संतान ही दौलत है।
बड़े बदनसीब होते हैं वे
जिन्हें मात-पिता का संग नहीं मिलता.
तरसी निगाहों से
जहाँ को देखा किया करते हैं .
जहाँ की आँखों में दिख जाए
आत्मीयता थोड़ी सी ,
बस यही आस लिए
जीया करते हैं.
उनसे भी बड़े बदनसीब होते हैं
जो माता-पिता का प्यार
पाकर भी नहीं पाते हैं.
उनके होने की कद्र
नहीं जान पाते हैं.
बिन माँ-बाप के जीना क्या होता है
अहसास किए बिना जिए जाते हैं ,
बात-बात पर उनका
अपमान किए जाते हैं.
कोई तो बताए उन्हें
बच्चे ही तो उनकी
दौलत होते हैं.
इस दौलत के बिना वे
खुश नहीं हो पाते हैं.
चाँद तारे भी तोड़कर
कदमों में रख छोड़े हैं.
कभी देखा है उन्हें
किसी और दौलत के पीछे भागते हुए.
द्वेष विद्रोह भी करते जहाँ से
संतान की खातिर,
संतान ही न समझ पाए
सोच-सोच घुट-घुटकर जीए जाते हैं.
बड़े बदनसीब होते हैं
जो मात-पिता को
समझ नहीं पाते हैं ,
सारे जहाँ की खुशियाँ जो
संतान के कदमों पर
डालने को दिवाने हुए जाते हैं.
जिन्हें मात-पिता का संग नहीं मिलता.
तरसी निगाहों से
जहाँ को देखा किया करते हैं .
जहाँ की आँखों में दिख जाए
आत्मीयता थोड़ी सी ,
बस यही आस लिए
जीया करते हैं.
उनसे भी बड़े बदनसीब होते हैं
जो माता-पिता का प्यार
पाकर भी नहीं पाते हैं.
उनके होने की कद्र
नहीं जान पाते हैं.
बिन माँ-बाप के जीना क्या होता है
अहसास किए बिना जिए जाते हैं ,
बात-बात पर उनका
अपमान किए जाते हैं.
कोई तो बताए उन्हें
बच्चे ही तो उनकी
दौलत होते हैं.
इस दौलत के बिना वे
खुश नहीं हो पाते हैं.
चाँद तारे भी तोड़कर
कदमों में रख छोड़े हैं.
कभी देखा है उन्हें
किसी और दौलत के पीछे भागते हुए.
द्वेष विद्रोह भी करते जहाँ से
संतान की खातिर,
संतान ही न समझ पाए
सोच-सोच घुट-घुटकर जीए जाते हैं.
बड़े बदनसीब होते हैं
जो मात-पिता को
समझ नहीं पाते हैं ,
सारे जहाँ की खुशियाँ जो
संतान के कदमों पर
डालने को दिवाने हुए जाते हैं.
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