पीड़ित, शोषित
एक स्थान पर लिखा पढ़ा--
"मानव जाति से यदि पुरुष जाति
को खत्म कर दिया जाए तो ही
बलात्कार से पीड़ित बच्चियों के लिए
पश्चाताप कम होगा"।
परंतु मेरा मानना इससे भिन्न है
किसी जाति को ख़त्म करना हल नहीं
मानव जाति के संतुलन में कोई कम नहीं।
नर-नारी का संतुलन अनिवार्य है
महत्त्व में न कोई कम न कोई अधिक है
ज़रूरत समाज में परिवर्तन की अवश्य है।
पालन-पोषण दोनों की न भिन्न है
नर-नारी का सम्मान परस्पर सम है
समाज का नियम पालन अभिन्न है।
बेटा बेटी परिवार के अंग अभिन्न हैं।
परिवार में शिक्षित सभी अवश्य हैं
पर दंभ से परे शिक्षित अवश्य हों।
डिग्री के महत्व में सभ्यता अवश्य हो।
अरुणा कालिया
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