मन का डर

लेखिका :अरुणा कालिया

शीर्षक - मन का डर
हाँ , मेरे मन में भी अनहोनी का डर रहता है ,जैसा कि आजकल कोरोना वायरस का डर परेशान किये हुए है, हर समय एक अनजाना सा डर मन में रहता ही है |बेटा बाहर जाए तो भी, पति घर से बाहर जाएं तब भी मन डरा ही रहता है |
आज भी दोपहर में बेटा और बेटी दोनों ही पास की मार्केट से घर की कुछ जरूरी चीज़े लेने चले गए |वापिस आने पर मैने दोनों को बाहर ही खड़ा कर दिया |
जो सामान लाए थे, सामान सेे भरे थैले को घर की दहलीज़ के अंदर फ़र्श पर रखवा कर मैने दोनों बच्चों को सेनेटाईज़र से हाथ साफ़ करवाए | उसके बाद डिटोल के घोल को (जोकि पहले से ही एक स्प्रे वाली बोतल में बनाकर तैयार रखा था) उन दोनों को सिर से पाँव तक स्प्रे से एक तरह से नहला ही दिया |
इसके बाद दोनों बच्चे घर के अंदर दाखिल हुए, बेटा राघव कहने लगा, 'मम्मा आप कुछ ज़्यादा ही डरते हो, दीदी से पूछ लो, हमने मास्क भी लगाकर रखा था, है न दीदी, बता न  मम्मी को, '|दोनों बच्चों की बात करने तक मैं दो गिलासों में गरम पानी पीने के लिए ले आई, और दोनों बच्चों के हाथ में गरम पानी वाले गिलास पकड़ा दिए और फटाफट पी जाने को कहा, दोनों भाई-बहन एक दूसरे को देख कर मुस्कुराए और बिना कुछ कहे अच्छे बच्चों की तरह पी गए|
थोड़ी देर बाद बेटी ने कहा, "मम्मा एक गिलास गरम पानी और दे दो, पर इस बार थोड़ा शहद डालने के साथ नींबू भी निचोड़ दो "|
मैने बेटे से पूछा, "राघव आप को भी दे दूँ ,शहद और नींबू वाला पानी " सुनकर राघव ने थोड़ा मुँह बनाया ,फिर बोला," दे दो, आप बिना पिलाए तो मानोगे नहीं "|
मुस्कुराते हुए मैने उसके सिर पर बालों में हाथ फेरा और दोनों के लिए शहद और नींबू के घोल वाला पानी बनाकर देते हुए बेटी से पूछा, क्या आज दुकान पर अधिक भीड़ थी ?
उसका जवाब सुनने से पहले ही मैने आगे कहा, आज आपने बिना नखरे किए चुपचाप सैनेटाइस भी करवा लिया, और गरम पानी भी आराम से पी लिया , कोई ख़ास बात थी, " मेरी बात सुनकर बेटी बोली, हाँ जी, मम्मी ! आज एक तो वहाँ भीड़ थी, दूसरे ट्राली को हाथ लगाते हुए मेरे मन में वहम आ रहा था कि इस ट्राली को पता नहीं कितने लोगों ने हाथ लगाया होगा और कहीं कोई कोरोना वायरस क्रियाशील मरीज तो नहीं है, यहाँ ,यह विचार आते ही मुझे बहुत चिंता होने लगी "|
बेटी की पूरी बात सुनकर मुझे भी चिंता हो गई, मैने उन दोनों से गरम पानी से नहा लेने को कहा |मैने फिर बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "आप दोनों अपने-अपने कपड़े वगैरह तैयार करो, तब तक मैं नहाने के पानी में नीम के पत्ते डाल देती हूँ "|
नीम के पत्तों की बात सुनकर बेटी बोली, मम्मा नीम के पत्ते!
वे कहाँ से आए, बेटी की बात सुनकर मैने कहा, आज सुबह ही मैने आप के पापा से बोल दिया था कि जब सोसायटी के गार्ड से अखबार तथा दूध लेने जाएंगे तब नीम के पेड़ से कुछ पत्ते भी लेते आना |
"ओ..ओ .तो ये बात है ", बेटी ने गर्व सा महसूस करते हुए कहा |
"हाँ, बेटा ,आजकल जो महामारी फैली है, उससे बचने का यही एक मार्ग है, दूरी बनाकर रहो, सतर्क रहो, मुँह पर मास्क लगा कर रखो, गरम पानी पीओ, जितना हो सके घर से बाहर मत निकलो, जब तक जरूरी न हो, बाहर मत जाओ |इन सब बातों से अगर हम सतर्क रहेंगे तो वायरस कितना भी सशक्त हो, दुम दबाकर चाइना वापिस चला जाएगा और उसी लैब में अपने आपको वापिस बंद कर लेगा"|
मेरी बात सुनकर दोनों बच्चे हँसने लगे और नहाने की तैयारी में लग गए |

स्वरचित
अरुणा कालिया
(प्रमाणित करती हूँ कि कहानी अप्रकाशित, तथा मौलिक है |)


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