तुम्हारा मूड

हर रोज़ तुम्हारे मूड का बिगड़ना
और मेरा सोचना,
शायद आज किसी वजह से तुम परेशां हो।

हर रोज़ तुम्हारी पसंद का काम करना
फ़िर भी तुम्हारे मूड का बिगड़ना।

अंदर मन को शायद यह बात पता थी,
तुम मुझे पसंद नहीं करते,
खुशफ़हमी मन में पाल जिए जा रही थी।

हर बार मेरा तुम्हें मनाने की कोशिश करना
और तम्हारा भन्नाना
अंदर ही अंदर मुझे तोड़ता जा रहा था।

शायद.. शायद,,, शायद करते करते
ज़िंदगी का इतना लंबा सफ़र
आज तुम्हारे साथ तय कर लिया है।

अब तो जैसे मन ने स्वीकार कर लिया है
तुम्हे तुम्हारे बिगड़े मूड के साथ।
अब तो तुम्हें मनाना भी बंद कर दिया है।

इस शरीर में आत्मा कहीं मर चुकी है
मशीन हूँ मैं अब
खाली-खाली आँखें हैं,भावना मर चुकी है।
अरुणा कालिया

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