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प्रसिद्ध धार्मिक-पुस्तकें पढ़नी ही चाहिए- (लेख )

  प्रसिद्ध धार्मिक-पुस्तकें पढ़नी ही चाहिए- (लेख ) पुस्तकें हमारी विवेक शक्ति को जहाँ बढ़ाती हैं वहीं जीने का सलीका भी सिखाती हैं।पुस्तकें एक ओर हमारी मित्र हैं तो दूसरी ओर हमारी मार्ग-दर्शिका भी हैं। अच्छा साहित्य हमेशा हमारे ज्ञान को बढ़ाता ही नहीं, और ज्ञान बढ़ाने की जिज्ञासा को निरंतर बनाए रखता है। धार्मिक-पुस्तकें पुरातन से आधुनिकता की ओर ले जाने में पुल का कार्य करती हैं। धार्मिक   पुस्तकें हमारी आस्था को मजबूती देने का कार्य तो करती ही हैं ,हमें हमारी संस्कृति से भी जोड़ती हैं , जो संस्कृति हमें हमारे पूर्वजों से मिली है,उस धरोहर को बचाने और   सहेज कर रखने का कार्य पुस्तकों के माध्यम से ही किया जा सकता है। लिखित साहित्य ही हमें हमारे प्रारब्ध से जोड़ता है। मानव मात्र ही है जो अपने मूल तक पहुंचने के लिए पुस्तकों का सहारा लेता है, और पूर्वजों से मिली संस्कृति को सहेज कर अगली पीढ़ी तक ले जाता है। भले ही आज ई-पुस्तकों का दौर है ,काग़ज की पुस्तकें हों अथवा ई-पुस्तकें हों, हमारे प्रारब्ध की   विस्तृत जानकारी पुस्तकों से ही हमारे वर्तमान तक पहुंची है। मानव-धर्...

बीती बातें बिसार दे

चल छोड़ न यार पिछली बातों को, अब आगे बढ़ते हैं बीती बातें बिसार कर, कुछ नये अरमान गढ़ते हैं। जो हुआ सो हुआ,गलती न दोहरा, दोस्ती फ़िर से करते हैं नये जोश से नये अरमान से, एक नया इतिहास रचते हैं। कृष्ण-सा सारथी बन, सुदामा की सी दोस्ती करते हैं। शुरू से शुरू करके, चल ,दोस्ती की मिसाल बनते हैं। पिछली बातों को दोहराकर क्या किसी ने सुख पाया है, बिसरा दें पिछली बातों को, नये सिरे से धरातल रचते हैं। अरुणा कालिया 

ओरे मोरे मन

ओरे मोरे मन , राधिका रमण। निसदिन प्रभुगुन गाएजा छिन छिन नेह बढ़ाए जा पल-पल प्रेम बढ़ाए जा। मन गोविन्द-गुण गाए जा। १. वह मन ही क्या मन है जिसमें      गोविंद-प्रेम सा प्रेम न हो ऐसा मन ही क्या जिसमें राधिका रमण सांवली सरकार न हो     मन प्रेम-जन हित नित मन-मीत, प्रभु गीत गाए जा। मन गोविंद गुण गाए जा,,, ओरे मोरे मन राधिका रमण निसदिन प्रभुगुन गाएजा.. २. वह जीवन क्या जीवन है जिसमें     जीवन धन से प्यार न हो।     ऐसा प्यार ही क्या जिसमें पिय सुख में बलिहार न हो श्यामा श्याम मिलन हित नित नैनन नीर बहाए जा। मन गोविन्द-गुण गाए जा ओरे मोरे मन, राधिका रमण निसदिन प्रभुगुन गाएजा.... ३.  पिय मन-भावन प्यारी सुकुमारी वृषभानु दुलारी प्राण रे, चाकर बन नित करे चाकरी सुंदर श्याम सुजान रे। प्रेम-सुधा रस चखन हित मन राधे राधे गाए जा।   मन गोविन्द-गुण गाए जा ओरे मोरे मन, राधिका रमण निसदिन प्रभुगुन गाएजा... ४. ओ रसिया मन बसिया कृष्ण मुरारी     ब्रज मन बसिया जान रे कानन रस नित भरे बांसरी कृष्ण कन्हैया ब्रज प्राण रे सांवरा सलोना घनश्याम नित ...

