बेटी
बेटी अब अल्हड़पन छोड़ो
शिकारी घात लगाए बैठा है
उसकी नज़र में तू छोटी नहीं
बड़ी या बूढ़ी भी नहीं है।
उसकी नज़र में तू तो है बस
एक हाड़ मांस की लड़की ।
तुझे बड़ा बनना होगा
स्वयं को समझना होगा।
शिकारी की नज़र से
बचना होगा,बचना ही नहीं
सबक भी सिखाना होगा।
तेरी मर्ज़ी बिना उठे हाथ जो
उस हाथ को उखाड़ फेंकना होगा।
अरुणा कालिया
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