संदेश

दोस्त अन्मोल है

चित्र
लज्जयते च सुहृद् येन,भिद्यते दुर्मना भवेत्। वक्तव्यं न तथा किञ्चिद् विनोदे s पि च धीमता।।     अर्थात् अगर आप बुद्धिमान हैं,बड़ी अच्छी बात है,गर्व की बात है परन्तु इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि आप अपनी बुद्धिमानी से किसी को भी नीचा दिखाएँ या उसकी हँसी उड़ाएँ। अगर आपके सामने आपका मित्र है तो कभी भी मज़ाक में भी ऐसी बात न कहें,  जिससे कि आपका मित्र लज्जित हो और दुःखी होकर आपसे दूर हो जाए।सच्चा दोस्त मुश्किल से मिलता है,इसीलिए कहा गया है कि दोस्त अनमोल है। 

SUURYA KO NAMASKAAR

चित्र
pratyek samasya ka samadhaan hai -raushni-means Light.sabke mann ka bhatkaav bhi usi se door ho sakta hai.  SUURYA  KO NAMASKAAR JUGNU KII TARAH JALATE -BUJHATE taaron ke ahankaar ( proud) kii vahi maarak -shakti hai महाभारत  के युद्ध का आरम्भ मन के उलझाव और उससे उत्पन्न विघटनकारी शक्तियों से हुआ था । उसका अंत क्रान्ति की  रक्त पिपासा शांत  होने के बाद सूर्य -चक्र के गतिवान होने से ही हुआ ।    
ओजस्वी प्राणी का स्वरूप प्राणी का ओजस्वी होना अपने आपमें कितना सम्मानजनक शब्द है,यह वही समझ सकता है जो प्राणी मात्र की महत्ता को समझता है।इतना कुछ सीखने को  है कि एक ज़िंदगी भी छोटी पड़ जाए। तर्कशील मानव फिर क्यों संकीर्ण विचारों के साथ जी रहा है।प्यार बाँटो, ज्ञान बाँटो,शिक्षा बाँटो, भोजन बाँटो क्योंकि बाँटने में जो सुख मिलता है वह बेशकीमती वस्तुएँ खरीदने में भी  नहीं मिलता।आज मुझे बचपन का एक वाक्या याद हो आया है............ एक बार की बात है मैं जब मात्र छः या सात साल की थी और दूसरी कक्षा की छात्रा थी।मेरे साथ मेरी ही कक्षा में पढ़ने वाला एक छात्र था जिसका नाम था दीपक भारद्वाज।हम हमेशा साथ-साथ ही कक्षा में बैठते थे। उसका घर भी हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था। वह अक्सर हमारे घर आ जाया करता था और हम साथ बैठकर कक्षा में मिला गृह-कार्य करते थे।कुछ दिन यह सब बड़े अच्छे-ढंग से चलता रहा ,पर अचानक एक दिन मेरे पापा को पता नहीं क्या लगा कि वे हमें अलग करने की कोशिश में लग गए ।वह जब भी घर आता तो पापाजी झूठमूठ ही कह देते, "गुड्डी घर पर नहीं है,बेटा ,आप अपने घर पर बैठकर ही होमवर्क क...

स्वस्थ रहो ,खुश रहो

चित्र
संसार में आज हम जीवित हैं  इसलिए नहीं कि हम भोजन भरपेट ले रहे हैं बल्कि इसलिए कि हम स्वस्थ वातावरण में सांस ले रहे हैं । स्वस्थ वातावरण का तात्पर्य प्रदूषण रहित वातावरण ही नहीं बल्कि स्वस्थ पारिवारिक वातावरण भी है ।

देववाणी

दविद्युतत्या रुचा परिश्तोभन्त्या कृपा | सोमाः शुक्रा गवाशिरः | अर्थात,सौम्य शुद्ध तथा इन्द्रियों को वश में रखने वाले उपासक जन प्रकाशभान क्रान्ति और सर्वत्र प्रशंसित सामर्थ्य से युक्त रहा करते हैं |     सरल भाषा में अर्थ  ः         जो शुद्ध और पवित्र मन रखता है,तथा इंद्रियों को भटकने से बचा लेता है, ऐसा         व्यक्ति वास्तविकता में ईश्वर का सच्चा उपासक है ,भले ही वह नियमित रूप से पूजा-पाठ करे या न करे।        ऐसा व्यक्ति समाज में चहुँ ओर ज्ञानरूपी प्रकाश को फैलाता है तथा ऐसा व्यक्ति सब ओर  से  प्रशंसा               प्राप्त करता है और सब सुविधाओं से युक्त जीवन व्यतीत करते हैं।

Bharat Bhaavna Divas

Bharat Bhavna Divas ke mauke par ek Kavita par sab ka dhyan kendrit karne ka prayas karna chahati hoon. KAB JAAYEGA BACHPANA मैं ,  विभिन्न जातियों के विभिन्न रंगों के  फूलों को पौधों को ,अपने में संजोए हुए  खड़ा हूँ  कब से इस पृथ्वी पर  मानवों के बीच । दुःख -सुख के  प्राकृतिक आवागमन में  होता नहीं विचलित कभी  और न विमुख कभी । मनुष्य की देख -रेख में  रहता हूँ मगर  विडम्बना कि  मानव मुझसे  नहीं लेता सीख । जाति भेद की नीति  वर्ग विशेष की बीथि  युगों से खड़ी है  जहाँ तहाँ  अनेक आये  समाज -सुथारक  मगर कुरीतियों ने ले लिया  और रूप नया । मैं , बागीचा हूँ  धरती की शोभा हूँ । मानव -स्वभाव पर  रोता हूँ  फूलों को रोंदता है  काँटों को समेटता है  कब जाएगा मानव  तेरा यह बचपना ।

अनमोल वचन

उन्हें स्वामिभक्त न समझ जो तेरी हर कथनी व करनी की प्रशंसा करे ,अपितु उन्हें जो तेरे दोषों की मृदुल आलोचना करे --------------सुकरात   प्रकाश जब क्षीण हो जाता है ,तभी अद्भुत का प्रादुर्भाव होता है                                                                                         रवींद्र नाथ ठाकुर  हर वर्ष एक बुरी आदत को जड़ से खोदकर फेंका जाए तो कुछ काल में बुरे से बुरा व्यक्ति भला हो सकता है                                                                                                    ...