बसंती रंग

बसंती रंग बिखराता रवि
धरती पर सौंदर्य सरसाता रवि
कण कण में शामिल होकर
अपनी उपस्थिति लिखवाता रवि।

चलो झूम आएँ, होकर पवन पे सवार
फूलों ने कहा पंछियों से
हाथ में लेकर पवन-पतवार ।
संध्या कुमारी जब उतरेगी धीरे धीरे
इठलाती बिखराती  लेकर ठंडी बयार ।

भँवरा फूलों पर गुन गुन
अधखिली कली को बुन बुन
प्यार की पोथी पढ़ाकर
जीवन की सीढ़ी चढ़ाकर।

पवन कर्ण राग सुनाकर
सितारों के तार छेड़ छेड़
बसंत ऋतु संगीत बजाकर
उतरा धरातल पर,बाँसुरी बजाकर।

बसंती रंग बिखराता रवि
धरती को अपने रंग में रंग जाता रवि ।



टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेघ आए, पाठ योजना

उगता सूरज

प्रसिद्ध धार्मिक-पुस्तकें पढ़नी ही चाहिए- (लेख )