्तर उस समय तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण वहां लोग लाठी की तरह पिस्तौल और बंदूक लेकर घूमते थे। हथियार बंद इन लोगों से यात्रियों को अपने लूटे जाने के साथ-साथ जान से हाथ धोने का भय बना रहता था। प्रश्न-3 लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियो...

पगडंडियां

                  पगडंडियों से गुजर नदी की ओर जाता था दो किनारे साथ-साथ देखा किया करते थे,  लहरों का गिरना उठना  लहराना साथ-साथ। आज भी वह पगडंडियां  हैं जहां तहां। मगर नदी का लहराना  थम सा गया है। नदी का स्वच्छ निर्मल  जल गंदला गया है। वह रास्ता जो पगडंडियों से गुज़र, नदी की ओर जाता था आज भी........। अरुणा कालिया

नवीं कक्षा, क्षितिज,प्रश्नोत्तर , दो बैलों की कथा, लेखक: मुंशी प्रेमचंद

प्रश्न 1 . कांजीहौस मेंं पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी? उत्तर : ताकि यह पता लगा सकें कि कहीं कोई जानवर भाग तो नहीं गया है या कोई जानवर मर तो नहीं गया है। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि जब कैद पशुओं के मालिक उन्हें छुड़ाने आएं तब उनसे उतने दिनों का हर्जाना ले सकें। प्रश्न 2. छोटी बच्ची के मन में बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया? उत्तर :-बैलों के साथ किए जा रहे व्यवहार से छोटी बच्ची को स्वयं की छवि नज़र आ रही होगी क्योंकि वह स्वयं भी ऐसे ही व्यवहार को झेल रही थी, उसकी सौतेली मां उसे भूखा रखकर प्रताड़ित करती थी।। प्रश्न 3 . कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति विषयक मूल्य उभर कर सामने आए हैं? उत्तर :-नीति से तात्पर्य है-लोकाचार की वह पद्धति, जिससे अपना भी भला हो और दूसरों का भी भला हो। १. किसी को मारना धर्म के विपरीत है। २. स्त्री जाति पर हाथ नहीं उठाना चाहिए। ३. गिरे हुए और निहत्थे पर वार नहीं करना चाहिए। ४.स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष करते रहना चाहिए।    स्वतंत्रता पाने के लिए अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं       जिसके लिए उन्हें तैयार रहना च...

आहट

बाहर का अनगिनत शोर और उनके आने की आहट पहुँच पायेगी मुझतक!! अंतर्मन की आवाज़ हौले से कह गई कानों में बाहर की आवाजों को अनसुना करके तो देख। तेरे मन में ही है बड़ी निराली ताक़त, सात समुंदर पार की आवाज़ बड़ी आसानी से सुन पाती है। एक बार सुनने की कोशिश और फ़िर देख उसके आने की आहट! उसके दिल की धड़कन भी स्पष्ट सुन पायेगा। अरुणा कालिया

मैं मानव हूँ

मैं मानव हूँ  सुगढ़ विचारवान अपने पर्यावरण को स्वच्छ सुंदर सुरक्षित आवरण ओढ़ा रहा, मैं मानव हूँ गिद्ध नहीं हूँ विचारवान हूँ अपनी ही धरा को नोच नहीं रहा हूँ। मैं मानव हूँ अपनी सुंदर धरा को और आकर्षक बनाने में अपना सहयोग दे रहा हूँ । मैं मानव हूँ जीवन को ललित कलाओं से सजा रहा हूँ। मैं मानव हूँ विचारवान हूँ। अपने विवेक से अपनी वसुंधरा को सुरक्षा प्रदान करता हूँ। नई तकनीक से दुनिया को  विकास की ओर ले जा रहा हूँ  मैं मानव हूँ गिद्ध नहीं हूँ विचारवान हूँ। अरुणा कालिया

रिश्ते

रिश्तों को निभाने में कसर न रखना वे निभाएं या न तुम जिम्मेदारी से पीछे न हटना। कर्म जो हमारा कर्म करते जाना रिश्ते हैं हमारे हमें ही इसे निभाना। अरुणा कालिया

वह पुष्प

ओस की बूंदों से लथपथ था वह पुष्प कातर निगाहों से उसने मुझे ज्यों देखा मानो सर्दी से कांपती सांसों को अपने आगोश में लेने को कह रहा था वह पुष्प। उसकी सुंदरता देखने में मैं था मशगूल कहाँ कर पाया मैं उसका दर्द महसूस। दूर-दूर से आए थे लोग उसे देखने ओस लिपटा पुष्प दर्द से था मजबूर। अरुणा कालिया

यादें

यादों का पिटारा पीछे छूट रहा है बढ़ रहे कदम, मन पीछे छूट रहा है, यादों के बादल धुंध से छा रहे हैं बढ़ते कदम रुकना चाह रहे हैं। अधूरा सा लागे, है सब कुछ मेरे पास फ़िर भी अछूता सा लागे। कह न पाऊं मन की बात हैं शब्द नहीं मेरे पास। अरुणा कालिया

मुस्कुराने की वजह

मुस्कुराने के लिए। खिली धूप,खिली प्रकृति खिली चाँदनी,बिछी चांदी धरती मुस्कुरा उठी। धरा आधार मुस्कुराता मन प्रकृति से जुड़ा प्रकृति की गति लय ताल झूम उठता संसार इतनी वजह काफ़ी है मुस्कुराने के लिए। अरुणा कालिया

मन का उजाला

मन का उजाला बाहर उजाला भी मन का ही उजाला है वरना ठोकर लग जाती है। ठोकरें मन का तम दूर कर सचेत करती ठोकरें तो रोशनी में लग जाती हैं। अरुणा कालिया

धनतेरस

धनतेरस की हार्दिक बधाई दीपावली के दीप जलें रोशन रहे सारा जहां,  रोशन करे सारा जहां। धन बरसे लक्ष्मी मां कृपा करने आई। तन मन स्वस्थ रहे कोरोना को करो चारों खाने चित्त यहां। धन बरसे कृपा बरसे  महामाई कृपा करने आई। धन तेरस की हार्दिक बधाई, बधाई।। अरुणा कालिया 🙏🙏

ये दुनिया खानाबदोश

ये दुनिया खानाबदोश जीवन कहां यहां अपनी ही धुन में जी रहे,समय कहां यहां। भाग रहे सब भाग रहे,बस भाग रहे यहां वहां पता नहीं रुकना कहां, अंतिम छोर कहां यहां। दिल लगाने की कोशिश की लाख मगर अजनबी सी दिखी हर बार दुनिया की डगर। न बातें अपनी,न आँखों का छूना अपना न स्पर्श अपना-सा, न दुआएं अपनी-सी। न इंतज़ार था हमारे लिए,न फ़िक्र कहीं भी दिखावा ही दिखावा चारों ओर है दिखता। ये दुनिया खानाबदोश,परायी-सी लगती। मुसाफ़िर बन जैसे तैसे जीने को बाध्य करती। दिल लगाने की कोशिश लाख की मगर दिखती नहीं दुनिया में कोई अपनी सी डगर।

शोर

बाहर का अनगिनत शोर और उनके आने की आहट पहुँच पायेगी मुझतक!! अंतर्मन की आवाज़ हौले से कह गई कानों में बाहर की आवाजों को अनसुना करके तो देख। तेरे मन में ही है बड़ी निराली ताक़त, सात समुंदर पार की आवाज़ बड़ी आसानी से सुन पाती है। एक बार सुनने की कोशिश और फ़िर देख उसके आने की आहट! उसके दिल की धड़कन भी स्पष्ट सुन पायेगा। अरुणा कालिया

लम्हे

 Romantic song बिखरे हुए लम्हों को  समेट तो लो एक बार, मीठे लम्हे याद करो एक बार, ज़िंदगी से प्यार हो जाएगा। समेटे लम्हों से बनी तस्वीर  में प्यार भरो एक बार, फ़िर देखो ज़िंदगी  तुम्हारे प्यार के गीत गा रही है। लबों पर तुम्हारे प्रेम के  तराने सजा रही है, प्यार से देखो एक बार,प्यार की कसम प्यार हो जाएगा। अरुणा कालिया

सोच

सकारात्मक होना  समस्या का सरल साधन। सकारात्मक सोच  विघ्नों को हर लेने की ओर सबसे पहला कदम । सकारात्मक सोच  नकारात्मकता को पूर्णतः विध्वंस कर देने का दम रखती। अतः सोच का सकारात्मक होना  जीत की ओर पहला कदम है। अरुणा कालिया

रंग-मंच

ज़िंदगी के रंग-मंच पर जूझते दो किरदार एक खुशी बाँटता, खुशियां पाता। दूजा ग़म बाँटता बदले में ग़म पाता। कुछ लोग हंसते कुछ लोग रोते हंसते रोते समझ न पाते, ज़िंदगी के रंग-ढंग निराले। रंग-मंच पर युग्म रंग उंडेले। सुख-दुख का काफ़िला यूं ही बढ़ता, बढ़ते बढ़ते दिन महीने साल, सदियों में बदलते ज़िंदगी युग्मों पर ठहरी समझते समझते युग बीते। अरुणा कालिया

तुम्हारा मूड

हर रोज़ तुम्हारे मूड का बिगड़ना और मेरा सोचना, शायद आज किसी वजह से तुम परेशां हो। हर रोज़ तुम्हारी पसंद का काम करना फ़िर भी तुम्हारे मूड का बिगड़ना। अंदर मन को शायद यह बात पता थी, तुम मुझे पसंद नहीं करते, खुशफ़हमी मन में पाल जिए जा रही थी। हर बार मेरा तुम्हें मनाने की कोशिश करना और तम्हारा भन्नाना अंदर ही अंदर मुझे तोड़ता जा रहा था। शायद.. शायद,,, शायद करते करते ज़िंदगी का इतना लंबा सफ़र आज तुम्हारे साथ तय कर लिया है। अब तो जैसे मन ने स्वीकार कर लिया है तुम्हे तुम्हारे बिगड़े मूड के साथ। अब तो तुम्हें मनाना भी बंद कर दिया है। इस शरीर में आत्मा कहीं मर चुकी है मशीन हूँ मैं अब खाली-खाली आँखें हैं,भावना मर चुकी है। अरुणा कालिया

