मूक दृष्टा

भरी सभा में तब भी सब मूक दृष्टा थे
आज भी पहचाने चेहरे, सब राजधृष्टा हैं।
तब गोविंद आए थे वस्त्र रूप में,द्रौपदी!
आज गोविंद भी बन बैठे मूक दृष्टा हैं।
गोविन्द की चुप्पी दे रही इशारा तुझको
शस्त्र उठाना पड़ेगा बन सबला तुझको।
झांसी की रानी ने दुर्गा बन ललकारा था
तलवार उठाई, दुश्मन भी डरा, थर्राया था।
समय नहीं है किसी पर आस लगाने का
उठो, टूट पड़ो समय है सिंहनी-सी दहाड़-का।
अरुणा कालिया

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