भटकते रास्ते

भटकते रास्ते हैं, रोशनी का आह्वान करो, तुम!
एक नन्हीं किरण भी मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
मन से आंतरिक बल का आह्वान करो, तुम!
घना अंधेरा भी रोशनी का प्रतिबिंब हो सकता है।
भटके मार्ग में अपनी समझ का आह्वान करो, तुम!
प्रकृति की भाषा उंगली पकड़ राह सुझा सकती है।
कितना भी हो कठिन मार्ग,आत्मबल न खोना, तुम!
आत्मबल ही भटकते रास्ते से बाहर निकाल सकता है।
अरुणा कालिया

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