शहर की गलियाँ

शहर की गलियाँ
साफ सुथरी होंगी कभी
यह सपना संजोए
जी रही हूँ कब से
       अपने आस-पास
       बताती फिर रही
        सबसे ,मत फेंको
         कचरा इधर-उधर .
सब सुनकर
अनसुना कर रहे
अपने ही घर को
गंदा कर रहे.
   

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