दर्पण

तारीफ़ का कण मन में रख
उम्मीद रख जी रही अरसे से
युग बीत रहा कमियां देखें सब
तारीफ़ शब्द से इतना परहेज!
दर्पण देखूं हर कोण से निहारूं
कमी कोई खुद में न ढूंढ़ पाऊं।
मन के कोने से आई आवाज़
प्रकृति सुंदर सब कहें,क्या राज़।
प्रकृति ज़रूरत सबकी पूरी करें
संसाधन जुटाती भूख मिटाती।
इससे सुंदर भाव दिखलाती ख़ास।
अरुणा कालिया


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