दायित्व समाज के प्रति

टी.वी.सीरियल के कथानक से कदापिआभास नहीं हो पाता कि वे समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं।कोई भी चैनल हो, रिश्तों में मिठास की जगह इतनी कड़ुवाहट और नफ़रत दिखाई जा रही है कि घरेलु हिंसा के शिकार और भी भयभीत होते जा रहे हैं क्योंकि हिंसा करने वालों को नित नए-नए तरीके जो इन कहानियों के माध्यम से सुझाए जा रहे हैं।ऐसा जान पड़ता है कि हिंसा करने वालों को और नए- नए उपाय सुझाने में मदद दी जा रही है।
        धन कमाने के लिए इंसानियत का गला घोंटना क्या इतना ज़रूरी हो गया है कि कहानी इस हद तक ले जाने की जरूरत पड़ रही है कि सारी मर्यादाओं को लाँघना पड़ जाए......। जो सीढ़ी मान मर्यादाओं को लाँघ कर आगे बढ़ जाए, ऐसी कहानियाँ समाज को गंदगी के सिवा और क्या दे सकती हैं ...........।अखबारों में जब हम इंसानियत को तार-तार करने वाली खबर पढ़ते हैं तब ऐसा लगता है कि हाथ से सबकुछ निकलता जा रहा है। नियम-कानून सब ताक पर लग गए हैं ।भारत का संविधान जैसे किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया है ।
कभी-कभी आज के हालात हमें सोचने को मजबूर कर देते हैं कि कहीं आज की पीढ़ी को कंप्यूटर थमा कर कोई गलती तो नहीं कर दी ।आज की पीढ़ी के हाथ में हमने कंप्यूटर तो थमा दिया है पर कंट्रोल अपने हाथ में न रखने के बजाए ऐसे हाथों में दे दिया है  जिसके पास दिमाग़ तो है पर तजुर्बा नहीं है ,बिल्कुल वैसे ही जैसे कि बंदर के हाथ में माचिस थमा कर हम उसे तीली जलाने की भी तालीम दे रहे हैं ।
    कहानीकारों तथा निर्माताओं से नम्र निवेदन है कि समाज को सुधारने या कुरीतियों को जन्म देने में लेखकों की और चलचित्र निर्माताओं की बहुत अहम् भूमिका होती है । हम और आप भी इसी समाज में रहते हैं।इसलिए समाज के प्रति अपने दायित्व को समझते हुए ही निर्माण पर ध्यान देना होगा।
 क्या आपको नहीं लगता कि आप जो कुछ समाज को परोस कर दे रहे हैं ,वह वापिस हम पर ही भारी पड़ सकता है।अरे भई, हमारा परिवार भी तो इसी समाज का हिस्सा है। हमारे बच्चे भी वही सीख ले रहे हैं जो औरों के बच्चे सीख ले रहे हैं। अपने बच्चों के लिए क्या आपने कोई अलग संसार अर्थात् किसी दूसरे ग्रह पर अपनी दुनिया बसा रखी है कि जिसके कारण आपको अपने बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है।

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