हमारी शिक्षा नीति
किताबी कीड़ा न बन ,
समझ से भरपूर हो,आज की शिक्षा नीति।।
जहाँ डाँट जरूरी है,
डाँटने से न रोको।
अच्छा क्या ,बुरा क्या
यह समझ डाँट से ही आती है।
किताबी कीड़ा न बन
समझ से भरपूर हो, आज की शिक्षा नीति।
पाबंदी डाँट पर नहीं,शोषण पर लगाओ।
शोषण न हो किसी अपने का
यह अनुभव किताबें नहीं सिखाती हैं,
किताबी कीड़ा न बन
समझ से भरपूर हो, आज की शिक्षा नीति।
स्वतंत्रता तो मिलनी ही चाहिए
अपने को उसकी त्रुटी बताने की।
सभ्य असभ्य में अंतर
किताबें नहीं सिखाती हैं,
किताबी कीड़ा न बन
समझ से भरपूर हो, आज की शिक्षा नीति।
-अरुणा कालिया
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें