मित्रता का संदेसा
खुली खिड़की आई हवा
खिली रूपहली धूप में
चाँदी सा आसमाँ ।खुली खिड़की आई हवा।
व्यवस्थित हरियाली,
ओढ़े सभ्यता की बयार ,
मानुष या कोई जीवाचार,
व्यवस्थित सा अनुकरणाधार।।1।।
ज्यौं-ज्यौं ढलती
संध्या कुमारी
सिंदूरी सी आच्छादित,
सँवारे भू-नभ
धरातल अंतराल।
जड़-चेतन सभी करें,
मित्रवर व्यवहार।।2.।।
प्रकृति कहती
सभी जुड़े हैं
एक तंत्र में
इक दूजे के साथ।
मित्रता का संदेसा
ओढ़े, पुरवैया का सद्व्यवहार ।।3।।
✍अरुणा कालिया
खिली रूपहली धूप में
चाँदी सा आसमाँ ।खुली खिड़की आई हवा।
व्यवस्थित हरियाली,
ओढ़े सभ्यता की बयार ,
मानुष या कोई जीवाचार,
व्यवस्थित सा अनुकरणाधार।।1।।
ज्यौं-ज्यौं ढलती
संध्या कुमारी
सिंदूरी सी आच्छादित,
सँवारे भू-नभ
धरातल अंतराल।
जड़-चेतन सभी करें,
मित्रवर व्यवहार।।2.।।
प्रकृति कहती
सभी जुड़े हैं
एक तंत्र में
इक दूजे के साथ।
मित्रता का संदेसा
ओढ़े, पुरवैया का सद्व्यवहार ।।3।।
✍अरुणा कालिया
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