ओजस्वी प्राणी का स्वरूप प्राणी का ओजस्वी होना अपने आपमें कितना सम्मानजनक शब्द है,यह वही समझ सकता है जो प्राणी मात्र की महत्ता को समझता है।इतना कुछ सीखने को है कि एक ज़िंदगी भी छोटी पड़ जाए। तर्कशील मानव फिर क्यों संकीर्ण विचारों के साथ जी रहा है।प्यार बाँटो, ज्ञान बाँटो,शिक्षा बाँटो, भोजन बाँटो क्योंकि बाँटने में जो सुख मिलता है वह बेशकीमती वस्तुएँ खरीदने में भी नहीं मिलता।आज मुझे बचपन का एक वाक्या याद हो आया है............ एक बार की बात है मैं जब मात्र छः या सात साल की थी और दूसरी कक्षा की छात्रा थी।मेरे साथ मेरी ही कक्षा में पढ़ने वाला एक छात्र था जिसका नाम था दीपक भारद्वाज।हम हमेशा साथ-साथ ही कक्षा में बैठते थे। उसका घर भी हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था। वह अक्सर हमारे घर आ जाया करता था और हम साथ बैठकर कक्षा में मिला गृह-कार्य करते थे।कुछ दिन यह सब बड़े अच्छे-ढंग से चलता रहा ,पर अचानक एक दिन मेरे पापा को पता नहीं क्या लगा कि वे हमें अलग करने की कोशिश में लग गए ।वह जब भी घर आता तो पापाजी झूठमूठ ही कह देते, "गुड्डी घर पर नहीं है,बेटा ,आप अपने घर पर बैठकर ही होमवर्क क...