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घर में ननद की भूमिका

"वामा" हिंदी पत्रिका में छपा यह लघु लेख  मेरा ही लिखा हुआ, ब्लॉग के माध्यम से आपके सामने एक बार फिर से लाने  की यह छोटी सी कोशिश है ;इसे पढ़ कर अपने विचार जरुर बताएं । "अक्सर ऐसा सुनने में आता है कि किसी भी परिवार की बहू को यह शिकायत होती है कि अगर उस के किसी निर्णय से घर के पुरुष सहमत हो भी जाते हैं तो सास या ननद बाधक बन जाती है ,ऐसे में सास की बात को तो गंभीरता से नहीं लेना चाहिए क्योंकि सास बहू की उम्र में एक पीढ़ी का अन्तराल है ,उनके विचारों में अंतर होना स्वाभाविक ही है ,परन्तु अगर ननद अपनी भाभी को न समझे तो इस बात को ननद के हृदय में भाभी के प्रति ईर्ष्या ही कहेंगे ,क्योंकि किसी बहु की जो समस्याएँ होती हैं वह हिंदुस्तानी परिवार की प्रत्येक बहु की समस्या है और ननद भी तो किसी न किसी घर की बहु ही होती है न ।इसलिय ननद के लिए भाभी को समझना कठिन नहीं होना चाहिए । इसी प्रकार अगर प्रत्येक ननद भाभी का पक्ष लेने का निर्णय ले ले तो कड़ी दर कड़ी यह समस्या काफी हद तक हल होती चली जायेगी ,और यह कथन "नारी ही नारी की बाधक होती है",जो अक्सर दोहराया जाता है ,असत्य सिद्ध ...

स्वतंत्र भारत का पैग़ाम भारतीयों के नाम

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  आज स्वतंत्रता दिवस की 67वीं साल गिरह के मौके पर सभी भारतीयों को भारत का पैग़ाम स्वीकार हो । 1.आज अगर हमारे नेतागण आम जनता से सम्मान पाना चाहते हैं तो जाति-भेद का सहारा मत लीजिए ।इंसान की इंसानियत को महत्व दीजिए।सच्चे नेता बनिए।जनता का दिल जीतिए,और फिर चुनाव जीतिए। 2.सभी शिक्षकों व अभिभावकों से नम्र निवेदन है कि बचपन से ही बच्चों के मन में जाति के विरुद्ध  ऊँच- नीच की भावना को पनपने मत दीजिये ।यह बुराई घर से या   विद्यालय से ही पनपती है । 3.नींव मजबूत करने के लिए शिक्षाप्रद कहानियाँ तथा टीवी सीरियल जैसे "सत्यमेव जयते"दिखाने या सुनाने पर ध्यान अवश्य देना चाहिए । 4.उदाहरण के नाम पर जीते जागते उदाहरण जैसे ए .पी .जे कलाम ,किरण बेदी ,अन्ना हजारे ,अपने देश के लिए खेलने वाले खिलाडियों के उदाहरण देने पर ध्यान देना अति आवश्यक है । 
स्वर्गीय श्री सुखदेव कालिया जी की लिखी पुस्तक "जीवन -ज्योति "पूर्णतया उनके अपने निजी  अनुभवोँ का संग्रह है ।इसका कथा- प्रवाह संत महात्माओं के भक्ति -पथ की ओर अग्रसर करता है ।कुच्छ झलकियां निम्न है ।                                   अपार सत्ता का आभास            पन्द्रह अगस्त  1947 को  भारत  आजाद  हो  गया  और  दुर्भाग्य  से देश  के दो टुकड़े  हो गय। एक  हिन्दुस्तान बना  और दूसरा पाकिस्तान  के  नाम  से  जाना  जाने  लगा। उन  दिनों  जो  ख़ून  ख़राबा  हुआ  वह किसी से छिपा नहीं है ..........उस समय मुझे फिरोजपुर कालोनी के उस वृद्ध पुजारी की भविष्यवाणी बरबस स्मरण हो आई जिसमें उन्होंने दो वर्ष पूर्व ही हिंदुस्तान के बँटवारे के संकेत दिए थे ।*                                 ...

KAB JAAYEGA BACHPANA

मैं ,  विभिन्न जातियों के विभिन्न रंगों के  फूलों को पौधों को ,अपने में संजोए हुए  खड़ा हूँ  कब से इस पृथ्वी पर  मानवों के बीच । दुःख -सुख के  प्राकृतिक आवागमन में  होता नहीं विचलित कभी  और न विमुख कभी । मनुष्य की देख -रेख में  रहता हूँ मगर  विडम्बना कि  मानव मुझसे  नहीं लेता सीख । जाति भेद की नीति  वर्ग विशेष की बीथि  युगों से खड़ी है  जहाँ तहाँ  अनेक आये  समाज -सुथारक  मगर कुरीतियों ने ले लिया  और रूप नया । मैं , बागीचा हूँ  धरती की शोभा हूँ । मानव -स्वभाव पर  रोता हूँ  फूलों को रोंदता है  काँटों को समेटता है  कब जाएगा मानव  तेरा यह बचपना ।