सफल होने का राज़ ,चौकन्ना होकर रहना

चौकन्ना होना सफल रहने का एक ऐसा राज़ है ,जो सभी न तो जान पाते हैं और न ही जानने की कोशिश कर पाते हैं .
दरअसल कार्य करना और समय पर कार्य करना दोनों में बड़ा अंतर है . कुछ लोग कार्य करना अपना धर्म समझते हैं चाहे वह कार्य समय पर हो या न हो .ऐसे में समय पर कार्य कर लेने वाले सफलता का झंडा अपने कार्य क्षेत्र में बड़े ही गौरवपूर्ण ढंग से गाड़ लेते हैं ,और पीछे रह जाने वाले भाग्य को दोष देकर स्वयं को निर्दोष मान कर बैठ जाते हैं
हमने बड़े ही ऐसे प्रवचन सुने हैं जिसमें धर्म पर चलना और अधर्म पर न चलना ,इस बात पर अधिक से अधिक ज़ोर दिया जाता है ,.
पर सफलता तो कर्म करने पर टिकी है ,.....
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥
अर्थात् फल तो कर्म पर टिका है , वह अलग बात है कि कर्म अच्छा या बुरा है फल तो कर्म के साथ जुड़ ही जाता है .

अब प्रश्न उठता है कि बुरे कर्म करने वाले सफल कैसे हो जाते हैं ?
उत्तर अब फिर से वही ..चौकन्ना होना मुख्य बात है कर्म तो सब कर रहे हैं ,मगर सफलता उसे ही मिलती है जो सटीक समय पर सटीक वार या कार्य कर जाता है .
लोग कहते हैं कि बुरा करने वाले सफल होते रहते हैं और अच्छा करने वाले बार बार मात खाते रहते हैं. इसका कारण साफ़ साफ़ यही नज़र आता है कि बुरा करने वाला पूरी तरह से चौकन्ना है ,उसे मालूम है कि वह गलत कर रहा है ,कहीं पकड़ा न जाए इस वजह से वह अत्यधिक चौकन्ना रहता है और जो सही है वह अलर्ट नहीं है,उसे लगता है कि वह तो सही है उसे अलर्ट रहने की जरूरत ही नहीं है ,बस यहीं वह मात खा जाता है ,यूँही नहीं कहा जाता कि दुश्मन को कभी भी कमज़ोर न समझो , दुश्मन का वार इसलिए खाली नहीं  जाता क्योंकि वह सही समय पर सटीक वार कर देता है और सही व्यक्ति  अलर्ट न होने की वजह से उसका शिकार हो जाता है .

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