तारों की चांदनी

अमावस्या की रात में
तारों की थी चांदनी।
 चमक पर तारों का
इतराना था लाज़मी।
धरती पर पड़ती 
अपनी चमक को देख,
तारों ने जश्न की रात 
बड़े यत्न से मना ली।
चांदी ही चांदी थी सब 
तरफ़ रात थी सुहानी।
अमावस्या की रात में 
तारों ने मनाई दीपावली।
कुछ तारे उदास थे,
खुशी के पीछे छिपे
 ग़म के साए थे।
कुछ समझदार तारे बोले
कल की चिंता क्यों करते हो
कल जो होगा देखा जायेगा
आज तो खुशी का पल 
जी लो,न जाने दो, 
जी भरकर आनंद लो।
छोटी-छोटी खुशियों से यूं
मुंह मोड़ोगे, बड़ी-बड़ी
खुशियों से भी हाथ धो लोगे।
अरुणा कालिया

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