संदेश

इंसान इंसान से दूर हुआ

कभी कोई मजबूरी रही होगी कभी कोई हादसा हुआ होगा तभी इंसान ख़ुदग़र्ज़ बना होगा जज़्बे- काफ़िला लफ़्ज-नश्तरों से कभी तो बेइंतहा घायल हुआ होगा। तभी इंसान इंसान से दूर हुआ होगा। समय की मलहम ने अब चेताया है इंसान अपने आप से लज्जाया है ग़लती का अहसास ख़ुद ने करवाया है अब जब ज़मीर अपना शोर मचा रहा ज़ोर ज़ोर से इंसान को झकझोर रहा। समय की पुकार है ग़लती हुई सुधार करो सुधार करो, सुधार करो, सुधार करो। अरुणा कालिया

अबला नहीं सबला

जन जन में रच रही अपनी सुंदरतम बात कर्म शील बन रही कर कर लंबे हाथ। इतिहास रचा स्वयं बन बन सबला अवतार झांसी की रानी तू अवतरित उठाकर तलवार। कलाई पहनें चूड़ियां भर भर कर श्रृंगार आस न छोड़ी तूने कितना भी हो अपमान। स्वाभिमानी है तू सबला बनने की ठानी जग समझे लाख अबला शक्ति तुझमें निराली

उन दिनों की बात है.…

मुझे बहुत अच्छे से स्मरण है वह 14 नवंबर का दिन था।उस दिन हमारे स्कूल में खेल दिवस मनाया जा रहा था। मैं तब नवीं कक्षा में पढ़ती थी।उस दिन मैंने भी खेल में भाग लिया था।सौ मीटर की रेस में भी और बाधा दौड़ में भी। सौ मीटर की दौड़ में दूसरे स्थान पर रही । उसके पश्चात् मुझे बाधा दौड़ में हिस्सा लेना था। ए,सुन! मैंने हैरानी से जिधर से आवाज़ आई थी, देखने लगी,वह मुझे मेरी बांँह पकड़ कर एक तरफ़ ले गई ,एक लड़की मेरी ही कक्षा की थी,जो थोड़ी बड़ी थी, पर हमारी ही सहपाठी थी, मैंने थोड़ा खीझते हुए अपना हाथ छुड़ाते हुए पूछा,"क्या है सुमन? तुम मुझे बाहर क्यों ले आई हो, वहाँ बाधा दौड़ की प्रतिस्पर्धा होने वाली है"। "अरुणा मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम इस दौड़ में शामिल मत होओ," सुमन ने बड़ी बहन की तरह हक जताते हुए कहा ।  मैं उससे छिटककर दूर हो गई और एक तरह से चिल्ला कर बोली," क्या है सुमन, तुम मुझे बाहर क्यों निकाल कर लाई हो,वहाँ बाधा दौड़ शुरू हो गई है" । सुमन ने मेरे कान में फुसफुसा कर कहा,"तेरे कपड़े गंदे हो रहे हैं "।  "हां,तो क्या?,"मैंने बड़ी लापरवाही ...

कोशिशें

काव्याँचल मंच को नमन 🙏 कविता का शीर्षक है --- 'हमारी कोशिशें.. ' कोशिशें खुद को खुद से मनाने की कोशिशें खुद को खुद से जताने की | कोशिशें पस्त मत होने देना , खुद को खुद से यकीं दिलाने की , बहुत सी बातें बाकी हैं अभी खुद को खुद से परिचित कराने की | हैरान मत होना अपने अंदर कुछ अपरिचित सा कुछ अनजाना सा बदलाव देखकर , कुछ जाना सा ठहराव जानकर | बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी , खुद को खुद से परिचित कराने की बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी | अपने देश से गंदगी हटाने की बेकार प्लास्टिक को समूल मिटाने की चलो नया करें आविष्कार वैज्ञानिक विधि से मिटा कर, खुद को उदाहरण बनाएं चलो| बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी , खुद को खुद से परिचित कराने की| बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी | पहल खुद से ही कर लो क्यों देखें हम औरों को दूसरे भी शायद इसी इंतज़ार में हैं किसी का अनुसरण करने को , कुछ ऐसी कर जाएं पहल अनुकरणीय बन जाएं खुद हम  | बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी, खुद को खुद से परिचित कराने की बहुत सी बातें बाक़ी हैं अभी | प्रण लें खुद को खुद से वचनबद्ध होने का , न फेंकेंगे न फेंकने देंगे कोई भी ट...

