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संतान ही दौलत है।

बड़े बदनसीब होते हैं वे जिन्हें मात-पिता का संग नहीं मिलता. तरसी निगाहों से जहाँ को देखा किया करते हैं . जहाँ की आँखों में दिख जाए आत्मीयता थोड़ी सी , बस यही आस लिए जीया करते हैं. उनसे भी बड़े बदनसीब होते हैं जो माता-पिता का प्यार पाकर भी नहीं पाते हैं. उनके होने की कद्र नहीं जान पाते हैं. बिन माँ-बाप के जीना क्या होता है अहसास किए बिना जिए जाते हैं , बात-बात पर उनका अपमान किए जाते हैं. कोई तो बताए उन्हें बच्चे ही तो उनकी दौलत होते हैं. इस दौलत के बिना वे खुश नहीं हो पाते हैं. चाँद तारे भी तोड़कर कदमों में रख छोड़े हैं. कभी देखा है उन्हें किसी और दौलत के पीछे भागते हुए. द्वेष विद्रोह भी करते जहाँ से संतान की खातिर, संतान ही न समझ पाए सोच-सोच घुट-घुटकर जीए जाते हैं. बड़े बदनसीब होते हैं जो मात-पिता को समझ नहीं पाते हैं , सारे जहाँ की खुशियाँ जो संतान के कदमों पर डालने को दिवाने हुए जाते हैं.

लम्हे

ज़िंदगी थी लम्हे थे और एक परिंदा . लम्हे बचाकर जोड़ता रहा वह ज़िदगी जब खर्च करना चाहा न लम्हे थे न ज़िंदगी की मशाल.

माँ

To all mothers           "माँ " 'माँ'शब्द में जितनी सौम्यता सुंदरता   और  तन्मयता है प्यार,स्नेह औ' वात्सल्यता का तारतम्य है . उससे कहीं अधिक वह अपने में लिए हुए है प्यार,स्नेह की स्निग्धता माँ सिर्फ माँ है , चाहे उसने किसी बच्चे को जन्म दिया हो या नहीं .

समय की गाड़ी

समय के साथ समय की गाड़ी,करे जो सवारी मंज़िल की ओर बढ़ता जाए. बिना विलंब मंज़िल तक पहुँचाए. समय की गाड़ी,करे जो सवारी न रहे अधूरा,हर काम हो पूरा कार्यक्षेत्र में उसकी पूजा अथक प्रयास देख देख समय मुस्काए-मुस्काए, चाँद देख मुस्कुराए, बाँहे फैलाए धरती को देख ,मंद-मंद मुस्काए, अचंभित हो-हो प्राणी को देखे, मुस्कान बिखेरे ,चाँदनी सा हर्षाए. समय की गाड़ी हाँकता जाए रुकता न कभी, थकता न कभी, बहता जाए, समय के साथ सफल प्राणी, मंद मंद मुस्काए. समय की गाड़ी करे जो सवारी न रहे अधूरा ,हर काम हो पूरा रहे सदा ही अग्रिम अगाड़ी आशीष पाए सदा सुख पाए.

शहर की गलियाँ

शहर की गलियाँ साफ सुथरी होंगी कभी यह सपना संजोए जी रही हूँ कब से        अपने आस-पास        बताती फिर रही         सबसे ,मत फेंको          कचरा इधर-उधर . सब सुनकर अनसुना कर रहे अपने ही घर को गंदा कर रहे.    

जो ज़िंदगी भर रुलाते रहे

जो जिंदगी भर रुलाते रहे वही अब वफा की बात करते हैं हमारी बदसूरती​ का मज़ाक उड़ाया जीवन भर वही नफ़रत मिटाने की बात करते हैं प्यार​ की एक झलक को तरसते रहे वे कहते हैं नफरत में क्या रखा है , मुहब्बत से पेश आया करो । हद तो तब हो गई जब वे कहने लगे जिंदगी पल दो पल का साथ है खुश रहकर बिताया करो । दो मीठे बोल ही हैं जो इंसा को मिलाते इंसा से नफ़रत करने वाले क्या ख़ाक जिया करते हैं। अरुणा कालिया