बारबर शॉप

मूंछों पर ताव मार कर दिखता बंदा हैंडसम ऐसा गेटअप चाहिए तो मेरी शॉप पे कम कम दाढ़ी के कट्स फ़्री हैं, दिखना रॉनगिरी है केशन का है ज़माना, ऐसा गेटअप चाहिए तो..... 1.मॉडर्न सेलून है यूनिवर्स, बन जा बाबू हैंडसम     स्पा बड़ा है फ़ेमस ब्यूटिफुल है मेकअप    शेम्पू भी करवा लो रेशम से केश बनवालो    दाढ़ी कट तो फ़्री है, दिखना स्टाइलगिरी है     बारबर का है बोलबाला , ऐसा गेटअप चाहिए तो....  2.रणबीर का लुक बनवाकर बन जा बाबू हैंडसम     आज के दौर का गेटअप, मिट जाएगी टेंशन     सोच न तू अब कुछ भी, दिखना केशधारी है     फैशन का है ज़माना, ऐसा गेटअप चाहिए तो..... 3. मोदीकट बनवाकर बन जा बाबू हैंडसम     मोदी जी सा यूनीक बन,बनजा आज का आइकन    बाबू जी भी सेलिब्रिटी हैं दिखना मोदीगिरी है    मोदी जी का है ज़माना, ऐसा गेटअप चाहिए तो.....     

राम बसै

सीता राम मन बसै रावण बिगाड़ कछु न पावै तीर राम हृदय से छोड़ें रावण दहन हुई जावै। राम राज करैं रावण करे अट्टहास बुराई जीत न पावै सिर उगें चाहे हजार। ज्ञान विज्ञान धरा रहै मन में मैल बसाए अज्ञानी प्रेम-दीप धरै हृदय राम बस जाए।। अरुणा कालिया

क़लम का कमाल

क़लम का कमाल एक एक शब्द-बूंद सागर सी पुस्तक गागर में सागर चरितार्थ करें। अज्ञानी ज्ञानी बने अभद्र भद्र बने असभ्य सदाचारी। क़लम का कमाल शब्द-बूंद सागर भरे। अरुणा कालिया

क़िस्मत

हमारी क़िस्मत हमारी ही है इसे सोने मत दीजिए। दरवाज़ा खटखटाइए, दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा। क़िस्मत इसी इंतज़ार में है, वह हमें जगाना चाहती है। अरुणा कालिया

बाधाएं

बाधाएं आती हैं हमें रोकने के लिए नहीं जागरूक करने के लिए। बाधाएं आती हैं विवश होने के लिए नहीं अधिक कर्मठ होने के लिए। बाधाएं हमारा रास्ता नहीं रोकतीं, अपितु रास्ते सुझाती हैं। बाधाओं का स्वागत करो,ये हमारे मस्तिष्क का व्यायाम करवाती हैं। अरुणा कालिया

नवल किरण

नवल किरण का स्वागत करने को आतुर धरा निशा काली अंधकूप से निकलने को आतुर धरा। अरुण अश्व रथ सवार रवि ज्यों-ज्यों छूता धरा तम का फैला साम्राज्य धराशाई होता देख धरा। क्षण-क्षण अंधकूप-बेड़ियों से स्वतंत्र हो रही धरा प्रतिक्षण रवि रश्मियाँ छोड़े चाँदी में नहाती धरा। कण-कण प्रकाशित हो चमक रही देखो यह धरा। दंभ टूटा तम भाग-खड़ा, दुम दबाकर, छोड़ यूं धरा। मनु विद्युतीय छड़ी ने खदेड़ दिया हो धरा से ज़रा धरती अंबर झूल रहे बयार की पींग बन सखी-सखा। अरुणा कालिया

सब्ज़बाग़

एक दिन विशेष बाक़ी सब्ज़बाग़  एक दिन की चांदनी फ़िर अंधेरी रात। देना है सम्मान तो दृढ़ संकल्प रखो जीवन भर तीखे बाण नहीं प्रेम रखो साथ रख जीवन संगिनी बनाकर रखो वादा करके जीवन भर निभाना सीखो। मान की चाह नहीं, तेरे साथ की है चाह अर्धांगिनी समझो, निभाऊंगी तेरा साथ। एक दिन विशेष नहीं जीवन विशेष हमारा सब्ज़बाग़ नहीं सच्चा बाग़ हरियाला हमारा। अरुणा कालिया

जन्मदिन

जन्म दिन मुबारक हो आज का दिन खूबसूरत हो मन की मुराद पूरी हो दिन खुशनसीबों वाला हो। आज के दिन आई थी परी हमारे घर,घर चहकने लगा हमें साधारण से खास बना दिया माता पिता का गौरव दिला दिया।

तारों की चांदनी

अमावस्या की रात में तारों की थी चांदनी।  चमक पर तारों का इतराना था लाज़मी। धरती पर पड़ती  अपनी चमक को देख, तारों ने जश्न की रात  बड़े यत्न से मना ली। चांदी ही चांदी थी सब  तरफ़ रात थी सुहानी। अमावस्या की रात में  तारों ने मनाई दीपावली। कुछ तारे उदास थे, खुशी के पीछे छिपे  ग़म के साए थे। कुछ समझदार तारे बोले कल की चिंता क्यों करते हो कल जो होगा देखा जायेगा आज तो खुशी का पल  जी लो,न जाने दो,  जी भरकर आनंद लो। छोटी-छोटी खुशियों से यूं मुंह मोड़ोगे, बड़ी-बड़ी खुशियों से भी हाथ धो लोगे। अरुणा कालिया

सौंदर्य

सौंदर्य का खज़ाना हो लुटेरों को आमंत्रण न दिया करो। तुम्हारे सौंदर्य से स्वर्ग का इंद्र भी रश्क़ करता है। भूखों से बचो, भोली बनकर नहीं शेरनी सी दहाड़ा करो। तुम्हारा सौंदर्य तुम्हारी सौम्यता है नग्नता नहींं। भक्षकों से बचो, ग्रास बनकर नहीं लक्ष्मीबाई-सी खूंखार बनो। ओछी पोशाक में आधुनिकता नहीं कामुकता भड़कती है। भड़की कामुकता से गरीब बच्चियों को शिकार होने से बचा लो। हे भारतीय नारी तुम मां हो, बेटों को शिक्षित करो सम्मान पहला सबक हो नारी का ऐसा तुम सृजन करो। अरुणा कालिया

नर नारायणी

रिश्ता नर और नारायणी का युगों से प्रतीक अर्द्धनारीश्वर का रिश्ता श्रृंगार रस से भरपूर सा वियोग संयोग संगम दोनों का प्रतिपक्ष है रिश्ता मात्र प्यार का दोनों का रिश्ता शिला आधार सा कामदेव और रति ने संसार बसाया बसंत बहार का मौसम है बनाया न अधिक न कोई कम है भाया कभी पतझड़ कभी बहार है लाया संतुलन में रख जो रिश्ता निभाया स्वर्ग से सुंदर हो धरती की काया। अरुणा कालिया

ऐ मालिक

ऐ दो जहां के मालिक! न हाथ छोड़ो न साथ , तेरे जहां के मुसाफ़िर-प्राणी  भटक रहे बिन प्रेम मालिक! गुमराह को राह दिखाओ, पीड़ित नेह-मरहम लगाओ। कामदेव को शांत करो अब सृष्टि-नियम का मान करो बस इतना ही रति-मीत सरसाओ। जहां में अब बसंत ले आओ। ऐ दो जहां के मालिक! विपदा में घिरी आज तेरी मादा बढ़ रहा कामुकता का ज़माना अति हो चली अब तो मालिक! नदी सा ठहराव ले आओ कामदेव पर लगाम लगाओ घुटन भरा जीवन बना है पर्यावरण स्वच्छ कराओ। मर्यादा मत भंग कराओ। ऐ दो जहां के मालिक! कर्मशील प्राणी रचा है बिन-कर्म-फल चाह रहा है मति फ़िरी प्राणी की माधव! सीधी राह दिखाओ माधव! तेरी रचना भटक रही मालिक! भटकन से निजात दिलाओ जीवन-मंत्र का पाठ पढ़ाओ निज अर्जुन को राह दिखाओ। अरुणा कालिया

सपने बुनो

सपने सजाना अच्छी बात। सपने साकार करना प्रगति की पहचान। समाज से जुड़ना अच्छी बात नियमों का पालन जागरूकता की बात। अपनों का मान अच्छी बात दूसरों का सम्मान सभ्यता की पहचान। सभ्य होना अच्छी बात सभ्यता का वहन करना अच्छे नागरिक की पहचान। सपने बुनो जागरूक बनो सम्मान करो सभ्य रहो सभ्यता पहनो देश भक्त हो देश के सच्चे नागरिक बन देश का मान बढ़ाओ। अरुणा कालिया

दूरी

आसमान से धरती की दूरी घटती नहीं। धरती की पहुंच आसमां तक पहुंचती रहे । असीम आसमां फैला बुला रहा उड़ने के लिए। पांव को धरती का आसरा मिला रहे रहने के लिए धरा-आसमा में दूरी बनी रहे फ़िर से उड़ान के लिए। अरुणा कालिया

मेरे अपने

अपनों से ही चाहत  अपनों की ख़्वाहिश  अपनों के बीच रहकर अपनों के साथ जीना ही है अब मेरी ख़्वाहिश । अपनों के दिलों में थोड़ी जगह अपने लिए पाने की है ख्वाहिश। धन ऐश्वर्य सब के बदले थोड़ा सा अपनापन पाने की ख़्वाहिश ही अब बन गया है लक्ष्य।। अरुणा कालिया 

बेटी

बेटी अब अल्हड़पन छोड़ो शिकारी घात लगाए बैठा है उसकी नज़र में तू छोटी नहीं बड़ी या बूढ़ी भी नहीं है। उसकी नज़र में तू तो है बस एक हाड़ मांस की लड़की । तुझे बड़ा बनना होगा स्वयं को समझना होगा। शिकारी की नज़र से बचना होगा,बचना ही नहीं सबक भी सिखाना होगा। तेरी मर्ज़ी बिना उठे हाथ जो उस हाथ को उखाड़ फेंकना होगा। अरुणा कालिया

मूक दृष्टा

भरी सभा में तब भी सब मूक दृष्टा थे आज भी पहचाने चेहरे, सब राजधृष्टा हैं। तब गोविंद आए थे वस्त्र रूप में,द्रौपदी! आज गोविंद भी बन बैठे मूक दृष्टा हैं। गोविन्द की चुप्पी दे रही इशारा तुझको शस्त्र उठाना पड़ेगा बन सबला तुझको। झांसी की रानी ने दुर्गा बन ललकारा था तलवार उठाई, दुश्मन भी डरा, थर्राया था। समय नहीं है किसी पर आस लगाने का उठो, टूट पड़ो समय है सिंहनी-सी दहाड़-का। अरुणा कालिया

सुबह की लालिमा

हर सुबह सूरज की लालिमा धरा को छूती है हर सुबह सूरज की रश्मियाँ धरा को नहलाती हैं हर सुबह सूरज की रोशनी नई ऊर्जा धरा को देती हैं पर हर सुबह मन की प्रवृत्ति सबकी समान न होती है राक्षसी प्रवृत्ति राक्षसी ही रहती परिवर्तित न होती है। शोधकर्ताओं को शोध करना है, विषय बड़ा गंभीर है। अरुणा कालिया

आज का युवा

आज का युवा बड़ा दु:साहसी किसकी टोपी किसको पहनानी किसकी इज़्ज़त कब उछालनी बिंदास अपनी बात है मनवानी। आज का युवा बड़ा दु:साहसी। अरुणा कालिया

सख्त पीड़ा

निर्भयाओं को इतनी सख़्त पीड़ा!! पीड़ादाताओं से इतना कोमल व्यवहार!! बात कुछ हज़म नहीं हो रही। चलो ऐसा कानून बनाएं, दंड देने का अधिकार पीड़िता को दिलाएं। कृष्ण पुराण का स्मरण कराएं। जैसे को तैसा कराएं क्योंकि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। अरुणा कालिया

पीड़ित, शोषित

एक स्थान पर लिखा पढ़ा-- "मानव जाति से यदि पुरुष जाति  को खत्म कर दिया जाए तो ही  बलात्कार से पीड़ित बच्चियों के लिए पश्चाताप कम होगा"। परंतु मेरा मानना इससे भिन्न है किसी जाति को ख़त्म करना हल नहीं मानव जाति के संतुलन में कोई कम नहीं। नर-नारी का संतुलन अनिवार्य है महत्त्व में न कोई कम न कोई अधिक है ज़रूरत समाज में परिवर्तन की अवश्य है। पालन-पोषण दोनों की न भिन्न है नर-नारी का सम्मान परस्पर सम है समाज का नियम पालन अभिन्न है। बेटा बेटी परिवार के अंग अभिन्न हैं। परिवार में शिक्षित सभी अवश्य हैं पर दंभ से परे शिक्षित अवश्य हों। डिग्री के महत्व में सभ्यता अवश्य हो। अरुणा कालिया

शादी की पच्चीसवीं सालगिरह

ममता राहुल शादी की सालगिरह मुबारक::::;::: पच्चीसवीं सालगिरह पर दिल से निकली दुआ यही चिड़िया सी चहकती रहे तब भी  जब हो शादी की सालगिरह पचासवीं। बालिका सी किलकारती खुशी से झूम उठती  ऐसी है ममता हमारी प्यारी न्यारी मतवाली। ज़रा सा छेड़ दो जो बचपन की तान पुरानी, चहक चहक जाए लेकर मुस्कान मतवाली। प्रज्ञा लावण्या और वासु जिनकी संतानें महक महक जाए बगिया के फूल निराले। राहुल ने जीवन साथी बनकर संवारा इस तरह रफ़्तार पकड़ चल पड़ा क़िस्मत का काफ़िला सलाम ऐसी जोड़ी को सहस्र दुआएं ऐसी जोड़ी को। अरुणा कालिया

यदि कोई

कोई बात यदि आपको ग़लत लगती है, पहले उसकी तह तक जाओ, समझो मनन करो,जांच परख कर भी यदि आप अपनी बात पर अडिग हैं तो अपनी बात पर अड़ जाओ,लड़ जाओ इतिहास में अपना नाम दर्ज करा जाओ सच का साथ देने वाले ही इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाते हैं, ग़लत के तलवे चाटने वालों का नाम देखा है इतिहास में?? अरुणा कालिया

बिखरे हुए लम्हे

बिखरे हुए लम्हों को  समेट तो लो एक बार, लम्हों की मिठास मन में  बसा तो लो एक बार, उनकी ऊर्जा की बारिश  होने तो दो एक बार, ऊर्जा की तदबीर लबरेज  होने तो दो एक बार। बन रही तस्वीर लम्हों की,  देख तो लो एक बार, समेटे लम्हों से बनी तस्वीर  में प्यार भरो एक बार, फ़िर देखो ज़िंदगी  तुम्हारे प्यार के गीत गा रही है। लबों पर तुम्हारे प्रेम के  तराने सजा रही है।। अरुणा कालिया

हमराज़

मुझे भी साथ ले लो हमनशीं हमसफ़र बन हमराह के हमराज़ बनो नाहक मसाइब से बचो राह तदबीर कर दिलशाद करो, राह मुसाहिब बन रहज़न से बचो। ख़ालिक सा इकराम तुझमें देखूं उन्स मुजाहिरा करूं तेरे सजदे में रूह की पैरहन बन साथ ले चलो। अरुणा कालिया

दिल वापिस कर दो

न जज़्बातों की कद्र है अब, न दिल का तराना न संग बिताए लम्हे हैं न दिलों का आशियाना। अब न यादें हैं बाक़ी न क़ीमती पलों का अफ़साना। मेरा दिल वापिस कर दो, मत रखो हक मालिकाना।। जब हम साथ थे लोगों में चर्चित था हमारा याराना। अफ़सोस रहेगा सदा रख न पाए दिल का नज़राना।। टुकड़ों में बदले तुम-मैं,कब अलग हुआ 'हम' हमारा नादां थे शायद हम भी कच्ची उम्र का था प्यार हमारा।। अरुणा कालिया

तुम्हारा मूड

हर रोज़ तुम्हारे मूड का बिगड़ना और मेरा सोचना, शायद आज किसी वजह से तुम परेशां हो। हर रोज़ तुम्हारी पसंद का काम करना फ़िर भी तुम्हारे मूड का बिगड़ना। अंदर मन को शायद यह बात पता थी, तुम मुझे पसंद नहीं करते, खुशफ़हमी मन में पाल जिए जा रही थी। हर बार मेरा तुम्हें मनाने की कोशिश करना और तम्हारा भन्नाना अंदर ही अंदर मुझे तोड़ता जा रहा था। शायद.. शायद,,, शायद करते करते ज़िंदगी का इतना लंबा सफ़र आज तुम्हारे साथ तय कर लिया है। अब तो जैसे मन ने स्वीकार कर लिया है तुम्हे तुम्हारे बिगड़े मूड के साथ। अब तो तुम्हें मनाना भी बंद कर दिया है। इस शरीर में आत्मा कहीं मर चुकी है मशीन हूँ मैं अब खाली-खाली आँखें हैं,भावना मर चुकी है। अरुणा कालिया

कुछ पल

कुछ पल  सोच में क्या पड़े, वे समझने लगे,तन्हा हैं हम। उनकेे सवाल के जवाब में  सवाल क्या सोचने लगे वे समझने लगे नासमझदार हैं हम।। उन्हें क्या पता उनके पांव तले की ज़मीं खिसक गई होती, जो उनके सवाल के जवाब में सवाल पूछ लेते हम।। अरुणा कालिया

तू ज़िंदा है

ऐ ज़िन्दगी तू जश्र मना देख तू ज़िंदा है यह क्या कम है, खुशियाँ मना ज़िंदगी के दिये ग़मों को मात दे दे, ज़िंदगी की नाक में दम कर दे तू ज़िंदा है यह क्या कम है। हर दुविधा को दिमाग़ से हल कर दिमाग़ लगा मार्ग चुन दुविधा को मात दे दे अपनी राह चल। तू ज़िंदा है यह क्या कम है। अरुणा कालिया

हमसफ़र

मुझे भी साथ ले लो हमनशीं हमसफ़र बन हमराह के हमराज़ बनो नाहक मसाइब से बचो राह तदबीर कर दिलशाद करो, राह मुसाहिब बन रहज़न से बचो। ख़ालिक सा इकराम तुझमें देखूं उन्स मुजाहिरा करूं तेरे सजदे में रूह की पैरहन बन साथ ले चलो। अरुणा कालिया 

पड़ाव

ज़िंदगी में आए अनेक पड़ाव हर पड़ाव पर लिया विश्राम हर विश्राम में बुने सुंदर सपने हर सपने ने दिया एक घाव हर घाव में था क्रांति सा भाव। घाव छोटा या बड़ा अनदेखा न करना घाव से करो एक दुश्मन सा बर्ताव घाव सदा से पीड़ा देता,नहीं आराम घाव को फेंको जड़ से उखाड़। अरुणा कालिया

