ऐ मालिक
ऐ दो जहां के मालिक!
न हाथ छोड़ो न साथ ,
तेरे जहां के मुसाफ़िर-प्राणी
भटक रहे बिन प्रेम मालिक!
गुमराह को राह दिखाओ,
पीड़ित नेह-मरहम लगाओ।
कामदेव को शांत करो अब
सृष्टि-नियम का मान करो बस
इतना ही रति-मीत सरसाओ।
जहां में अब बसंत ले आओ।
ऐ दो जहां के मालिक!
विपदा में घिरी आज तेरी मादा
बढ़ रहा कामुकता का ज़माना
अति हो चली अब तो मालिक!
नदी सा ठहराव ले आओ
कामदेव पर लगाम लगाओ
घुटन भरा जीवन बना है
पर्यावरण स्वच्छ कराओ।
मर्यादा मत भंग कराओ।
ऐ दो जहां के मालिक!
कर्मशील प्राणी रचा है
बिन-कर्म-फल चाह रहा है
मति फ़िरी प्राणी की माधव!
सीधी राह दिखाओ माधव!
तेरी रचना भटक रही मालिक!
भटकन से निजात दिलाओ
जीवन-मंत्र का पाठ पढ़ाओ
निज अर्जुन को राह दिखाओ।
अरुणा कालिया
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