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क़िस्मत

हमारी क़िस्मत हमारी ही है इसे सोने मत दीजिए। दरवाज़ा खटखटाइए, दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा। क़िस्मत इसी इंतज़ार में है, वह हमें जगाना चाहती है। अरुणा कालिया