मेरी चाहत
मेरी चाहत बरसात की बूंदें नहीं
जो बरसतीं भिगोतीं चली जाती
मेरी चाहत धूप की किरण नहीं
आती रोशनी भरती चली जाती।
मेरी चाहत ऋतुओं को झेलती धरा है,
मौसम में साथ निभाती घर की छत है,
मौसम की मार से बचाती, आवरण है,
मेरी चाहत राह में छोड़ जाने वाली नहीं
यह रग रग में समाने वाला रक्त-कण है।
अरुणा कालिया
Kya Baat hain ye bahut acha likha hain
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,मिनी, हार्दिक आभार
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