संदेश

बच्चों का मनोविज्ञान

बच्चों के मनोविज्ञान को समझना अति आवश्यक है, बच्चे हैं इसलिए बच्चों की भाषा ही समझेंगे. उन्हें समझने और समझाने के लिए उनके स्तर तक उतरने की आवश्यकता है. बच्चे हमारे स्तर तक नहीं आ सकते, हम तक पहुंचने के लिए उन्हें हमारी उम्र तक पहुंँचना पड़ेगा .पर हम तो अपनी उम्र से उतर कर उनकी उम्र तक आ सकते हैं. जब हम उनके ही नज़रिये से उन्हें समझेंगे, तभी उन्हें समझाने का हमारा प्रयास सार्थक हो सकेगा.

धरती की सुरक्षा

धरती की सुरक्षा के लिए------ उठो अब अमल करो बैठकर देखने का समय निकल गया है , उदाहरण मिल चुका , केदार आपदा से। आओ पहल करें, नहीं कोई साथ ,न सही । खुद उदाहरण बन जाएँ । धरती सहन शील है इसकी सहनशीलता की परीक्षा और मत ले बंदे, प्रकृति से छड़छाड़ की तो भयंकर परिणाम भुगतना पड़ेगा , प्रकृति का पलटवार हमें ही सहना पड़ेगा । प्रकृति का पलटवार हमें ही सहना पड़ेगा।।।  -- अरुणा कालिया 

ईद मुबारक हो ,चाँद मुबारक हो

ईद मुबारक जश्न ए ईदी तमाम हिंदुस्तान को । ईद मुबारक  पैग़ाम-ए-मुहब्बत  नया चाँद,नई हसरत नया नूर ,नयी उम्मीद एकता में बाँधते आ रहे हिंदोस्तानियों को  हिंदुस्तान की तहज़ीब। दिवाली या हो ईद  कव्वाली या हो गीत। दोस्त हो या हो मीत  हर रंग में, हर ढंग में  घुल जाता हिंदुस्तानी संगीत।
**   क्षमता बढ़ानी है तो विटामिन लें। **  हाई ब्लड प्रेशर में दवाएं लेना न भूलें।     ** क्रोध एक ऐसी अग्नि है जो मनुष्य और संसार                      ,दोनों को जलाकर ख़ाक कर देती है।   

भाईचारा

भाईचारे का पाठ पढ़ जाए जो आज मिट जाए भेद रंक -राजा का आज। वसुधा से सीखो भाईचारे का पाठ एक सूत्र में बाँध रखती संसार को साथ। प्रकृति विधा ऐसी निराली संग संग चलती कहीं न रुकती दुख सुख में सदा इक सार में रहती वसुधैव कुटुम्बकम् एक ऐसा सूत्र संपूर्ण वसुधा है एक कुटुम्ब अटूट।।

बुद्धिमान मनुष्य

मनुष्य पेड़ काटता है कागज़ बनाता है और उसपर लिखता है पेड़ बचाओ,पेड़ उगाओ ।।

मैत्री भाव का साकार रूप

मानव और प्रकृति मैत्री भाव का साकार रूप प्रकृति में दिखता खूब, मानव और प्रकृति का टकराता भिन्न स्वरूप। प्रकृति में संयम भरपूर मानव दंभ में चूर।।१।। बगीचा कहे, मैं धरती की शोभा हूँ विभिन्न जातियों के , रंगों के  फूलों को , पौधों को , संजोए हुए  लिपटाए हुए , दुलारे हुए खड़ा हूँ , युगों से , पृथ्वी पर ,मानवों के बीच । दुःख -सुख के प्राकृतिक आवागमन में  होता न विचलित,न विमुख न भयभीत ।।२।। हर पौधा है अपने निश्चित स्थान पर बिना होड़ के ,बिना दौड़ के  कर्तव्यनिष्ठ भावना से ओतप्रोत हैं ,मगन हैं  अपने कर्तव्य -निर्वाह में । निर्विघ्न राह पर बढ़ता नभ छूने की चाह में।।३।। मैं बाग़ीचा हूँ मानव की देख -रेख में रहता हूँ  मगर विडम्बना ,मानव ही  मुझसे नहीं लेता सीख  समभाव मित्र सरीखी राह में स्वयं को सर्वोपरि रखता दंभ भरा उसकी  चाह में।।४।। विपरीत नीति मानव समाज में- जाति भेद ,वर्ग विशेष  युगों से खड़ी है ,जहाँ-तहाँ  अनेक आये, समाज -सुधारक , कुरीतियों ने ले लिया और रूप नया । ...