संदेश

बुद्धिमान मनुष्य

मनुष्य पेड़ काटता है कागज़ बनाता है और उसपर लिखता है पेड़ बचाओ,पेड़ उगाओ ।।

मैत्री भाव का साकार रूप

मानव और प्रकृति मैत्री भाव का साकार रूप प्रकृति में दिखता खूब, मानव और प्रकृति का टकराता भिन्न स्वरूप। प्रकृति में संयम भरपूर मानव दंभ में चूर।।१।। बगीचा कहे, मैं धरती की शोभा हूँ विभिन्न जातियों के , रंगों के  फूलों को , पौधों को , संजोए हुए  लिपटाए हुए , दुलारे हुए खड़ा हूँ , युगों से , पृथ्वी पर ,मानवों के बीच । दुःख -सुख के प्राकृतिक आवागमन में  होता न विचलित,न विमुख न भयभीत ।।२।। हर पौधा है अपने निश्चित स्थान पर बिना होड़ के ,बिना दौड़ के  कर्तव्यनिष्ठ भावना से ओतप्रोत हैं ,मगन हैं  अपने कर्तव्य -निर्वाह में । निर्विघ्न राह पर बढ़ता नभ छूने की चाह में।।३।। मैं बाग़ीचा हूँ मानव की देख -रेख में रहता हूँ  मगर विडम्बना ,मानव ही  मुझसे नहीं लेता सीख  समभाव मित्र सरीखी राह में स्वयं को सर्वोपरि रखता दंभ भरा उसकी  चाह में।।४।। विपरीत नीति मानव समाज में- जाति भेद ,वर्ग विशेष  युगों से खड़ी है ,जहाँ-तहाँ  अनेक आये, समाज -सुधारक , कुरीतियों ने ले लिया और रूप नया । ...

धीरे धीरे

धीरे धीरे मौसम सामान्य होता है धीरे धीरे क्रोध शान्त होता है धीरे धीरे ही छँटती है सुबह के कोहरे की धुंध। धीरे धीरे ही होता है प्यार का अहसास, धीरे धीरे ही समझ आती है प्यार की गहराई। पर नहीं ठहरता है गये हुए समय का विधान। आसान होता है कितना ढाढ़स देना किसी को उसकी क्षतिपूर्ति के लिए धैर्य रखें ,कहना जितना आसान है उतना ही कठिन है व्यक्तिगत रूप में वहन करना दर्द की पीड़ा को धीरे धीरे। । धीरे धीरे जवाँ होती है विचारों की जद्दोजहद , धीरे धीरे ही समझ आता है ज़माने की सहानुभूति की चादर का ओढ़ाया जाना। धीरे धीरे ही समझ आता है समझ पाना, किसी का किसी के द्वारा शोषित होते पाया जाना। धीरे धीरे ही समझ आता है स्वयं को बंधन मुक्त करने का गुण। धीरे धीरे संभलने का नाम ही है जीवन जीने की कला  creative topic

हंस की प्रकृति

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देश भक्त

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यदि मैं जादूगर होता

यदि मैं जादूगर होता,   काम अनेक कर जाता,  जादू की छड़ी घुमाकर   उलझन सुलझाता,  नाम अपना करवाता।  काम कोई भी होता,  स्कूल का होमवर्क,  या मम्मी का वर्क,  छड़ी घुमाकर  झटपट कर जाता|  न मम्मी की डाँट,  न पापा की फटकार,  मेरे काम हो जाते,  झटपट सरकार।  दोस्तों में हीरो होता,  सब पर धाक जमाता|  जादूगर के कारनामों से,  करता दिलों पर राज|  गिलि गिलि छू,  गिलि गिलि छू  चाँद को बस में  कर लेता यूँ,  गेंद बनाकर  कभी खेलता  कभी बिछौना बनाकर   सोता यूं   गिलि गिलि छू   गिलि गिलि छू।  सबके मन की  बात समझकर  संकट सबके  कर देता दूर ,  पूरी दुनिया मेरी  मित्र बन जाती  और मैं मम्मी  पापा का सपूत |

माँ

माँ मुझे बाँहों में भर लो दुनिया की सहानुभूति से डर लगता है। माँ मुझे हृदय से लगा लो प्यार की सच्ची गरमाहट को महसूस करना चाहती हूँ । थक गई हूँ बनावटी मुस्कान बिखराते हुए दम भर को सच्ची मुस्कान देखना चाहती हूँ। माँ तुम्हारे अंक में समा जाना चाहती हूँ।