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हिमालय की चोटियाँ ( कविता)

हिम से आच्छादित हिमालय की चोटियाँ आकाश को छूना चाहें मेरे देश का मान बढ़ाकर विश्व में उच्च स्थान दिलाए शीशमुकुट बनकर देश की शोभा सरसाए प्राकृतिक सुंदरता का भंडार है इसमें हरियाली का कारण कहलाए प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय दुश्मन के छक्के छुड़ाए औषधि का भरपूर भंडार है देश को निरोग बनाए पर्वतश्रँखलाएं परिवार है इसका पार्वती का घर कहलाए ऋषिमुनि तपकर यहाँ ज्ञान की ज्योति जगाएँ हिम से आच्छादित हिमालय की चोटियाँ आकाश को छूना चाहें.

याद हमारी

जाते हो तो सुनते जाओ याद हमारी से पीछा छुड़ा न पाओगे. जाते हो तो सुनते जाओ मुड़ मुड़ कर देखोगे पर हमें न फिर देख पाओगे जाते हो तो सुनते जाओ हर घड़ी तुमको याद आएँगे पर हमें न फिर ढूँढ़ पाओगे. यह सच है पास रहकर न कीमत आदमी की कोई जान पाया है दूर जाकर ही तुम वजूद हमारा शा़यद जान पाओगे. चलो अच्छा है दूर जाकर ही सही कद्र हमारी जान पाओगे. जाते हो तो सुनते जाओ याद हमारी से पीछा छुड़ा न पाओगे.

सफल होने का राज़ ,चौकन्ना होकर रहना

चौकन्ना होना सफल रहने का एक ऐसा राज़ है ,जो सभी न तो जान पाते हैं और न ही जानने की कोशिश कर पाते हैं . दरअसल कार्य करना और समय पर कार्य करना दोनों में बड़ा अंतर है . कुछ लोग कार्य करना अपना धर्म समझते हैं चाहे वह कार्य समय पर हो या न हो .ऐसे में समय पर कार्य कर लेने वाले सफलता का झंडा अपने कार्य क्षेत्र में बड़े ही गौरवपूर्ण ढंग से गाड़ लेते हैं ,और पीछे रह जाने वाले भाग्य को दोष देकर स्वयं को निर्दोष मान कर बैठ जाते हैं हमने बड़े ही ऐसे प्रवचन सुने हैं जिसमें धर्म पर चलना और अधर्म पर न चलना ,इस बात पर अधिक से अधिक ज़ोर दिया जाता है ,. पर सफलता तो कर्म करने पर टिकी है ,..... कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ अर्थात् फल तो कर्म पर टिका है , वह अलग बात है कि कर्म अच्छा या बुरा है फल तो कर्म के साथ जुड़ ही जाता है . अब प्रश्न उठता है कि बुरे कर्म करने वाले सफल कैसे हो जाते हैं ? उत्तर अब फिर से वही ..चौकन्ना होना मुख्य बात है कर्म तो सब कर रहे हैं ,मगर सफलता उसे ही मिलती है जो सटीक समय पर सटीक वार या कार्य कर जाता है . लोग कहते हैं कि...

विश्व पर्यावरण दिवस

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वृक्ष और प्रदूषण .....विश्व पर्यावरण दिवस धरती को ग़ुलामी से बचाने के लिए जैसे स्वतंत्रता सेनानियों  का ही नहीं पूर्ण जनगण का  सहयोग मिला , बिल्कुल वैसे ही समस्त देशवासी का ध्यान इस ओर लाना बेहद आवश्यक हो गया है , छोटे बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग भी इस स्वच्छ भारत अभियान में शामिल हों.कोई भी कहीं भी चाहे आप घर में हो या घर के बाहर , पूरी धरती को अपना घर समझें , अपने घर को तो हमें ही साफ़ रखना है. प्लास्टिक का पूर्णतया बहिष्कार करना है , तभी हम अपनी धरती को प्रदूषण मुक्त कर पायेंगे.

सागर सा अथाह

तन्हा मन सागर सा अथाह जग. सब अपने, कोई न अपना सब चल रहे,मंज़िल से भटक रहे अपनी धुन में मगन चल रहे ,बस चल रहे. तन्हा मन ढूँढ रहा क्या,जाने न हर राही में ढूँढ़े ,अपना अक्स . हर चेहरा अनजाना लगे अजनबी सा हर कोई लगे साथ हैं सब ,फिर भी तन्हा मन सागर सा अथाह जग

संतान ही दौलत है।

बड़े बदनसीब होते हैं वे जिन्हें मात-पिता का संग नहीं मिलता. तरसी निगाहों से जहाँ को देखा किया करते हैं . जहाँ की आँखों में दिख जाए आत्मीयता थोड़ी सी , बस यही आस लिए जीया करते हैं. उनसे भी बड़े बदनसीब होते हैं जो माता-पिता का प्यार पाकर भी नहीं पाते हैं. उनके होने की कद्र नहीं जान पाते हैं. बिन माँ-बाप के जीना क्या होता है अहसास किए बिना जिए जाते हैं , बात-बात पर उनका अपमान किए जाते हैं. कोई तो बताए उन्हें बच्चे ही तो उनकी दौलत होते हैं. इस दौलत के बिना वे खुश नहीं हो पाते हैं. चाँद तारे भी तोड़कर कदमों में रख छोड़े हैं. कभी देखा है उन्हें किसी और दौलत के पीछे भागते हुए. द्वेष विद्रोह भी करते जहाँ से संतान की खातिर, संतान ही न समझ पाए सोच-सोच घुट-घुटकर जीए जाते हैं. बड़े बदनसीब होते हैं जो मात-पिता को समझ नहीं पाते हैं , सारे जहाँ की खुशियाँ जो संतान के कदमों पर डालने को दिवाने हुए जाते हैं.

लम्हे

ज़िंदगी थी लम्हे थे और एक परिंदा . लम्हे बचाकर जोड़ता रहा वह ज़िदगी जब खर्च करना चाहा न लम्हे थे न ज़िंदगी की मशाल.