भज गोविंद भज गोपाला

  भज गोविंदा भज गोपाला राधा के संग - संग नाचे नंदलाला राधा के मन को हरने वाला रास   रचैया   गोकुल वाला ता ता थैया, ता ता थैया 1.दरस के मारे प्यासे नैना   प्यासे नैना तरस गए हैं   दरस बिन बरस रहे हैं   जब से पिया है प्रेम-प्याला   राह तके तेरा गोकुल सारा   रास रचैया , गोकुल वाला   ता ता थैया, ता ता थैया ..... 2.मुरली वाला नंद का लाला   वही है मेरा रखवाला..2     तेरा पावन साथ मिला है   राधा वल्लभ नंद का लाला   तेरा साथ निराला पाया   भज गोविंदा भज गोपाला   रास रचैया गोकुल वाला   ता ता थैया ता ता थैया....  

बीते पल

बीते कटु पल भुलाने मुश्किल हैं कोशिश की जा सकती है। बीते पलों से उभर पाना मुश्किल है कोशिश की जा सकती है। कटु अनुभव से सतर्कता मुश्किल है कोशिश की जा सकती है। कोशिशें ही परिवर्तन में सहायक हैं कोशिश दर कोशिश की जा सकती है। अनुभव से तुरंत मोड़ देना मुश्किल है कोशिश करना हमारे हाथ है, अपना हाथ जगन्नाथ बन जा कटुता से उभर पाना मुश्किल है कोशिश करके तो देख,प्यारे! मानव में ही अद्भुत गुण हैं मानवीय गुणों को अनुभव तो कर प्यारे जग में कुछ भी मुश्किल नहीं एक बार कोशिश करने की हिम्मत तो कर प्यारे! अरुणा कालिया

कोशिश तो कर

बीते कटु पल भुलाने मुश्किल हैं कोशिश की जा सकती है। बीते पलों से उभर पाना मुश्किल है कोशिश की जा सकती है। कटु अनुभव से सतर्कता मुश्किल है कोशिश की जा सकती है। कोशिशें ही परिवर्तन में सहायक हैं कोशिश दर कोशिश की जा सकती है। अनुभव से तुरंत मोड़ देना मुश्किल है कोशिश करना हमारे हाथ है, अपना हाथ जगन्नाथ बन जा कटुता से उभर पाना मुश्किल है कोशिश करके तो देख,प्यारे! मानव में ही अद्भुत गुण हैं मानवीय गुणों को अनुभव तो कर प्यारे जग में कुछ भी मुश्किल नहीं एक बार कोशिश करने की हिम्मत तो कर प्यारे! अरुणा कालिया

हक़ीक़त की चादर

सपनों से बाहर निकल हक़ीक़त की चादर ओढ़  कर्म-क्षेत्र का योद्धा बन जीत अपनी अधिकृत कर। तू अर्जुन है अर्जुन बनकर मार्ग अपना प्रशस्त कर भटकना तेरा काम नहीं मीन अक्ष पर ध्यान धर। अरुणा कालिया

सपने में सपना

सपने में सपना-- एक रात सपने में देखा एक सपना चांद मिलने आया धरा पर था छाया। आश्चर्य हुआ इतना किंकर्तव्यविमूढ़-सा मेरा मन विचलित-सा हैरां-परेशां डोल रहा मन हतप्रभ-सा,  शरमाया घबराया कुछ समझ न पाया। यथार्थ देख समक्ष कल्पना देख प्रत्यक्ष तैयार न था मन संभाल न पाया पल। वापिस जाने को किया विवश कर-युगल विनती कर क्षमा मांग खड़ी विकल। अरुणा कालिया

ल्हासा की ओर

प्रश्न 1. थोड्ला के पहले के आखिरी गांव पहुंचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश में भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका,क्यों? उत्तर - थोड्ला के पहले के आखिरी गांव तक लेखक के साथ मंगोल भिक्षु सुमति था। उसकी उस गांव में जान-पहचान थी, जिसके कारण भिखमंगो के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला। दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश में घोड़ों पर सवार होने के बावजूद लेखक को ठहरने का उचित स्थान नहीं मिला क्योंकि उसकी वहां कोई जान-पहचान नहीं थी। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि लेखक शाम के समय वहां पहुंचा था और उस समय वहां लोग छड् पीकर होशो-हवास में नहीं थे। प्रश्न-2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था। उत्तर उस समय तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण वहां लोग लाठी की तरह पिस्तौल और बंदूक लेकर घूमते थे। हथियार बंद इन लोगों से यात्रियों को अपने लूटे जाने के साथ-साथ जान से हाथ धोने का भय बना रहता था। प्रश्न-3 लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियो...

पगडंडियां

                  पगडंडियों से गुजर नदी की ओर जाता था दो किनारे साथ-साथ देखा किया करते थे,  लहरों का गिरना उठना  लहराना साथ-साथ। आज भी वह पगडंडियां  हैं जहां तहां। मगर नदी का लहराना  थम सा गया है। नदी का स्वच्छ निर्मल  जल गंदला गया है। वह रास्ता जो पगडंडियों से गुज़र, नदी की ओर जाता था आज भी........। अरुणा कालिया

नवीं कक्षा, क्षितिज,प्रश्नोत्तर , दो बैलों की कथा, लेखक: मुंशी प्रेमचंद

प्रश्न 1 . कांजीहौस मेंं पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी? उत्तर : ताकि यह पता लगा सकें कि कहीं कोई जानवर भाग तो नहीं गया है या कोई जानवर मर तो नहीं गया है। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि जब कैद पशुओं के मालिक उन्हें छुड़ाने आएं तब उनसे उतने दिनों का हर्जाना ले सकें। प्रश्न 2. छोटी बच्ची के मन में बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया? उत्तर :-बैलों के साथ किए जा रहे व्यवहार से छोटी बच्ची को स्वयं की छवि नज़र आ रही होगी क्योंकि वह स्वयं भी ऐसे ही व्यवहार को झेल रही थी, उसकी सौतेली मां उसे भूखा रखकर प्रताड़ित करती थी।। प्रश्न 3 . कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति विषयक मूल्य उभर कर सामने आए हैं? उत्तर :-नीति से तात्पर्य है-लोकाचार की वह पद्धति, जिससे अपना भी भला हो और दूसरों का भी भला हो। १. किसी को मारना धर्म के विपरीत है। २. स्त्री जाति पर हाथ नहीं उठाना चाहिए। ३. गिरे हुए और निहत्थे पर वार नहीं करना चाहिए। ४.स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष करते रहना चाहिए।    स्वतंत्रता पाने के लिए अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं       जिसके लिए उन्हें तैयार रहना च...

आहट

बाहर का अनगिनत शोर और उनके आने की आहट पहुँच पायेगी मुझतक!! अंतर्मन की आवाज़ हौले से कह गई कानों में बाहर की आवाजों को अनसुना करके तो देख। तेरे मन में ही है बड़ी निराली ताक़त, सात समुंदर पार की आवाज़ बड़ी आसानी से सुन पाती है। एक बार सुनने की कोशिश और फ़िर देख उसके आने की आहट! उसके दिल की धड़कन भी स्पष्ट सुन पायेगा। अरुणा कालिया