शिक्षिका की शिक्षा जो आज भी याद है

मुझे बहुत अच्छे से याद है कि बरेली में मैं और मेरे भाई एक ही स्कूल में पढ़ते थे। मैं दूसरी, तीसरी और चौथी कक्षा तक वहाँ पढ़ी।उस स्कूल का नाम है- द चिल्ड्रन्स एकेडमी,बरेली होटल के पास। यही स्कूल का नाम था,बल्कि 'है ' कहना अधिक उपयुक्त है।वहाँ एक हिंदी विषय पढ़ाने के लिए मैडम थी उनका नाम था  "भटनागर मैम" ।हम सब बच्चे उन्हें मिस भटनागर कहकर बुलाते थे।उनकी पढ़ाई हुई हिंदी अब तक मेरे काम आ रही है। उन्होंने मात्राओं का इतना अच्छा ज्ञान दिया कि मैंने कभी भी मात्राओं की वजह से डाँट नहीं खाई।वे हमेशा से मेरे हृदय में सम्मान के साथ रही हैं। अरुणा कालिया

मन का डर

लेखिका :अरुणा कालिया शीर्षक - मन का डर हाँ , मेरे मन में भी अनहोनी का डर रहता है ,जैसा कि आजकल कोरोना वायरस का डर परेशान किये हुए है, हर समय एक अनजाना सा डर मन में रहता ही है |बेटा बाहर जाए तो भी, पति घर से बाहर जाएं तब भी मन डरा ही रहता है | आज भी दोपहर में बेटा और बेटी दोनों ही पास की मार्केट से घर की कुछ जरूरी चीज़े लेने चले गए |वापिस आने पर मैने दोनों को बाहर ही खड़ा कर दिया | जो सामान लाए थे, सामान सेे भरे थैले को घर की दहलीज़ के अंदर फ़र्श पर रखवा कर मैने दोनों बच्चों को सेनेटाईज़र से हाथ साफ़ करवाए | उसके बाद डिटोल के घोल को (जोकि पहले से ही एक स्प्रे वाली बोतल में बनाकर तैयार रखा था) उन दोनों को सिर से पाँव तक स्प्रे से एक तरह से नहला ही दिया | इसके बाद दोनों बच्चे घर के अंदर दाखिल हुए, बेटा राघव कहने लगा, 'मम्मा आप कुछ ज़्यादा ही डरते हो, दीदी से पूछ लो, हमने मास्क भी लगाकर रखा था, है न दीदी, बता न  मम्मी को, '|दोनों बच्चों की बात करने तक मैं दो गिलासों में गरम पानी पीने के लिए ले आई, और दोनों बच्चों के हाथ में गरम पानी वाले गिलास पकड़ा दिए और फटाफट पी जाने को कहा...

बचपन की शिक्षा

लेखिका :अरुणा कालिया शीर्षक   बचपन की शिक्षा (कहानी में दिया गया नाम काल्पनिक है)। मैं स्कूल में हिंदी शिक्षिका के रूप में कार्यरत हूंँ ,जब कभी स्टाफ़ की कमी होती है तो किसी दूसरी अध्यापिका को एडजस्ट कर दिया जाता है। ऐसे ही एक दिन मेरा भी एडजस्टमेंट एक छोटी कक्षा में लगा।कक्षा दूसरी में मेरी ड्यूटी थी। वहांँ मुझे कोई विषय तो पढ़ाना नहीं था, इसलिए मैंने बच्चों के साथ बातचीत शुरू की। बातों ही बातों में बच्चे कहानी सुनने की ज़िद करने लगे। मैं भी कहानी सुनाने को तैयार हो गई। मैंने कहानी सुनानी शुरू की। एक बार आप जैसा एक बच्चा था।उसकी मम्मी ने भी उसे स्कूल में पढ़ने भेजा।उस बच्चे का नाम था राहुल।अब राहुल भी रोजाना पढ़ने स्कूल जाने लगा। एक दिन उसे किसी दूसरे बच्चे की एक सुंदर सी रंग-बिरंगी पेंसिल दिखाई दी। राहुल को पेंसिल बहुत अच्छी लगी।उसे लगा कि अगर मैं माँगूँगा तो यह मना कर देगा।यह सोचकर उसने उस पेंसिल को चुपचाप अपने बैग ‌(बस्ते) में रख लिया।घर जाकर उसने अपनी मां को वह सुंदर पेंसिल दिखाई।और कहा," माँ मैं यह पेंसिल स्कूल से लाया हूँ"। माँ ने कहा,"अरे वाह!यह तो बहुत सुं...