फूल
--'फूल'
फूल नाज़ुक सा बचपन है
फूल नटखट सा मचलता है
मन-सा हवा संग उड़ान भरता
तारों से परे जाने की चाह रखता।
फूल वादियों को सुरभित करता
क्रोधित हो जाए तो घाव भी करता
भंवरे को आकर्षित कर आलिंगन में भरता।
साज श्रृंगार कर फ़िज़ाओं को महकाता।
फूल शब्द छोटा पर महत्त्व बड़ा रखता
धरती का श्रृंगार कर खुद पर इतराता
मानव को समझाता,छोटा हूँ,
पर काम बड़े आता हूँ।
अरुणा कालिया
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें