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शादी की पच्चीसवीं सालगिरह

ममता राहुल शादी की सालगिरह मुबारक::::;::: पच्चीसवीं सालगिरह पर दिल से निकली दुआ यही चिड़िया सी चहकती रहे तब भी  जब हो शादी की सालगिरह पचासवीं। बालिका सी किलकारती खुशी से झूम उठती  ऐसी है ममता हमारी प्यारी न्यारी मतवाली। ज़रा सा छेड़ दो जो बचपन की तान पुरानी, चहक चहक जाए लेकर मुस्कान मतवाली। प्रज्ञा लावण्या और वासु जिनकी संतानें महक महक जाए बगिया के फूल निराले। राहुल ने जीवन साथी बनकर संवारा इस तरह रफ़्तार पकड़ चल पड़ा क़िस्मत का काफ़िला सलाम ऐसी जोड़ी को सहस्र दुआएं ऐसी जोड़ी को। अरुणा कालिया

यदि कोई

कोई बात यदि आपको ग़लत लगती है, पहले उसकी तह तक जाओ, समझो मनन करो,जांच परख कर भी यदि आप अपनी बात पर अडिग हैं तो अपनी बात पर अड़ जाओ,लड़ जाओ इतिहास में अपना नाम दर्ज करा जाओ सच का साथ देने वाले ही इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाते हैं, ग़लत के तलवे चाटने वालों का नाम देखा है इतिहास में?? अरुणा कालिया

बिखरे हुए लम्हे

बिखरे हुए लम्हों को  समेट तो लो एक बार, लम्हों की मिठास मन में  बसा तो लो एक बार, उनकी ऊर्जा की बारिश  होने तो दो एक बार, ऊर्जा की तदबीर लबरेज  होने तो दो एक बार। बन रही तस्वीर लम्हों की,  देख तो लो एक बार, समेटे लम्हों से बनी तस्वीर  में प्यार भरो एक बार, फ़िर देखो ज़िंदगी  तुम्हारे प्यार के गीत गा रही है। लबों पर तुम्हारे प्रेम के  तराने सजा रही है।। अरुणा कालिया

हमराज़

मुझे भी साथ ले लो हमनशीं हमसफ़र बन हमराह के हमराज़ बनो नाहक मसाइब से बचो राह तदबीर कर दिलशाद करो, राह मुसाहिब बन रहज़न से बचो। ख़ालिक सा इकराम तुझमें देखूं उन्स मुजाहिरा करूं तेरे सजदे में रूह की पैरहन बन साथ ले चलो। अरुणा कालिया

दिल वापिस कर दो

न जज़्बातों की कद्र है अब, न दिल का तराना न संग बिताए लम्हे हैं न दिलों का आशियाना। अब न यादें हैं बाक़ी न क़ीमती पलों का अफ़साना। मेरा दिल वापिस कर दो, मत रखो हक मालिकाना।। जब हम साथ थे लोगों में चर्चित था हमारा याराना। अफ़सोस रहेगा सदा रख न पाए दिल का नज़राना।। टुकड़ों में बदले तुम-मैं,कब अलग हुआ 'हम' हमारा नादां थे शायद हम भी कच्ची उम्र का था प्यार हमारा।। अरुणा कालिया

तुम्हारा मूड

हर रोज़ तुम्हारे मूड का बिगड़ना और मेरा सोचना, शायद आज किसी वजह से तुम परेशां हो। हर रोज़ तुम्हारी पसंद का काम करना फ़िर भी तुम्हारे मूड का बिगड़ना। अंदर मन को शायद यह बात पता थी, तुम मुझे पसंद नहीं करते, खुशफ़हमी मन में पाल जिए जा रही थी। हर बार मेरा तुम्हें मनाने की कोशिश करना और तम्हारा भन्नाना अंदर ही अंदर मुझे तोड़ता जा रहा था। शायद.. शायद,,, शायद करते करते ज़िंदगी का इतना लंबा सफ़र आज तुम्हारे साथ तय कर लिया है। अब तो जैसे मन ने स्वीकार कर लिया है तुम्हे तुम्हारे बिगड़े मूड के साथ। अब तो तुम्हें मनाना भी बंद कर दिया है। इस शरीर में आत्मा कहीं मर चुकी है मशीन हूँ मैं अब खाली-खाली आँखें हैं,भावना मर चुकी है। अरुणा कालिया

कुछ पल

कुछ पल  सोच में क्या पड़े, वे समझने लगे,तन्हा हैं हम। उनकेे सवाल के जवाब में  सवाल क्या सोचने लगे वे समझने लगे नासमझदार हैं हम।। उन्हें क्या पता उनके पांव तले की ज़मीं खिसक गई होती, जो उनके सवाल के जवाब में सवाल पूछ लेते हम।। अरुणा कालिया

तू ज़िंदा है

ऐ ज़िन्दगी तू जश्र मना देख तू ज़िंदा है यह क्या कम है, खुशियाँ मना ज़िंदगी के दिये ग़मों को मात दे दे, ज़िंदगी की नाक में दम कर दे तू ज़िंदा है यह क्या कम है। हर दुविधा को दिमाग़ से हल कर दिमाग़ लगा मार्ग चुन दुविधा को मात दे दे अपनी राह चल। तू ज़िंदा है यह क्या कम है। अरुणा कालिया

हमसफ़र

मुझे भी साथ ले लो हमनशीं हमसफ़र बन हमराह के हमराज़ बनो नाहक मसाइब से बचो राह तदबीर कर दिलशाद करो, राह मुसाहिब बन रहज़न से बचो। ख़ालिक सा इकराम तुझमें देखूं उन्स मुजाहिरा करूं तेरे सजदे में रूह की पैरहन बन साथ ले चलो। अरुणा कालिया 

पड़ाव

ज़िंदगी में आए अनेक पड़ाव हर पड़ाव पर लिया विश्राम हर विश्राम में बुने सुंदर सपने हर सपने ने दिया एक घाव हर घाव में था क्रांति सा भाव। घाव छोटा या बड़ा अनदेखा न करना घाव से करो एक दुश्मन सा बर्ताव घाव सदा से पीड़ा देता,नहीं आराम घाव को फेंको जड़ से उखाड़। अरुणा कालिया

बेरुख़ी

उनकी बेरुख़ी पर अब तो  होंठ भी सी लिए हमने, आँखों में रुसवाई जो देखी बरसना बंद कर दिया हमने। एक आह सी सुलगती है  अब भी दिल ही दिल में, सिसकने की आवाज़ को भी  बाहर लाना बंद कर दिया हमने। अरुणा कालिया

भरोसा

               'भरोसा' भरोसा होता भी है अपनों पर भरोसा तोड़ते भी अपने ही हैं। समझ अपनी पर भरोसा रखो न टूटेंगे अपने,न टूटेंगे रिश्ते। हमारे अपने जब साथ होते हैं, हम दिमाग़ पर ताला लगा लेते हैं सब कुछ उन पर छोड़ बैठ जाते हैं बस यहीं हम ग़लत हो जाते हैं। हमारे अपने भी ग़लती कर सकते हैं। उनकी ग़लती को हम नि: संकोच भरोसा तोड़ने का नाम दे बैठते हैं। चलो ग़लती सुधारें, रिश्ते संवारें भरोसे पर भरोसा रख, भरोसा करें। अरुणा कालिया

शहर में

शहर में हवा कुछ ऐसी चली समां कुछ सहमा-सहमा सा है। शहर में हवा कुछ ऐसी चली कारवां कुछ ठहरा-ठहरा सा है। यूं तो ज़िंदगी सांस ले रही शहर में आदमी कुछ डरा-सा है। कार्य हो रहे सभी यहां,पर हर आदमी बच कर चल रहा-सा है। शहर में हवा कुछ ऐसी चली हवा को भी छान कर पी रहा-सा है। अरुणा कालिया

क्षितिज

दूर क्षितिज पर तिमिर का घेराव जब हाहाकार कर शोर मचाए मनमंदिर में उठी उम्मीद की किरण धैर्य धारण कर धीरज बंधाए। बस कुछ पल और मचा ले शोर हाहाकार कर, ऐ क्षितिज तिमिर! उजाले की एक किरण ही है काफ़ी तेरा तम भगाने को। अरुणा कालिया

हिंदी दिवस

अपनी बात को स्पष्टत:  दूसरों तक पहुंचाना दूसरों की बात समझना। भाषा ही अहम् किरदार है। जब से बोलना सीखा हिंदी को माध्यम बनाया। हिंदी से भाव सीखे हिंदी में ही बातें करते, जीवन को समझा जबसे हिंदी को ही अपनाया। अरुणा कालिया

नारी प्रेम

नारी प्रेम देह से बढ़कर दिल की गहराइयों से जुड़ा होता है। पुरुष के प्रेम में सच्चाई देख पलकें बिछा दे, नारी। और पुरुष का प्रेम! मात्र होंठों का रसपान, देह के सुख तक सीमित क्यों है? आँखों की गहराई में छिपा प्रेम वह देख नहीं पाता, स्त्री देह की कामना से परे प्रेम को समझने वाली पाखी नज़र उसके पास शायद है ही नहीं। अरुणा कालिया

रोशनी का आह्वान

सूरज तो सूरज है रोशनी फैलाता हरदम प्रथम आह्वान करो, तुम। संसार नहाता प्रतिदिन रोशनी से भर लबालब, अज्ञानता दूर करो, तुम। रोशन कर लो अपना जहां मन का सूरज जगा लो। ज्ञान-प्रकाश मुखरित कर लो प्रथम अंतर्ज्ञान जगा लो, तुम। अरुणा कालिया

भटकते रास्ते

भटकते रास्ते हैं, रोशनी का आह्वान करो, तुम! एक नन्हीं किरण भी मार्ग प्रशस्त कर सकती है। मन से आंतरिक बल का आह्वान करो, तुम! घना अंधेरा भी रोशनी का प्रतिबिंब हो सकता है। भटके मार्ग में अपनी समझ का आह्वान करो, तुम! प्रकृति की भाषा उंगली पकड़ राह सुझा सकती है। कितना भी हो कठिन मार्ग,आत्मबल न खोना, तुम! आत्मबल ही भटकते रास्ते से बाहर निकाल सकता है। अरुणा कालिया

फूल

--'फूल'  फूल नाज़ुक सा बचपन है फूल नटखट सा मचलता है मन-सा हवा संग उड़ान भरता तारों से परे जाने की चाह रखता। फूल वादियों को सुरभित करता क्रोधित हो जाए तो घाव भी करता भंवरे को आकर्षित कर आलिंगन में भरता। साज श्रृंगार कर फ़िज़ाओं को महकाता। फूल शब्द छोटा पर महत्त्व बड़ा रखता धरती का श्रृंगार कर खुद पर इतराता मानव को समझाता,छोटा हूँ, पर काम बड़े आता हूँ। अरुणा कालिया

आँखों से छलकता है

प्रेम रूह की गहराई है प्रेम आँखों से बयां होती है प्रेम रूह के समुंदर में पलता है आँखों से मोती बन छलकता है प्रेम दो नैना हैं साथ जगते हैं, साथ पलक झपकते हैं, साथ ही पलक बंद कर मनन करते हैं। प्रेम दो किनारे हैं, साथ चलते हैं सुख-दुख सब साथ झेलते हैं। पवित्रता की वह मिसाल है नैनों से पूछो, आंसू साथ बहाते हैं खुशी भी साथ मनाते हैं प्रेम राधा है,प्रेम कृष्ण है प्रेम अलौकिक है, पारदर्शी है। प्रेम मनुष्य है,प्रेम मनुष्यता है। प्रेम की गहनता समझ से परे है जिसे समझ आ जाए वह कृष्ण है। अरुणा कालिया

तारों की चांदनी

अमावस्या की रात में तारों की थी चांदनी।  चमक पर तारों का इतराना था लाज़मी। धरती पर पड़ती  अपनी चमक को देख, तारों ने जश्न की रात  बड़े यत्न से मना ली। चांदी ही चांदी थी सब  तरफ़ रात थी सुहानी। अमावस्या की रात में  तारों ने मनाई दीपावली। कुछ तारे उदास थे, खुशी के पीछे छिपे  ग़म के साए थे। कुछ समझदार तारे बोले कल की चिंता क्यों करते हो कल जो होगा देखा जायेगा आज तो खुशी का पल  जी लो,न जाने दो,  जी भरकर आनंद लो। छोटी-छोटी खुशियों से यूं मुंह मोड़ोगे, बड़ी-बड़ी खुशियों से भी हाथ धो लोगे। अरुणा कालिया

ख़ामोशी या अंतर्मन की खुशी

प्यार में ख़ामोशी का अपना एक अलग मुक़ाम है अंतर्मन की खुशी के आनंद का एक अलग रुआब है।। प्यार प्यारा सा अहसास है इंसानियत का आभास है मानवता के सद्गुणों से भरपूर जीवन का आकार है।। प्यार पूजा है इबादत है अपने महबूब को समर्पित है ईश्वर की दी सबसे नायाब प्रस्तुति मानव को अर्पित है।। अरुणा कालिया

प्यार की ओर

 चलो प्यार की ओर,जहां तक रोशनी ले जाए। चलो सांस की ओर जहां सांस में सांस आए।। चलो उस राह की ओर जो तुम्हें तुम तक ले जाए। चलो उस राह पर तुमसे तुम्हारा परिचय करवाएं।। चलो उस दिल से मिलने जिसने दिल चुरा लिया। चलो उससे मिलने जो दिल के बदले दिल दे गया।। चलो उस मंज़िल पर जहां प्यार का मंज़र नज़र आए। चलो उस प्यार से मिलने जिसमें हमें खुदा नज़र आए। अरुणा कालिया

मेरी चाहत

मेरी चाहत बरसात की बूंदें नहीं जो बरसतीं भिगोतीं चली जाती मेरी चाहत धूप की किरण नहीं  आती रोशनी भरती चली जाती। मेरी चाहत ऋतुओं को झेलती धरा है, मौसम में साथ निभाती घर की छत है, मौसम की मार से बचाती, आवरण है, मेरी चाहत राह में छोड़ जाने वाली नहीं यह रग रग में समाने वाला रक्त-कण है। अरुणा कालिया

कथानक

सच्चे और समझदार में  तथा  सच्चे और बेवक़ूफ़ मेंं  कम अंतर है। सच्चाई में समझदारी  मिल जाए तो  कथानक में निखार आ जाता है सच्चाई में बेवक़ूफ़ी  मिल जाए तो  कथानक धड़ाम से भूमि पर  आ जाता है। अरुणा कालिया 

गुरु ज्ञान

गुरु ज्ञान का प्रकाश है, गुरु ज्ञान का सागर है जितने गहरे उतरते जाओ, थाह न पा अपार है।। ज्ञान-सागर अथाह है इसकी थाह न जाने कोई। गुरु का अनुसरण करे, भवसागर पार करे सोई। गुरु ज्ञान व्यर्थ न जाही, जीवन सरल-सुगम बनाही। अज्ञानी ज्ञानी हो कर, प्रकाश की ज्योति फैलाही।। अरुणा कालिया

सुबह की किरण

सुबह की किरणों को देखो मन में उतरने का आह्वान करो खुद में आत्मसात करो उड़ते पंछियों को देखो उनकी उड़ान में खुद को शामिल करो फ़िर देखो रोम रोम में नई  स्फ़ूर्ति पाओगे रोशनी की किरण नई उम्मीद में पाओगे सुबह की किरण से प्यार करो खुद को रोशनी में पाओगे। ऐसी रोशनी निराशा के तम को दूर कर मन में उम्मीदों के दिए  प्रज्वलित करेगी, स्वछंद उड़ान भर स्वछंद आकाश में गोते लगाकर असंख्य जन में जीने का संचार पाओगे। अरुणा कालिया