सागर सा अथाह

तन्हा मन
सागर सा अथाह जग.
सब अपने, कोई न अपना
सब चल रहे,मंज़िल से भटक रहे
अपनी धुन में मगन
चल रहे ,बस चल रहे.

तन्हा मन
ढूँढ रहा क्या,जाने न
हर राही में ढूँढ़े ,अपना अक्स .
हर चेहरा अनजाना लगे
अजनबी सा हर कोई लगे
साथ हैं सब ,फिर भी
तन्हा मन
सागर सा अथाह जग


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