हिंदी दिवस

हिंदी-दिवस के अवसर पर स्वरचित कविता .... शीर्षक ----- हिंदी , भारत माता की बिंदी हिंदी , हिंदी , हिंदी , भारत माता के माथे की बिंदी यह जननी का श्रृंगार है , क्यों होता इसका तिरस्कार है ? भाव व्यक्त इसमें हम करते , फिर बोलने में क्यों डरते ? आओ , हम इसे अपनाएँ , भारतवर्ष की शान बढ़ाएँ , हिंदी तो मातृ भाषा है , यह कोटि - जनों की आशा है | आज़ादी इसने दिलवाई थी , तब न यह पराई थी | आज भारत में इसे क्यों दूसरी समझा जाता है ? हिंदी - भाषी को यहाँ क्यों तुच्छ माना जाता है ? हिंदी है हमारा गौरव , आओ , इसे अपनाएँ | हिंदी - दिवस को मिलकर सार्थक हम बनाएँ , हिंदी - दिवस को मिलकर सार्थक हम बनाएँ | सुरिंदर कौर

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