नवल किरण

नवल किरण का स्वागत करने को आतुर धरा
निशा काली अंधकूप से निकलने को आतुर धरा।
अरुण अश्व रथ सवार रवि ज्यों-ज्यों छूता धरा
तम का फैला साम्राज्य धराशाई होता देख धरा।
क्षण-क्षण अंधकूप-बेड़ियों से स्वतंत्र हो रही धरा
प्रतिक्षण रवि रश्मियाँ छोड़े चाँदी में नहाती धरा।
कण-कण प्रकाशित हो चमक रही देखो यह धरा।
दंभ टूटा तम भाग-खड़ा, दुम दबाकर, छोड़ यूं धरा।
मनु विद्युतीय छड़ी ने खदेड़ दिया हो धरा से ज़रा
धरती अंबर झूल रहे बयार की पींग बन सखी-सखा।
अरुणा कालिया

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