इश्क़ प्यार

इश्क़ प्यार मुहब्बत पर्याय श्रद्धा समर्पण, त्याग सहाय | रब का नूर इश्क़ में समाए बिन इनके इश्क़ न कहलाए| एक पुरुष एक स्त्री समाना आत्मीय आकर्षण एकसार करे | पूर्ण समर्पण श्रद्धा कहावे , मुहब्बत में तू ही तू रह जावे स्वयं का कछु भान न रह पावे| खुद को खोकर प्रीत बनी कैसी यह प्रीत की रीत बनी , समर्पण में ही खुशी पावै स्वार्थ-भाव लेश न रह जावै | राधा कृष्ण ,कृष्ण राधा हो जावै | यही प्रीत की रीत कहलावै |

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