संदेश

तुम्हारा मूड

हर रोज़ तुम्हारे मूड का बिगड़ना और मेरा सोचना, शायद आज किसी वजह से तुम परेशां हो। हर रोज़ तुम्हारी पसंद का काम करना फ़िर भी तुम्हारे मूड का बिगड़ना। अंदर मन को शायद यह बात पता थी, तुम मुझे पसंद नहीं करते, खुशफ़हमी मन में पाल जिए जा रही थी। हर बार मेरा तुम्हें मनाने की कोशिश करना और तम्हारा भन्नाना अंदर ही अंदर मुझे तोड़ता जा रहा था। शायद.. शायद,,, शायद करते करते ज़िंदगी का इतना लंबा सफ़र आज तुम्हारे साथ तय कर लिया है। अब तो जैसे मन ने स्वीकार कर लिया है तुम्हे तुम्हारे बिगड़े मूड के साथ। अब तो तुम्हें मनाना भी बंद कर दिया है। इस शरीर में आत्मा कहीं मर चुकी है मशीन हूँ मैं अब खाली-खाली आँखें हैं,भावना मर चुकी है। अरुणा कालिया

बारबर शॉप

मूंछों पर ताव मार कर दिखता बंदा हैंडसम ऐसा गेटअप चाहिए तो मेरी शॉप पे कम कम दाढ़ी के कट्स फ़्री हैं, दिखना रॉनगिरी है केशन का है ज़माना, ऐसा गेटअप चाहिए तो..... 1.मॉडर्न सेलून है यूनिवर्स, बन जा बाबू हैंडसम     स्पा बड़ा है फ़ेमस ब्यूटिफुल है मेकअप    शेम्पू भी करवा लो रेशम से केश बनवालो    दाढ़ी कट तो फ़्री है, दिखना स्टाइलगिरी है     बारबर का है बोलबाला , ऐसा गेटअप चाहिए तो....  2.रणबीर का लुक बनवाकर बन जा बाबू हैंडसम     आज के दौर का गेटअप, मिट जाएगी टेंशन     सोच न तू अब कुछ भी, दिखना केशधारी है     फैशन का है ज़माना, ऐसा गेटअप चाहिए तो..... 3. मोदीकट बनवाकर बन जा बाबू हैंडसम     मोदी जी सा यूनीक बन,बनजा आज का आइकन    बाबू जी भी सेलिब्रिटी हैं दिखना मोदीगिरी है    मोदी जी का है ज़माना, ऐसा गेटअप चाहिए तो.....     

राम बसै

सीता राम मन बसै रावण बिगाड़ कछु न पावै तीर राम हृदय से छोड़ें रावण दहन हुई जावै। राम राज करैं रावण करे अट्टहास बुराई जीत न पावै सिर उगें चाहे हजार। ज्ञान विज्ञान धरा रहै मन में मैल बसाए अज्ञानी प्रेम-दीप धरै हृदय राम बस जाए।। अरुणा कालिया

क़लम का कमाल

क़लम का कमाल एक एक शब्द-बूंद सागर सी पुस्तक गागर में सागर चरितार्थ करें। अज्ञानी ज्ञानी बने अभद्र भद्र बने असभ्य सदाचारी। क़लम का कमाल शब्द-बूंद सागर भरे। अरुणा कालिया

क़िस्मत

हमारी क़िस्मत हमारी ही है इसे सोने मत दीजिए। दरवाज़ा खटखटाइए, दरवाज़ा ज़रूर खुलेगा। क़िस्मत इसी इंतज़ार में है, वह हमें जगाना चाहती है। अरुणा कालिया

बाधाएं

बाधाएं आती हैं हमें रोकने के लिए नहीं जागरूक करने के लिए। बाधाएं आती हैं विवश होने के लिए नहीं अधिक कर्मठ होने के लिए। बाधाएं हमारा रास्ता नहीं रोकतीं, अपितु रास्ते सुझाती हैं। बाधाओं का स्वागत करो,ये हमारे मस्तिष्क का व्यायाम करवाती हैं। अरुणा कालिया

नवल किरण

नवल किरण का स्वागत करने को आतुर धरा निशा काली अंधकूप से निकलने को आतुर धरा। अरुण अश्व रथ सवार रवि ज्यों-ज्यों छूता धरा तम का फैला साम्राज्य धराशाई होता देख धरा। क्षण-क्षण अंधकूप-बेड़ियों से स्वतंत्र हो रही धरा प्रतिक्षण रवि रश्मियाँ छोड़े चाँदी में नहाती धरा। कण-कण प्रकाशित हो चमक रही देखो यह धरा। दंभ टूटा तम भाग-खड़ा, दुम दबाकर, छोड़ यूं धरा। मनु विद्युतीय छड़ी ने खदेड़ दिया हो धरा से ज़रा धरती अंबर झूल रहे बयार की पींग बन सखी-सखा। अरुणा कालिया