बेरुख़ी

उनकी बेरुख़ी पर अब तो  होंठ भी सी लिए हमने, आँखों में रुसवाई जो देखी बरसना बंद कर दिया हमने। एक आह सी सुलगती है  अब भी दिल ही दिल में, सिसकने की आवाज़ को भी  बाहर लाना बंद कर दिया हमने। अरुणा कालिया

भरोसा

               'भरोसा' भरोसा होता भी है अपनों पर भरोसा तोड़ते भी अपने ही हैं। समझ अपनी पर भरोसा रखो न टूटेंगे अपने,न टूटेंगे रिश्ते। हमारे अपने जब साथ होते हैं, हम दिमाग़ पर ताला लगा लेते हैं सब कुछ उन पर छोड़ बैठ जाते हैं बस यहीं हम ग़लत हो जाते हैं। हमारे अपने भी ग़लती कर सकते हैं। उनकी ग़लती को हम नि: संकोच भरोसा तोड़ने का नाम दे बैठते हैं। चलो ग़लती सुधारें, रिश्ते संवारें भरोसे पर भरोसा रख, भरोसा करें। अरुणा कालिया

शहर में

शहर में हवा कुछ ऐसी चली समां कुछ सहमा-सहमा सा है। शहर में हवा कुछ ऐसी चली कारवां कुछ ठहरा-ठहरा सा है। यूं तो ज़िंदगी सांस ले रही शहर में आदमी कुछ डरा-सा है। कार्य हो रहे सभी यहां,पर हर आदमी बच कर चल रहा-सा है। शहर में हवा कुछ ऐसी चली हवा को भी छान कर पी रहा-सा है। अरुणा कालिया

क्षितिज

दूर क्षितिज पर तिमिर का घेराव जब हाहाकार कर शोर मचाए मनमंदिर में उठी उम्मीद की किरण धैर्य धारण कर धीरज बंधाए। बस कुछ पल और मचा ले शोर हाहाकार कर, ऐ क्षितिज तिमिर! उजाले की एक किरण ही है काफ़ी तेरा तम भगाने को। अरुणा कालिया

हिंदी दिवस

अपनी बात को स्पष्टत:  दूसरों तक पहुंचाना दूसरों की बात समझना। भाषा ही अहम् किरदार है। जब से बोलना सीखा हिंदी को माध्यम बनाया। हिंदी से भाव सीखे हिंदी में ही बातें करते, जीवन को समझा जबसे हिंदी को ही अपनाया। अरुणा कालिया

नारी प्रेम

नारी प्रेम देह से बढ़कर दिल की गहराइयों से जुड़ा होता है। पुरुष के प्रेम में सच्चाई देख पलकें बिछा दे, नारी। और पुरुष का प्रेम! मात्र होंठों का रसपान, देह के सुख तक सीमित क्यों है? आँखों की गहराई में छिपा प्रेम वह देख नहीं पाता, स्त्री देह की कामना से परे प्रेम को समझने वाली पाखी नज़र उसके पास शायद है ही नहीं। अरुणा कालिया

रोशनी का आह्वान

सूरज तो सूरज है रोशनी फैलाता हरदम प्रथम आह्वान करो, तुम। संसार नहाता प्रतिदिन रोशनी से भर लबालब, अज्ञानता दूर करो, तुम। रोशन कर लो अपना जहां मन का सूरज जगा लो। ज्ञान-प्रकाश मुखरित कर लो प्रथम अंतर्ज्ञान जगा लो, तुम। अरुणा कालिया

भटकते रास्ते

भटकते रास्ते हैं, रोशनी का आह्वान करो, तुम! एक नन्हीं किरण भी मार्ग प्रशस्त कर सकती है। मन से आंतरिक बल का आह्वान करो, तुम! घना अंधेरा भी रोशनी का प्रतिबिंब हो सकता है। भटके मार्ग में अपनी समझ का आह्वान करो, तुम! प्रकृति की भाषा उंगली पकड़ राह सुझा सकती है। कितना भी हो कठिन मार्ग,आत्मबल न खोना, तुम! आत्मबल ही भटकते रास्ते से बाहर निकाल सकता है। अरुणा कालिया

फूल

--'फूल'  फूल नाज़ुक सा बचपन है फूल नटखट सा मचलता है मन-सा हवा संग उड़ान भरता तारों से परे जाने की चाह रखता। फूल वादियों को सुरभित करता क्रोधित हो जाए तो घाव भी करता भंवरे को आकर्षित कर आलिंगन में भरता। साज श्रृंगार कर फ़िज़ाओं को महकाता। फूल शब्द छोटा पर महत्त्व बड़ा रखता धरती का श्रृंगार कर खुद पर इतराता मानव को समझाता,छोटा हूँ, पर काम बड़े आता हूँ। अरुणा कालिया

आँखों से छलकता है

प्रेम रूह की गहराई है प्रेम आँखों से बयां होती है प्रेम रूह के समुंदर में पलता है आँखों से मोती बन छलकता है प्रेम दो नैना हैं साथ जगते हैं, साथ पलक झपकते हैं, साथ ही पलक बंद कर मनन करते हैं। प्रेम दो किनारे हैं, साथ चलते हैं सुख-दुख सब साथ झेलते हैं। पवित्रता की वह मिसाल है नैनों से पूछो, आंसू साथ बहाते हैं खुशी भी साथ मनाते हैं प्रेम राधा है,प्रेम कृष्ण है प्रेम अलौकिक है, पारदर्शी है। प्रेम मनुष्य है,प्रेम मनुष्यता है। प्रेम की गहनता समझ से परे है जिसे समझ आ जाए वह कृष्ण है। अरुणा कालिया

तारों की चांदनी

अमावस्या की रात में तारों की थी चांदनी।  चमक पर तारों का इतराना था लाज़मी। धरती पर पड़ती  अपनी चमक को देख, तारों ने जश्न की रात  बड़े यत्न से मना ली। चांदी ही चांदी थी सब  तरफ़ रात थी सुहानी। अमावस्या की रात में  तारों ने मनाई दीपावली। कुछ तारे उदास थे, खुशी के पीछे छिपे  ग़म के साए थे। कुछ समझदार तारे बोले कल की चिंता क्यों करते हो कल जो होगा देखा जायेगा आज तो खुशी का पल  जी लो,न जाने दो,  जी भरकर आनंद लो। छोटी-छोटी खुशियों से यूं मुंह मोड़ोगे, बड़ी-बड़ी खुशियों से भी हाथ धो लोगे। अरुणा कालिया

ख़ामोशी या अंतर्मन की खुशी

प्यार में ख़ामोशी का अपना एक अलग मुक़ाम है अंतर्मन की खुशी के आनंद का एक अलग रुआब है।। प्यार प्यारा सा अहसास है इंसानियत का आभास है मानवता के सद्गुणों से भरपूर जीवन का आकार है।। प्यार पूजा है इबादत है अपने महबूब को समर्पित है ईश्वर की दी सबसे नायाब प्रस्तुति मानव को अर्पित है।। अरुणा कालिया

प्यार की ओर

 चलो प्यार की ओर,जहां तक रोशनी ले जाए। चलो सांस की ओर जहां सांस में सांस आए।। चलो उस राह की ओर जो तुम्हें तुम तक ले जाए। चलो उस राह पर तुमसे तुम्हारा परिचय करवाएं।। चलो उस दिल से मिलने जिसने दिल चुरा लिया। चलो उससे मिलने जो दिल के बदले दिल दे गया।। चलो उस मंज़िल पर जहां प्यार का मंज़र नज़र आए। चलो उस प्यार से मिलने जिसमें हमें खुदा नज़र आए। अरुणा कालिया

मेरी चाहत

मेरी चाहत बरसात की बूंदें नहीं जो बरसतीं भिगोतीं चली जाती मेरी चाहत धूप की किरण नहीं  आती रोशनी भरती चली जाती। मेरी चाहत ऋतुओं को झेलती धरा है, मौसम में साथ निभाती घर की छत है, मौसम की मार से बचाती, आवरण है, मेरी चाहत राह में छोड़ जाने वाली नहीं यह रग रग में समाने वाला रक्त-कण है। अरुणा कालिया

कथानक

सच्चे और समझदार में  तथा  सच्चे और बेवक़ूफ़ मेंं  कम अंतर है। सच्चाई में समझदारी  मिल जाए तो  कथानक में निखार आ जाता है सच्चाई में बेवक़ूफ़ी  मिल जाए तो  कथानक धड़ाम से भूमि पर  आ जाता है। अरुणा कालिया 

गुरु ज्ञान

गुरु ज्ञान का प्रकाश है, गुरु ज्ञान का सागर है जितने गहरे उतरते जाओ, थाह न पा अपार है।। ज्ञान-सागर अथाह है इसकी थाह न जाने कोई। गुरु का अनुसरण करे, भवसागर पार करे सोई। गुरु ज्ञान व्यर्थ न जाही, जीवन सरल-सुगम बनाही। अज्ञानी ज्ञानी हो कर, प्रकाश की ज्योति फैलाही।। अरुणा कालिया

सुबह की किरण

सुबह की किरणों को देखो मन में उतरने का आह्वान करो खुद में आत्मसात करो उड़ते पंछियों को देखो उनकी उड़ान में खुद को शामिल करो फ़िर देखो रोम रोम में नई  स्फ़ूर्ति पाओगे रोशनी की किरण नई उम्मीद में पाओगे सुबह की किरण से प्यार करो खुद को रोशनी में पाओगे। ऐसी रोशनी निराशा के तम को दूर कर मन में उम्मीदों के दिए  प्रज्वलित करेगी, स्वछंद उड़ान भर स्वछंद आकाश में गोते लगाकर असंख्य जन में जीने का संचार पाओगे। अरुणा कालिया

