शब्दों की भीड़


शब्दों की भीड़ थी,दिशा अर्थहीन थी।
मन की उद्विग्नता पर
 निराशा की एक परत थी,
 इस पर भी मस्तिष्क
 निरन्तर प्रयासरत था
शब्दों की भीड़ से 
उपयुक्त  शब्द चुनता रहा।

चुने शब्दों से
अर्थ का प्रकाश
जब फैलने लगा,
धीरे-धीरे,
यह प्रकाश,
अर्थहीन दिशा को
 एक दिशा-निर्देश देने लगा ।
प्रकाशित मार्ग पर अब,
मंज़िल साफ-साफ नज़र आने लगी।
उद्विग्न मन से मानो
निराशा की परत छंटने लगी ।
               

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