मौसम

मौसम का मिजाज़ बदलने लगा है
कहर ढाने का इरादा लगने लगा है।
महाराष्ट्र में बना बहती नदी का नज़ारा
नाव शहरों गलियों में, वीभत्स नज़ारा।
पहाड़ों पर भी पहाड़ों का खिसकना
जारी हुआ, जीना सबका बेहाल हुआ।
मलबा मिला नदी का भी रंग बदला
मिजाज़ देख दिल दहलने लगा है
प्रकृति- प्रकोप समझ आने लगा है।
मनुष्य का कृत्य, प्रकृति का संताप
दोनों संतुलन निश्चित बिगड़ने लगा है।
अरुणा कालिया

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