सकारात्मक सोच

सकारात्मक होना समस्या को दूर करने का सबसे सरल साधन है सकारात्मक सोच ही विघ्नों को हर लेने का सबसे पहला कदम है। सकारात्मक सोच नकारात्मकता को पूर्णतः विध्वंस कर देती है। अतः सोच को सकारात्मकता में बदलना ही जीत का पहला कदम है। अरुणा कालिया

खुशियाँ आती नहीं, हमें खोजनी पड़ती हैं

खोजने से तो भगवान भी मिल जाते हैं, निराश मन को आस-किरण मिल जाती है। पाना-खोना मन की मजबूती-मजबूरी है। ग़म में डूबे रहना हमारी ही सोच होती है। मन से ही मजबूती है, मन ही कमज़ोरी है। मान लो तो हार है, नहीं तो जीता संसार है। ग़मग़ीन दुनिया में ही मत डूबो बाहर आओ खुशियाँ पाने के लिए उन्हें ढूंढना पड़ता है। बिन कोशिश के तो रब भी सहाय नहीं होते। ऐसा होता तो सभी यूंही प्रयासरत नहीं होते। अरुणा कालिया

प्रश्न निर्माण करो

ज्ञान प्राप्त करने से पहले प्रश्न निर्माण करो। जिज्ञासा को बढ़ाने दो, और प्रश्न निर्माण करो। सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी बनना है तो प्रश्न निर्माण करो। जिज्ञासा को और बढ़ाओ उत्तर अवश्य मिलेगा। तुम्हारे प्रश्न में ही उत्तर हैं प्रश्न पर विचार करो। जिज्ञासा को और बढ़ाओ प्रश्न निर्माण करो। अरुणा कालिया

आज सुबह

आज सुबह ने दिया बारिश को न्यौता बारिश ने स्वीकारा मज़बानी का न्यौता। झमाझम धमाधम बरसा पानी मेघ दहाड़ा। कण-कण भीगा धरती हुई अब बेहाला। सड़कें, खेत-खलिहान सब सब ऐसे डूबा जैसे प्रकृति के प्रकोप का विस्फ़ोट हुआ। अरुणा कालिया

ठहराव

मुसीबतें झेलता व्यक्ति ठहराव के पड़ाव में रुककर जब चलता है एक नई शक्ति के स्फुरण के साथ पुनः खड़ा होता है। एक ऐसे जलज़ले को जन्म देता है जिसमें प्रलय से नवनिर्माण होकर नए सूरज का प्रादुर्भाव होता है। अरुणा कालिया

यादों के पन्ने

ज़िंदगी की यादों के पन्ने बिखरते हुए देखा जब जब समेटना चाहा और बिखरते गए। कठिन डगर होती है यादों के पन्नों से गुज़रना। ज़िंदगी की क़िताब के पन्नों को लिखने में उम्र गुज़र जाती है हर लम्हा लिखते-लिखते। अरुणा कालिया 

दर्पण

तारीफ़ का कण मन में रख उम्मीद रख जी रही अरसे से युग बीत रहा कमियां देखें सब तारीफ़ शब्द से इतना परहेज! दर्पण देखूं हर कोण से निहारूं कमी कोई खुद में न ढूंढ़ पाऊं। मन के कोने से आई आवाज़ प्रकृति सुंदर सब कहें,क्या राज़। प्रकृति ज़रूरत सबकी पूरी करें संसाधन जुटाती भूख मिटाती। इससे सुंदर भाव दिखलाती ख़ास। अरुणा कालिया

स्वतंत्रता दिवस पर बधाई

स्वतंत्र आवाज़ वही जो आगे बढ़ने को प्रेरित करती है। सहायता वही जो संकट में घर तक पहुंचाती है । कड़क आवाज़ वही जो दुश्मन को सीमा से खदेड़ती है। बुलंद आवाज़ वही जो राष्ट्र के जन जन तक पहुँचती है। देशभक्ति वही जो स्वार्थहीन होकर देश को समर्पित है।

एक अपील

एक अपील-- स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं हम सभी अपने अपने तरीके से अपने देश का मान अवश्य करते हैं, कोई कम या अधिक।  अपने देश का अपमान कोई नहीं करता,पर हम सब अपने अपने काम में इतने व्यस्त हैं कि जाने अनजाने में कितनों का अपमान कर देते हैं। परन्तु पंद्रह अगस्त को या उसके बाद भी यदि आपके या हमारे हाथ में तिरंगा झंडा आए तो कृपया उसे ज़मीन पर न गिरने दें या फिर नीचे गिरा हुआ तिरंगा झंडा देखें तो उसे ज़रूर उठा कर कहीं ऊँचे स्थान पर रख दें। यही जाग्रति देश के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी। जय हिन्द वन्देमातरम् अरुणा कालिया 

कृष्ण जन्माष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई🙏🙏 राधा-कृष्ण प्रेम संदेश फैलाया प्रेम की पराकाष्ठा धर्म स्थापना सुदामा संग बचपन की मित्रता अर्जुन को षडयंत्र से सदा चेताया। ईश्वर निर्मल निश्छल प्रेम में बताया। हृदय की कोमलता में ही समाया कठिन तपस्या की ज़रूरत नहीं ईश्वर सच्ची एक पुकार पर आते आडंबर में न ढोल-मंजीरे में, ईश्वर भक्त की भक्ति भाव से आते। अरुणा कालिया

जीवन मंत्र

जीवन का सार जीवित रहकर कठिनतम परिस्थितियों से उभरना जीवन बचाकर जीवन आगे बढ़ाना जीवन जीते हुए लक्ष्य की ओर बढ़ना। जीवन मंत्र के ध्येय को जीवित रखना।

प्रकृति के रंग

 प्रकृति ने संसार को रंगों से रंग दिया कलम ने रंगों को नाम दिया। प्रकृति ने संसार को अलंकृत किया कुसुमित सुरभित रूप दिया।

नाथ

अनाथ और सनाथ में एक बात सामान्य है नाथ शब्द दोनों में समान रूप से प्राप्य है नाथ साथ है,पर नाथ से प्रसन्नता अप्राप्य है। नाथ मृग की कस्तूरी है, पर ढूंढ़ना अक्षम है। अरुणा कालिया

पत्थर

पत्थर को अपनी ठोकर से न हटा पत्थर को अपनी ताक़त तो बना। पत्थर सदा चोट ही नहीं करते हैं, पत्थर बंधु बन सहाय भी होते हैं। पत्थर ठोकर का सबब शत्रु नहीं मील का पत्थर बन रास्ता बताते। तू मील का पत्थर का सबब बन भूले राही का सहाय बन राह दिखा। पत्थरों पर एक बार चलकर देख कठिनाइयों को पार करना सिखाते। अरुणा कालिया

मौसम

मौसम का मिजाज़ बदलने लगा है कहर ढाने का इरादा लगने लगा है। महाराष्ट्र में बना बहती नदी का नज़ारा नाव शहरों गलियों में, वीभत्स नज़ारा। पहाड़ों पर भी पहाड़ों का खिसकना जारी हुआ, जीना सबका बेहाल हुआ। मलबा मिला नदी का भी रंग बदला मिजाज़ देख दिल दहलने लगा है प्रकृति- प्रकोप समझ आने लगा है। मनुष्य का कृत्य, प्रकृति का संताप दोनों संतुलन निश्चित बिगड़ने लगा है। अरुणा कालिया

गुणगान श्री राम जी का

जिस मन में श्री राम बसे उस मन में बैर नहीं जग सारा मित्र समान शत्रु शत्रुता छोड़ जाहीं। राम नाम में आठ सिद्धि नव निधि छिपी जान सके तो जान राम नाम लगन लगी। राम भक्त हनुमान हैं जाके हृदय राम सोई जग वैरी न होई जाके सिर पे राम। राम नाम सदा सुखदाई राम भक्त कहां दुखपाई। सुख-दुख एक समाना ज्ञानी होए सोई जान पाई। राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट अंत काल पछताएगा प्राण जाएंगे छूट। सिया राम का विश्वास मन मजबूत करें निर्बल के सहाय बन सबल समूल बनें। राम नाम की ताक़त बड़ी निराली जिसने जानी वही है अद्भुत ज्ञानी। रामलला ठुमक-ठुमक चलैं,गिरत-उठत जात ह्वै। मात पिता देख देख मन हरषै,वारी वारी जात ह्वै। राम नाम का बाण जिसके पास है जगत विजेता बन जग का आधार है। मन का मंदिर है तुम्हारे पास राम बसे हैं मन मंदिर में खास। राम की महिमा अपरम्पार है, राम नाम जिह्वा पर उसका बेड़ा पार है,उसपर राम की कृपा अपार है। अरुणा कालिया

अयोध्या नगरी

मैं अयोध्या नगरी,फूली नहीं समाई है नवनिर्माण पर खुशी दुगुनी हुई जताती, रामजन्म भूमि आज सैंकड़ों वर्ष पश्चात इतिहास दोहराते फ़िर से जगमगाई हैं । राम मंदिर नवनिर्माण नींव समारोह से जन जन मंगल गीत की गूंज आई है। मै अयोध्या नगरी,फूली नहीं समाई है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों नींव रख, एक और इतिहास रच आई है। मैं अयोध्या नगरी फूली नहीं समाई है। अरुणा कालिया

राम लला की जन्मस्थली

राम नाम से गूंज रहा जन जन में शोर मचा रघुवर की झाँकी सजी मंगल गीत गाओ सखी। ठुमक ठुमक पांव धरें पैंजनी बाजत डोल रहे अवध के बालक चारी। राम लला जी की जन्म स्थली  दृश्य अद्भुत छटा भव्य मनोहारी जगमगाई जन्मस्थली लागे निराली राम लला आ रहे ठुमक ठुमक पग धरी। भूमि पूजन समारोह रच रहा इतिहास अयोध्या के खुले भाग्य भारत में आज सुनवाई हुई अयोध्या परिसर की आज मंगल गीत गा रहे सब नर नारी आज बोलो जय श्री राम जय श्री राम जय जय। 492 वर्ष बाद रचा जा रहा इतिहास भव्य भूमि पूजन समारोह बधाई बाजे। बधाई बधाई बधाई बधाई बधाई बधाई अरुणा कालिया

