बचपन की शिक्षा

लेखिका :अरुणा कालिया
शीर्षक   बचपन की शिक्षा (कहानी में दिया गया नाम काल्पनिक है)।
मैं स्कूल में हिंदी शिक्षिका के रूप में कार्यरत हूंँ ,जब कभी स्टाफ़ की कमी होती है तो किसी दूसरी अध्यापिका को एडजस्ट कर दिया जाता है। ऐसे ही एक दिन मेरा भी एडजस्टमेंट एक छोटी कक्षा में लगा।कक्षा दूसरी में मेरी ड्यूटी थी। वहांँ मुझे कोई विषय तो पढ़ाना नहीं था, इसलिए मैंने बच्चों के साथ बातचीत शुरू की। बातों ही बातों में बच्चे कहानी सुनने की ज़िद करने लगे।
मैं भी कहानी सुनाने को तैयार हो गई। मैंने कहानी सुनानी शुरू की।
एक बार आप जैसा एक बच्चा था।उसकी मम्मी ने भी उसे स्कूल में पढ़ने भेजा।उस बच्चे का नाम था राहुल।अब राहुल भी रोजाना पढ़ने स्कूल जाने लगा।
एक दिन उसे किसी दूसरे बच्चे की एक सुंदर सी रंग-बिरंगी पेंसिल दिखाई दी। राहुल को पेंसिल बहुत अच्छी लगी।उसे लगा कि अगर मैं माँगूँगा तो यह मना कर देगा।यह सोचकर उसने उस पेंसिल को चुपचाप अपने बैग ‌(बस्ते) में रख लिया।घर जाकर उसने अपनी मां को वह सुंदर पेंसिल दिखाई।और कहा," माँ मैं यह पेंसिल स्कूल से लाया हूँ"।
माँ ने कहा,"अरे वाह!यह तो बहुत सुंदर है,रख लो"।
राहुल बहुत खुश हुआ।
अगले फ़िर से वह एक और आकर्षक सा रबर (इरेज़र)ले आया।
राहुल ने फिर से माँ को रबर दिखाई और खुशी-खुशी चहकते हुए कहा, "देखो माँ आज मैं क्या लाया"। मांँ ने भी उत्सुकता दिखाते हुए कहा,"क्या लाया है आज मेरा बेटा?"
राहुल ने उत्सुकता दिखाते हुए कहा,"माँ ,देखो! कितना सुन्दर रबड़ लाया हूंँ मिटाने वाला" माँ ने राहुल का उत्साह बढ़ाते हुए कहा,"शाबाश, मेरे बच्चे,रख लो, अपने पास"।
इस प्रकार वह हर रोज़ ही कुछ न कुछ लाता और राहुल की माँ उसे बड़ी खुशी से रख लेने की अनुमति दे देती।
समय बीतता गया और राहुल अब बड़ी कक्षा में प्रवेश कर गया था, जितनी परिपक्वता उसकी उम्र में आती जा रही थी, उतनी ही परिपक्वता दूसरों की चीज़े उठाने में भी आती जा रही थी। इस प्रकार अब वह बड़ी बड़ी चीज़ें चुराने लग गया था।
मैंने बच्चों को बताया कि चुराना किसे कहते हैं, बच्चों,जब हम किसी की कोई चीज़ बिना पूछे चुपचाप छुपा कर रख लेते हैं तो ऐसे ही कार्य को चुराना कहते हैं।
एक बच्चे ने मेरी बात को काटते हुए पूछा,"मैम, राहुल ने फिर क्या किया"?
मैंने कहानी आगे बढ़ाते हुए कहा, बच्चों!अब राहुल एक बड़ा चोर बन गया था।
"फ़िर फ़िर क्या हुआ"?एक अन्य बच्चे ने बड़ी मासूमियत से पूछा!
मैंने भी बड़ी संजीदगी के साथ कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा,"अब एक दिन चोरी करते हुए पुलिस ने पकड़ लिया, और राहुल के हाथ में हथकड़ी लगाकर उसे जेल ले जाने लगे।"
राहुल ने हैरानी से पूछा,"आप ने मुझे क्यों पकड़ा है"?
पुलिस ने एक डंडा मारकर कहा, "चोरी करोगे तो तुम्हारे हाथ में हथकड़ी ही लगेगी, कोई आप की पूजा नहीं करेगा, कोई आपकी आरती थोड़े ही उतारेगा"।
बच्चे मुँह पर हाथ रखकर फूं..फूंं..कर दबी हंसी से हंसने लगे।
मैंने बच्चों से कहा,क्यों बच्चों, चोरी करना अच्छी बात है या बुरी बात?
सभी बच्चों ने एक साथ एक आवाज़ में कहा, बुरी बात है, बुरी बात है।
हाँ जी, बिल्कुल सही कहा आपने, चोरी करना बहुत बुरी बात है।
एक बच्चे ने कहा, "आगे क्या हुआ, उस चोर को पुलिस ले गई!"
मैंने कहानी को आगे बढ़ाते हुए बताया,"नहीं अभी नहीं,"
बच्चों ने पूछा,"क्यों,क्यों नहीं ले गई?"
मैंने बच्चों को बताया कि राहुल ने पुलिस से हाथ जोड़कर प्रार्थना की कि मुझे एक बार मेरी मांँ के पास ले चलो ।
पुलिस ने राहुल की बात मान ली और राहुल को उसकी मम्मी के पास ले गई।
माँ के पास पहुंँचकर राहुल ने पुलिस से कहा, मुझे माँ से एकांत में बात करनी है, पुलिस ने आज्ञा दे दीं।
जैसे ही पुलिस के बंदे बाहर निकल गये,तभी राहुल ने माँ से कहा,माँ! क्या आप को पता था कि चोरी करना बुरी बात है?
माँ ने कहा,"हाँ ,यह तो सबको पता होता है"।
तो फिर आप ने मुझे क्यों नहीं बताया कि चोरी करना बुरी बात है? राहुल ने कहा।
"आप के ही कारण मैं आज इस हालत में हूँ , यदि आपने मुझे बताया होता, "चोरी करने से मना किया होता तो मैं भी आज चोर नहीं बनता"राहुल ने कहा और अपने आँसु पोंछते हुए बाहर आ गया और पुलिस से राहुल ने कहा, वास्तव में
अपराधी मेरी मांँ है, जिन्होंने मुझे कभी सिखाया ही नहीं कि क्या सही है और क्या ग़लत।
बच्चों इसलिए हमेशा याद रखना कि आप के टीचर या मम्मी या पापा किसी बात के लिए आप को डाँटते हैं तो समझिए कि ग़लत काम के लिए डाँट पड़ती है और अच्छे काम के लिए शाबाशी दी जाती है।
"समझ गये बच्चों !" मैंने कहा ।
सभी बच्चे एक साथ एक आवाज़ में बोले,"यस,मैम"
इतनी देर में बेल (घंटी)बजी और मैं कक्षा से बाहर आ गई।


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