मैं मानव हूँ

मैं मानव हूँ  सुगढ़ विचारवान अपने पर्यावरण को स्वच्छ सुंदर सुरक्षित आवरण ओढ़ा रहा, मैं मानव हूँ गिद्ध नहीं हूँ विचारवान हूँ अपनी ही धरा को नोच नहीं रहा हूँ। मैं मानव हूँ अपनी सुंदर धरा को और आकर्षक बनाने में अपना सहयोग दे रहा हूँ । मैं मानव हूँ जीवन को ललित कलाओं से सजा रहा हूँ। मैं मानव हूँ विचारवान हूँ। अपने विवेक से अपनी वसुंधरा को सुरक्षा प्रदान करता हूँ। नई तकनीक से दुनिया को  विकास की ओर ले जा रहा हूँ  मैं मानव हूँ गिद्ध नहीं हूँ विचारवान हूँ। अरुणा कालिया

रिश्ते

रिश्तों को निभाने में कसर न रखना वे निभाएं या न तुम जिम्मेदारी से पीछे न हटना। कर्म जो हमारा कर्म करते जाना रिश्ते हैं हमारे हमें ही इसे निभाना। अरुणा कालिया

वह पुष्प

ओस की बूंदों से लथपथ था वह पुष्प कातर निगाहों से उसने मुझे ज्यों देखा मानो सर्दी से कांपती सांसों को अपने आगोश में लेने को कह रहा था वह पुष्प। उसकी सुंदरता देखने में मैं था मशगूल कहाँ कर पाया मैं उसका दर्द महसूस। दूर-दूर से आए थे लोग उसे देखने ओस लिपटा पुष्प दर्द से था मजबूर। अरुणा कालिया

यादें

यादों का पिटारा पीछे छूट रहा है बढ़ रहे कदम, मन पीछे छूट रहा है, यादों के बादल धुंध से छा रहे हैं बढ़ते कदम रुकना चाह रहे हैं। अधूरा सा लागे, है सब कुछ मेरे पास फ़िर भी अछूता सा लागे। कह न पाऊं मन की बात हैं शब्द नहीं मेरे पास। अरुणा कालिया

मुस्कुराने की वजह

मुस्कुराने के लिए। खिली धूप,खिली प्रकृति खिली चाँदनी,बिछी चांदी धरती मुस्कुरा उठी। धरा आधार मुस्कुराता मन प्रकृति से जुड़ा प्रकृति की गति लय ताल झूम उठता संसार इतनी वजह काफ़ी है मुस्कुराने के लिए। अरुणा कालिया

मन का उजाला

मन का उजाला बाहर उजाला भी मन का ही उजाला है वरना ठोकर लग जाती है। ठोकरें मन का तम दूर कर सचेत करती ठोकरें तो रोशनी में लग जाती हैं। अरुणा कालिया

धनतेरस

धनतेरस की हार्दिक बधाई दीपावली के दीप जलें रोशन रहे सारा जहां,  रोशन करे सारा जहां। धन बरसे लक्ष्मी मां कृपा करने आई। तन मन स्वस्थ रहे कोरोना को करो चारों खाने चित्त यहां। धन बरसे कृपा बरसे  महामाई कृपा करने आई। धन तेरस की हार्दिक बधाई, बधाई।। अरुणा कालिया 🙏🙏

ये दुनिया खानाबदोश

ये दुनिया खानाबदोश जीवन कहां यहां अपनी ही धुन में जी रहे,समय कहां यहां। भाग रहे सब भाग रहे,बस भाग रहे यहां वहां पता नहीं रुकना कहां, अंतिम छोर कहां यहां। दिल लगाने की कोशिश की लाख मगर अजनबी सी दिखी हर बार दुनिया की डगर। न बातें अपनी,न आँखों का छूना अपना न स्पर्श अपना-सा, न दुआएं अपनी-सी। न इंतज़ार था हमारे लिए,न फ़िक्र कहीं भी दिखावा ही दिखावा चारों ओर है दिखता। ये दुनिया खानाबदोश,परायी-सी लगती। मुसाफ़िर बन जैसे तैसे जीने को बाध्य करती। दिल लगाने की कोशिश लाख की मगर दिखती नहीं दुनिया में कोई अपनी सी डगर।