शब्द-सौष्ठव

शब्द-सौष्ठव निराला मतवाला चंदा सा सुंदर , चंदन सा ठंडा शब्द मौन रह प्रभावित करते मीठे बोल बन मन मोह लेते। कड़वे बोल बाण सी पीड़ा देते। शब्दों का बल देखो शब्द ही  परायों को अपना बना लेते , शब्द पल में पराया बना देते शब्द ही हमारे मित्र, वही शत्रु शब्द-सौष्ठव मित्र सा बल देते सहायक बन सबल बना देते शब्द-बाण बन निर्बल बनाना  कदापि  इनका ध्येय नहीं। अरुणा कालिया

दोस्ती

दोस्ती किताबों में लिखी कहानी नहीं दोस्ती किसी नाटक का किरदार नहीं दोस्ती एक सच्चाई है,हमारा अक्स है। दोस्ती अनमोल है खुदा की नियामत है खुदा की दी हुई अनमोल इबादत है। बहुत से बदनसीब हैं दुनिया में ऐसे जिन्हें दोस्त की दोस्ती नसीब नहीं खुदा की इबादत जिन्हें नसीब नहीं हम भी उन्हीं बदनसीबों में से हैं जिन्हें खुदा की ऐसी नियामत नसीब नहीं। हमारा भी दोस्त कोई,हमराज़ नहीं। यदि आपका कोई दोस्त है,हमराज़ है नाराज़ न करना,रूठकर जाने न देना। अरुणा कालिया 

गुनहगार

कहीं रातें गुनहगार हैं  दिन की  कहीं दिन गुनहगार हैं  रातों के।  कहीं सूर्य चन्द्र के कहीं चन्द्र  सूर्य के।  कहीं न कहीं कोई न कोई  गुनहगार है,  हर जो किसी न किसी की  राह रोकता है।  अरुणा कालिया

पुस्तकों से प्रेम

मन में नहीं आते अच्छे विचार पुस्तकों का रुख कीजिए। सूक्ति उक्ति सद्विचार सब मिलें पुस्तकों का रुख कीजिए। व्यवहार कुशलता स्निग्धता नीति कुशल बनना चाहो पुस्तकों से दोस्ती कीजिए न बनें पुस्तकें दीपकों का घर ज्ञान समेटा कीजिए स्वयं दीमक बन टटोलो पुस्तकें बनो ज्ञानी आचार्य शिक्षक बनो आधुनिक वेद रचयिता, सब संभव हो जाए,शर्त पुस्तकों से दोस्ती कीजिए, पुस्तकों का रुख कीजिए। पुस्तकों से प्रेम कीजिए। अरुणा कालिया

पुष्प संवार लेते हैं

पुष्प सजा लेते हैं धरती को अपने भिन्न भिन्न रंगों से मानव के मन पर उतर कर अपने रंग में रंग लेते हैं। पुष्प संवार लेते हैं धरती को अपने रंग बिरंगे भावों से मानव के मन पर उतर अनेक भावों में भर देते हैं। पुष्प महका देते हैं धरती को अपने भिन्न भिन्न इत्रों से मानव के मन पर उतर अनेक खुशबुओं से भर देते हैं। अरुणा कालिया

इंसान इंसान से दूर हुआ

कभी कोई मजबूरी रही होगी कभी कोई हादसा हुआ होगा तभी इंसान ख़ुदग़र्ज़ बना होगा जज़्बे- काफ़िला लफ़्ज-नश्तरों से कभी तो बेइंतहा घायल हुआ होगा। तभी इंसान इंसान से दूर हुआ होगा। समय की मलहम ने अब चेताया है इंसान अपने आप से लज्जाया है ग़लती का अहसास ख़ुद ने करवाया है अब जब ज़मीर अपना शोर मचा रहा ज़ोर ज़ोर से इंसान को झकझोर रहा। समय की पुकार है ग़लती हुई सुधार करो सुधार करो, सुधार करो, सुधार करो। अरुणा कालिया

अबला नहीं सबला

जन जन में रच रही अपनी सुंदरतम बात कर्म शील बन रही कर कर लंबे हाथ। इतिहास रचा स्वयं बन बन सबला अवतार झांसी की रानी तू अवतरित उठाकर तलवार। कलाई पहनें चूड़ियां भर भर कर श्रृंगार आस न छोड़ी तूने कितना भी हो अपमान। स्वाभिमानी है तू सबला बनने की ठानी जग समझे लाख अबला शक्ति तुझमें निराली

उन दिनों की बात है.…

मुझे बहुत अच्छे से स्मरण है वह 14 नवंबर का दिन था।उस दिन हमारे स्कूल में खेल दिवस मनाया जा रहा था। मैं तब नवीं कक्षा में पढ़ती थी।उस दिन मैंने भी खेल में भाग लिया था।सौ मीटर की रेस में भी और बाधा दौड़ में भी। सौ मीटर की दौड़ में दूसरे स्थान पर रही । उसके पश्चात् मुझे बाधा दौड़ में हिस्सा लेना था। ए,सुन! मैंने हैरानी से जिधर से आवाज़ आई थी, देखने लगी,वह मुझे मेरी बांँह पकड़ कर एक तरफ़ ले गई ,एक लड़की मेरी ही कक्षा की थी,जो थोड़ी बड़ी थी, पर हमारी ही सहपाठी थी, मैंने थोड़ा खीझते हुए अपना हाथ छुड़ाते हुए पूछा,"क्या है सुमन? तुम मुझे बाहर क्यों ले आई हो, वहाँ बाधा दौड़ की प्रतिस्पर्धा होने वाली है"। "अरुणा मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम इस दौड़ में शामिल मत होओ," सुमन ने बड़ी बहन की तरह हक जताते हुए कहा ।  मैं उससे छिटककर दूर हो गई और एक तरह से चिल्ला कर बोली," क्या है सुमन, तुम मुझे बाहर क्यों निकाल कर लाई हो,वहाँ बाधा दौड़ शुरू हो गई है" । सुमन ने मेरे कान में फुसफुसा कर कहा,"तेरे कपड़े गंदे हो रहे हैं "।  "हां,तो क्या?,"मैंने बड़ी लापरवाही ...

कोशिशें

काव्याँचल मंच को नमन 🙏 कविता का शीर्षक है --- 'हमारी कोशिशें.. ' कोशिशें खुद को खुद से मनाने की कोशिशें खुद को खुद से जताने की | कोशिशें पस्त मत होने देना , खुद को खुद से यकीं दिलाने की , बहुत सी बातें बाकी हैं अभी खुद को खुद से परिचित कराने की | हैरान मत होना अपने अंदर कुछ अपरिचित सा कुछ अनजाना सा बदलाव देखकर , कुछ जाना सा ठहराव जानकर | बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी , खुद को खुद से परिचित कराने की बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी | अपने देश से गंदगी हटाने की बेकार प्लास्टिक को समूल मिटाने की चलो नया करें आविष्कार वैज्ञानिक विधि से मिटा कर, खुद को उदाहरण बनाएं चलो| बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी , खुद को खुद से परिचित कराने की| बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी | पहल खुद से ही कर लो क्यों देखें हम औरों को दूसरे भी शायद इसी इंतज़ार में हैं किसी का अनुसरण करने को , कुछ ऐसी कर जाएं पहल अनुकरणीय बन जाएं खुद हम  | बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी, खुद को खुद से परिचित कराने की बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी | प्रण लें खुद को खुद से वचनबद्ध होने का , न फेंकेंगे न फेंकने देंगे कोई भी ट...

शिक्षिका की शिक्षा जो आज भी याद है

मुझे बहुत अच्छे से याद है कि बरेली में मैं और मेरे भाई एक ही स्कूल में पढ़ते थे। मैं दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा तक वहाँ पढ़ी।उस स्कूल का नाम है- द चिल्ड्रन्स एकेडमी,बरेली होटल के पास। यही स्कूल का नाम था,बल्कि 'है ' कहना अधिक उपयुक्त है।वहाँ एक हिंदी विषय पढ़ाने के लिए मैडम थी उनका नाम था  "भटनागर मैम" ।हम सब बच्चे उन्हें मिस भटनागर कहकर बुलाते थे।उनकी पढ़ाई हुई हिंदी अब तक मेरे काम आ रही है। उन्होंने मात्राओं का इतना अच्छा ज्ञान दिया कि मैंने कभी भी मात्राओं की वजह से डाँट नहीं खाई।वे हमेशा से मेरे हृदय में सम्मान के साथ रही हैं। अरुणा कालिया

मन का डर

लेखिका :अरुणा कालिया शीर्षक - मन का डर हाँ , मेरे मन में भी अनहोनी का डर रहता है ,जैसा कि आजकल कोरोना वायरस का डर परेशान किये हुए है, हर समय एक अनजाना सा डर मन में रहता ही है |बेटा बाहर जाए तो भी, पति घर से बाहर जाएं तब भी मन डरा ही रहता है | आज भी दोपहर में बेटा और बेटी दोनों ही पास की मार्केट से घर की कुछ जरूरी चीज़े लेने चले गए |वापिस आने पर मैने दोनों को बाहर ही खड़ा कर दिया | जो सामान लाए थे, सामान सेे भरे थैले को घर की दहलीज़ के अंदर फ़र्श पर रखवा कर मैने दोनों बच्चों को सेनेटाईज़र से हाथ साफ़ करवाए | उसके बाद डिटोल के घोल को (जोकि पहले से ही एक स्प्रे वाली बोतल में बनाकर तैयार रखा था) उन दोनों को सिर से पाँव तक स्प्रे से एक तरह से नहला ही दिया | इसके बाद दोनों बच्चे घर के अंदर दाखिल हुए, बेटा राघव कहने लगा, 'मम्मा आप कुछ ज़्यादा ही डरते हो, दीदी से पूछ लो, हमने मास्क भी लगाकर रखा था, है न दीदी, बता न  मम्मी को, '|दोनों बच्चों की बात करने तक मैं दो गिलासों में गरम पानी पीने के लिए ले आई, और दोनों बच्चों के हाथ में गरम पानी वाले गिलास पकड़ा दिए और फटाफट पी जाने को कहा...

