मैं मानव हूँ
मैं मानव हूँ सुगढ़ विचारवान अपने पर्यावरण को स्वच्छ सुंदर सुरक्षित आवरण ओढ़ा रहा, मैं मानव हूँ गिद्ध नहीं हूँ विचारवान हूँ अपनी ही धरा को नोच नहीं रहा हूँ। मैं मानव हूँ अपनी सुंदर धरा को और आकर्षक बनाने में अपना सहयोग दे रहा हूँ । मैं मानव हूँ जीवन को ललित कलाओं से सजा रहा हूँ। मैं मानव हूँ विचारवान हूँ। अपने विवेक से अपनी वसुंधरा को सुरक्षा प्रदान करता हूँ। नई तकनीक से दुनिया को विकास की ओर ले जा रहा हूँ मैं मानव हूँ गिद्ध नहीं हूँ विचारवान हूँ। अरुणा कालिया