इच्छा या तृष्णा

बलवती इच्छाएं ही तृष्णा का रूप ले लेती है।तृष्णा में भौतिक सुख समृद्धि की प्राप्ति की कामना निहित होती है । जबकि इच्छा दान पुण्य उर्ध्वगामी होने की अधिक होती है।भारतीय दर्शन के सन्दर्भ में तृष्णा का अर्थ 'प्यास, इच्छा या आकांक्षा' से है। तृष्णां, तृ मतलब तीन, इष्णा मतलब लालच, ।तीन लालच, पहला धन का लालच, दूसरा पुत्र का लालच, तीसरा सम्मान का लालच। कुछ ऐसा पाने की चाह करना जो हमारे पास नही है इच्छा कहलाती है। इच्छा किसी ऐसी वस्तु या व्यक्ति की भी हो सकती है जिसे पाना मुश्किल या कभी-कभी नामुमकिन भी होता है। इच्छा मन से उठने वाला वह प्रबल भाव है जो हमे कुछ न कुछ प्राप्त करने के लिये उत्साहित करता है। जिस चीज को पाने की इच्छा होती है उसे लक्ष्य बनाकर चलना ही सम्पूर्ण जीव जाति को जीवित रहने के लिए उत्साहित करता है। इच्छा की कोई सीमा नही होती और न ही यह कभी मन में संतोष को आने देती है। इच्छा हर व्यक्ति में अलग-अलग या एक समान हो सकती है जैसे: यदि आप अपनी कक्षा में प्रथम आना चाहते है तो हो सकता है यह इच्छा आपके सहपाठी भी रखते हों। अन्य अर्थ: कामना: मन ही मन कुछ पाने की चाह का भाव कामना कहलाता है जो इच्छा का पर्यायवाची है। किसी वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा पूरी न होने पर तृष्णा का रूप लेकर मस्तिष्क को बार बार ठक-ठक कर उस अपूर्ण इच्छा के बारे में याद दिलाती रहती है, अपूर्ण इच्छा कभी कभी जिंदगी का मकसद बन जाती है हालांकि उसके पूर्ण न होने पर कोई क्षतिपूर्ति नहीं होती,पर हमारी ज़िद बन जाती है. इसके विपरीत हमारी आवश्यकतएँ पूर्ण करना अति आवश्यक हैं क्योंकि उनके अभाव में हमारी प्रगति या उन्नति पर असर पड़ता है, इसलिए जरूरतों को पूरा करना प्रथम कर्तव्य है इच्छा हमारे लालच का प्रारूप है| हाँ, इसे वासना या आसक्ति की ओर झुकना भी कह सकते हैं, क्योंकि इसमें लालच प्रधान है |

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