रंग-मंच
ज़िंदगी के रंग-मंच पर जूझते दो किरदार एक खुशी बाँटता, खुशियां पाता। दूजा ग़म बाँटता बदले में ग़म पाता। कुछ लोग हंसते कुछ लोग रोते हंसते रोते समझ न पाते, ज़िंदगी के रंग-ढंग निराले। रंग-मंच पर युग्म रंग उंडेले। सुख-दुख का काफ़िला यूं ही बढ़ता, बढ़ते बढ़ते दिन महीने साल, सदियों में बदलते ज़िंदगी युग्मों पर ठहरी समझते समझते युग बीते। अरुणा कालिया