बचपन की शिक्षा

लेखिका :अरुणा कालिया शीर्षक   बचपन की शिक्षा (कहानी में दिया गया नाम काल्पनिक है)। मैं स्कूल में हिंदी शिक्षिका के रूप में कार्यरत हूंँ ,जब कभी स्टाफ़ की कमी होती है तो किसी दूसरी अध्यापिका को एडजस्ट कर दिया जाता है। ऐसे ही एक दिन मेरा भी एडजस्टमेंट एक छोटी कक्षा में लगा।कक्षा दूसरी में मेरी ड्यूटी थी। वहांँ मुझे कोई विषय तो पढ़ाना नहीं था, इसलिए मैंने बच्चों के साथ बातचीत शुरू की। बातों ही बातों में बच्चे कहानी सुनने की ज़िद करने लगे। मैं भी कहानी सुनाने को तैयार हो गई। मैंने कहानी सुनानी शुरू की। एक बार आप जैसा एक बच्चा था।उसकी मम्मी ने भी उसे स्कूल में पढ़ने भेजा।उस बच्चे का नाम था राहुल।अब राहुल भी रोजाना पढ़ने स्कूल जाने लगा। एक दिन उसे किसी दूसरे बच्चे की एक सुंदर सी रंग-बिरंगी पेंसिल दिखाई दी। राहुल को पेंसिल बहुत अच्छी लगी।उसे लगा कि अगर मैं माँगूँगा तो यह मना कर देगा।यह सोचकर उसने उस पेंसिल को चुपचाप अपने बैग ‌(बस्ते) में रख लिया।घर जाकर उसने अपनी मां को वह सुंदर पेंसिल दिखाई।और कहा," माँ मैं यह पेंसिल स्कूल से लाया हूँ"। माँ ने कहा,"अरे वाह!यह तो बहुत सुं...

मेरा परिचय

मेरा परिचय मेरा परिचय कुछ खास नहीं धरोहर के नाम पर भी कुछ पास नहीं | अरुणा के नाम से जानते जो मित्रगण गुड्डी नाम भी मेरा, यह उन्हें ज्ञात नहीं | विवाहिता हूँ,श्रीमती कालिया कहलाती हूँ| पति राजेन्द्र कालिया के दो बच्चों की माँ हूँ | परिवार मेरी धरोहर है ,आन बान शान से जीती हूँ | मायके की बात करूँ तो पिता उमा शंकर की बेटी हूँ | चार भाइयों की इकलौती बहन कहलाती हूँ| बरेली में शिक्षा पायी दिल्ली मेरी ससुराल बनी | अब फरीदाबाद में अध्यापन के कार्य में कार्यरत हूँ हिंदी-संस्कृत विषय की अध्यापिका हूँ | पहली कविता अंग्रेज़ी में लिखी,बारहवीं कक्षा में पढ़ती थी, ईश्वर से कुछ नाराज़ थी , इसीलिए लिख डाला था , "Cruel Lord, cruel Lord ,we will not say you God...... "
ढूँढ के लाओ मन का सुकून , जाने कहाँ खोया मन का सुकून | नैना ढूँढें, इत -उत डोले, चैन न पावे, चित्त का चैन चुरा ले गया,जान न पावे | मेघा की गर्जन विचलित करे, बिजुरी चमकै जैसे दंतिया दिखावे | खीझ बढ़ावे, समझ न अब कछु आवे | मन घबराए, कहीं से उनकी छवि दिख जावे | (तरसे नैना कहे, रे मेघा ! तू ही कर कछु उपाय | मेरे साजन को ले आ कहीं से , पाँव पड़ूँ मैं तोए |) विरहन बाट जोह रही, न सूझे कछु उपाय | मन नहीं ठहरे, फीके सब अब पकवान लगें | वैद्य चिकित्सक सब व्यर्थ, मरज न जाने कोए | सखि सहेली सब बैरी लगै ,हितैषी न लागै मोए | हाथ जोड़ विनति करूँ सहेली प्रेम न करयो तोए | सुख-चैन सब जात हैं , फिर भी प्रेम प्रिय काहे होए | अरुणा कालिया

इश्क़ प्यार

इश्क़ प्यार मुहब्बत पर्याय श्रद्धा समर्पण, त्याग सहाय | रब का नूर इश्क़ में समाए बिन इनके इश्क़ न कहलाए| एक पुरुष एक स्त्री समाना आत्मीय आकर्षण एकसार करे | पूर्ण समर्पण श्रद्धा कहावे , मुहब्बत में तू ही तू रह जावे स्वयं का कछु भान न रह पावे| खुद को खोकर प्रीत बनी कैसी यह प्रीत की रीत बनी , समर्पण में ही खुशी पावै स्वार्थ-भाव लेश न रह जावै | राधा कृष्ण ,कृष्ण राधा हो जावै | यही प्रीत की रीत कहलावै |

आज की नारी

आज की नारी , कभी न हारी   स्नेह लुटाती , स्नेह की मारी  अपमान का घूँट  पी-पी कर   जीवन के कटु  अनुभव पाती|   आज की नारी  ममता लुटाती  संतान की आँखों  के कोर तक  स्वयं का अक्स  ढूंढ़-ढूंढ़ कर  अपना वजूद  बचाती रहती|

ऐ अजनबी

#काव्यांचल_पोस्ट_कार्ड विषय- #ख़त उनके नाम विधा - पद्य तिथि-01.02.2020 ऐ अजनबी तेरा एक स्पर्श उर को छू गया था मेधावी मस्तिष्क को पता भी न चला था हम तो दुनियावी कर्मों में लिपटे थे किसी और ही दुनिया में सिमटे थे| अनदेखा करते रहे हम हर बार यादों में उसने सिर उठाया जितनी बार| बेचारा मेधावी मस्तिष्क जीता रहा धड़कन की ताल सुने बिना | अब जब दम घुटने लगा मस्तिष्क धीमा पड़ने लगा | मानो अब मस्तिष्क की बत्ती जगी धड़कन अब स्पष्ट सुनाई देने लगी| दिल के हाथों मजबूर हुआ बेचारा हारा हुआ सा वह जान पड़ता था | दिल में उभरती तस्वीर अजनबी की अब साफ़ स्पष्ट दिखने लगी थी | मस्तिष्क को अब जाकर भान हुआ था उभरती तस्वीर है मुहब्बत, जान पड़ा था | उस तस्वीर पर मस्तिष्क का ध्यान गया जब दोनों हाथों से उसने सिर पकड़ लिया तब | दिल अजनबी-ओर खिंचता रहा था पगला मस्तिष्क अपनी ही ईगो में जी रहा था अब जब तस्वीर साफ़ -स्पष्ट हो गयी है मस्तिष्क ने भी अपनी हार स्वीकार की है | तुम्हारे लिये एक अजनबी अरुणा कालिया

चाँद का धरातल

तिथि -31.03.2020 सरोवर - पंपा सरोवर क्रमाँक - 61 टीम का नाम - तीसरी आँख टीम के सदस्य -1.अरुणा कालिया 2.निखिल कुमार 3. विजय लक्ष्मी राय आयोजन - पंचम दिवस विषय - हँस_गाँव की हँसौली शीर्षक - चाँद का धरातल (1) चंदा की बिंदिया सजाए, सितारों जड़ी साड़ी पहने आकाश गंगा में तैरती मछली धरती को निहारे, धरातल को तरसे | (2) शेर चीता अपने पंखों से नभ में विचरण करते, दाना चुगते, अठखेली करते , साँझ होते अपने घोंसले में लौट आते | (3) चाँद के धरातल पर रहते मानव चाँद से पृथ्वी ग्रह को देखें | पृथ्वी के जीव एलियन कहावें कल्पना में आकार बनावें | (4) नभ सागर में अनेक जीव, तैरते-उभरते इठलाते गाते गीत | रात्रि में पृथ्वी को निहार- निहार बच्चों को सुनाते कथा की रीत | (5) चाँद के वैज्ञानिक अनुसंधान में लगे पृथ्वी-जलवायु-खोज अभियान में लगे रॉकेट में आते पृथ्वी का चक्कर लगाते , धरातल के गुरुत्वाकर्षण से घबराते | (6) एक दिन आखिर खोज लिया वैज्ञानिक ने यह जान लिया | पृथ्वी पर भी चिह्न मिले जल है घास है, प्रमाण मिले | (7) चाँद पर खुशी की लहर उठी खोज-अनुसंधान में होड़ मची | भिन्न-भिन्न देश के व...

शेर और तोमचा

कक्षा-आठवीं पाठ-शेर और तोमचा विधा-गद्य (कहानी) शिक्षण-उद्देश्य – ज्ञानात्मक- 1. पाठ को एक ही अन्विति में पढ़ाया जाए। 2. पाठ की विशेषताओं की सूची बनाना। 3. नए शब्दों को समझकर छात्रों के शब्द-भंडार में वृद्धि करना। 4. छात्रों को पाठ के लेखक तता उनके साहित्यिक जीवन के बारे में जानकारी देना। 5. छात्र पाठ में प्रयुक्त भाषा तत्वों एवं कठिन शब्दों के शुद्ध रूपों को पहचान कर उनके बारे में प्रत्याभिज्ञान व 6. प्रत्यास्मरण कर सकेंगे 7. साहित्य के गद्य विधा (कहानी ) की जानकारी देना । 8. प्राकृतिक सौंदर्य तथा प्रेम-भाव से परिचित कराना। 9. कहानी की प्रवाहमयी भाषा की जानकारी छात्रों को देना। बोधात्मक- 1. आदर्श वाचन करते समय उच्चारण की दृष्टि से कठिन शब्दों को श्यामपट्ट पर लिखा जाएगा। 2. प्रकति तथा जीव-जंतुओं के प्रति आसक्ति-भाव जाग्रत करना। 3. लेखक के उद्देश्य को स्पष्ट करना। 4. प्रकृति के सौंदर्य को समझना । 5. प्राकृतिक सौंदर्य एवं जीव-जगत के व्यवहार पर प्रकाश डालना । प्रयोगात्मक- 1. कहानी के भाव को अपने दैनिक-जीवन के व्यवहार के संदर्भ के साथ जोड़कर देखना। 2. कहानी के केंद्रीय-भाव...

