ऐ अजनबी
#काव्यांचल_पोस्ट_कार्ड
विषय- #ख़त उनके नाम
विधा - पद्य
तिथि-01.02.2020
ऐ अजनबी
तेरा एक स्पर्श उर को छू गया था
मेधावी मस्तिष्क को पता भी न चला था
हम तो दुनियावी कर्मों में लिपटे थे
किसी और ही दुनिया में सिमटे थे|
अनदेखा करते रहे हम हर बार
यादों में उसने सिर उठाया जितनी बार|
बेचारा मेधावी मस्तिष्क जीता रहा
धड़कन की ताल सुने बिना |
अब जब दम घुटने लगा
मस्तिष्क धीमा पड़ने लगा |
मानो अब मस्तिष्क की बत्ती जगी
धड़कन अब स्पष्ट सुनाई देने लगी|
दिल के हाथों मजबूर हुआ बेचारा
हारा हुआ सा वह जान पड़ता था |
दिल में उभरती तस्वीर अजनबी की
अब साफ़ स्पष्ट दिखने लगी थी |
मस्तिष्क को अब जाकर भान हुआ था
उभरती तस्वीर है मुहब्बत, जान पड़ा था |
उस तस्वीर पर मस्तिष्क का ध्यान गया जब
दोनों हाथों से उसने सिर पकड़ लिया तब |
दिल अजनबी-ओर खिंचता रहा था
पगला मस्तिष्क अपनी ही ईगो में जी रहा था
अब जब तस्वीर साफ़ -स्पष्ट हो गयी है
मस्तिष्क ने भी अपनी हार स्वीकार की है |
तुम्हारे लिये
एक अजनबी
अरुणा कालिया
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