जलाओ दिये

कक्षा-आठवीं पाठ-जलाओ दिये दवधा-पद्य (कविता) शिक्षण-उद्देश्य – ज्ञानात्मक- 1. कविता को एक ही अन्विवत मेंपढाया जाए। 2. कविता की विशेषताओं की सूची बनाना। 3. नए शब्ों को समझकर छात्ों के शब्-भंडार मेंिृन्वि करना। 4. कविता की विषय-िस्तु को पूिव में सुनी या पढी हुई कविता से संबि करना । 5. छात्ों को पाठ के कवि तथा उनकी अन्य रचनाओं के बारे मेंजानकारी देना। 6. पाठ मेंप्रयुक्त भाषा-तत्ों एिं कवठन शब्ों के शुि रूपों को पहचान कर छात्ोंको उनके बारे मेंजानकारी देना। 7. सावहत्य के पद्य विधा (कविता) की जानकारी देना । 8. प्राकृ वतक स ंदयव तथा प्रेम-भाि से पररवचत कराना। 9. कविता की लयात्मक प्रिाहमयी भाषा की जानकारी छात्ों को देना। 10. कवठन श्बब्ों को श्यामपट्ट पर वलखकर बार अभ्यास कराना । कौशलात्मक- 1. छात्रों को गति, यति और लय के साथ कतििा पढाना तसखाना । 1. आदशव िाचन करते समय उच्चारण की दृवि से कवठन शब्ों को श्यामपट्ट पर वलखा जाना। 2. कविता के भािों के अनुरूप छात्ों को उवचत आरोह-अिरोह के साथ कविता का सस्वर िाचन कराना । 3. कवि के उद्देश्य को स्पि करना। 4. कविता में िवणवत प्राकृ वतक स ंदयव पर प्रकाश डालना...

धैर्य रख

धैर्य रख,   ज़रा सा सब्र रख,  खुद को, घर पर रख|   जो अधूरा रह गया   पा ही लेंगे   जिंदगी एक धरोहर   बचा कर रख |   संकट छाया है   धैर्य रख  अंधकार  छंट ही जाएगा|   ज़रा सा सब्र रख   खुद को बस   घर पर रख |

शिखर तक

शिखर तक पहुँचने का ख्वाब  जो देखा मैने   त्याग समर्पण का मान  तो रख लिया होता |  त्याग करना सीख लिया जिसने  नाम शिखर पर उसने ही  दर्ज करवा लिया होता |  पाना और खोना' की समझ  आ जाए यदि,   जग को उसने ही पा लिया होता |  पाने की खुशी न खोने का ग़म  सम भाव सीख लिया जिसने जीने का सलीका आ गया होता |  शिखर पर नाम  यूँ ही नहीं दर्ज हुआ करते,   त्याग करना तो सीख लिया होता |  इतिहास में नाम  उन्हीं का शिखर पर पहुँच पाया है ,जिसने  त्याग का पाठ खुशी से सीख लिया था |
नमन काव्याँचल_काव्याराधना आयोजन -आठवाँ दिवस सरोवर - पंपा सरोवर तिथि - 03.04.2020 विषय - पोस्ट -8 क्रमाँक - 61 टीम का नाम - तीसरी आँख टीम के सदस्य -1.अरुणा कालिया-(सुनीता) 2.निखिल कुमार -(अभिनव) 3.विजय लक्ष्मी राय-(अमिता) किरदार का नाम -सुनीता विधा - काव्य शीर्षक - 'असमंजस की बात है' सम्मान से जीना तो जरूरी है, न चाहने पर भी तलाक़-मंजूरी है| विपरीत फैसला लेना,उलझन सही, आत्मसम्मान की बात भी जरूरी है| माँ के ताने सुनने मंज़ूर हैं, पति की प्रेमिका का साथ बर्दाश्त नहीं| मायके में माँ के ताने दर्द देते हैं आत्मसम्मान का टूटना बरदाश्त नहीं| बेटी आयशा के जीवन की भी चिंता एक माँ के लिए स्वाभाविक बात है लौट जाऊँ सोचा कितनी ही बार सौतन गवारा,मंज़ूर नहीं बात है | चाहना न चाहना एक बात है परिस्थिति से परे फैसला ,अलग बात है | बेटी की चिंता बहुत बड़ी बात है आत्मसम्मान बचाना सर्वोपरि बात है | असमंजस की स्थिति बनना एक बात है मन के विपरीत फैसला मजबूरी की बात है | यौं तो अपमान का घूँट लोग पी लेते हैं, औलाद की ख़ातिर कडु़वा घूँट पीना बड़ी बात है | हँ...
नमन काव्याँचल_काव्याराधना आयोजन -छठा दिन सरोवर - पंपा सरोवर तिथि -1.04.2020 क्रमाँक - 61 टीम का नाम - तीसरी आँख टीम के सदस्य -1.अरुणा कालिया 2.निखिल कुमार 3.विजय लक्ष्मी राय विषय - अलंकार विधा - काव्य शीर्षक - एक विरहन, प्रेम दिवानी ढूँढ के लाओ मन का सुकून , जाने कहाँ खो गया| नैना ढूँढें, इत -उत डोले, चैन न पावे, चित्त का चैन चुरा ले गया,जान न मन पावे| मेघा की गर्जन विचलित करे, बिजुरी चमकै जैसे दंतिया दिखावे | खीझ बढ़ावे, समझ न अब कछु आवे | मन घबराए, कहीं से उनकी छवि दिख जावे | (तरसे नैना कहे, रे मेघा ! तू ही कर कछु उपाय | मेरे साजन को ले आ कहीं से , पाँव पड़ूँ मैं तोए |) विरहन बाट जोह रही, न सूझे कछु उपाय | मन नहीं ठहरे, फीके सब अब पकवान लगें | वैद्य चिकित्सक सब व्यर्थ, मरज न जाने कोए | सखि सहेली सब बैरी लगै ,हितैषी न लागै मोए | हाथ जोड़ विनति करूँ सहेली प्रेम न करयो तोए | सुख-चैन सब जात हैं , फिर भी प्रेम प्रिय काहे होए | (तरसे नैना कहे, रे मेघा ! तू ही कर कछु उपाय | मेरे साजन को ले आ कहीं से , पाँव पड़ूँ मैं तोए |) अलंकार -मानवीकरण घोषणा य...

रोगों से लड़ता मानव

कंधे पर बेताल सा  बोझ लिए फ़िरता मानव  धरती के प्रदूषित   पर्यावरण से जूझता मानव  परेशानी के भाव लिये  नवीन रोगों से लड़ता  मानव बेदम सा हो गया है|   परिवार पाले या  रोगों से लड़े  व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियाँ निभाए   अथवा देश संवारे ,  बीमारियों के चलते  कोरोना से जूझता   बावरा सा हो गया है मानव |

नया वायरस कोरोना

कंधे पर बेताल सा  बोझ लिए फ़िरता मानव  धरती के प्रदूषित   पर्यावरण से जूझता मानव  परेशानी के भाव लिये  नवीन रोगों से लड़ता मानव  बेदम सा हो गया है|   परिवार पाले या रोगों से लड़े व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियाँ निभाए  अथवा देश संवारे ,  बीमारियों के चलते  कोरोना से जूझता   बावरा सा  हो गया है मानव |

ख़त उनके नाम

नमन काव्याँचल_काव्याराधना आयोजन -सातवां दिन सरोवर - पंपा सरोवर तिथि -02.04.2020 क्रमाँक - 61 टीम का नाम - तीसरी आँख टीम के सदस्य -1.अरुणा कालिया 2.निखिल कुमार 3.विजय लक्ष्मी राय विषय - कुछ कुछ इश्क़ सा विधा - काव्य शीर्षक - उनका एक स्पर्श उनका एक स्पर्श हृदय पटल को छू गया, हृदय तब से उनका होकर रह गया || हृदय में हरदम किसी की तस्वीर उभरना इसी का नाम इश्क़ है, हृदय को पता न था| अनदेखा कर दुनियावी कर्मों में लिप्त रहे, अचेतन मन में चेहरा,अनदेखा करते रहे | बेचारा मस्तिष्क अनजान, बेफ़िक्र जीता रहा| धड़कन की ताल सुने बिना कार्य करता रहा| हृदय जब घुटने लगा ,साँस लेना भारी हुआ| मस्तिष्क का कार्य बंद हुआ,तभी आभास हुआ | यह इश्क़ है!,ऐसा होता है इश्क़ का एहसास! इतने प्रश्नों की बौछार,हुआ शून्य-सा आभास | दिल के हाथों मजबूर ज्ञानी मस्तिष्क हुआ बेजान| थका हुआ सा ज्ञानी मस्तिष्क अब मान गया हार| मस्तिष्क हुआ मौन, हृदय का क्रंदन,अब हुआ बेखौफ़| धुंधली सी तस्वीर हृदय में अब होने लगी स्पष्ट बेटोक| उभरती तस्वीर स्पष्ट होते ही इश्क़ का हुआ एहसास | नैना झरझर...