गुरु से मिलती हैं भाग्योदय करने वाली ये 3 शक्तियां
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धर्मग्रंथों की बातें अच्छे गुण और काम को ज़िंदगी में अपनाने की सीख देती हैं। इस पर अगर गुरु का आशीर्वाद मिल जाए तो फिर मुश्किल से मुश्किल लक्ष्यों को पाना भी आसान हो जाता है। शास्त्रों में गुरु की महिमा और स्थान सर्वोपरि बताया गया है। “मोक्षमूलं गुरुकृपा” शास्त्रों की यह बात उजागर करती है कि गुरु कृपा मुक्ति तक देने वाली सिद्ध होती है।
वहीं, शास्त्रों में ही यह भी बताया गया है कलियुग में पाप कर्मों का बोलबाला होगा। आज के दौर में फैली व्यक्तिगत और सामाजिक अशांति और कलह इस बात को साबित भी करती है।
ऐसे वक्त में अच्छे गुरु का मिलना व जुड़ना ही सबसे बड़ा सौभाग्य बताया गया है। इसलिए अगर एक साधारण इंसान ज़िंदगी में शांति और सुख लाना चाहता है तो श्रद्धा के साथ ही धर्मग्रंथों में बताई गुरु चरित्र से जुड़ी 3 खास बातों पर भी जरूर विचार करें। बाद किसी धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु की शरण ले, ताकि गुरु व गुरु सेवा की श्रद्धा, निष्ठा व मर्यादा आहत न हो।
हिन्दू पंचांग के मुताबिक 12 जुलाई को गुरु भक्ति व सेवा की शुभ घड़ी गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा) ही है। जानिए, हिन्दू धर्मग्रंथ वाल्मीकि रामायण में उजागर जीवन में उतारने के लिए बेहद जरूरी गुरु के वे 3 विशेष गुण, जिनके शुभ प्रभावो से शिष्य या गुरु सेवक का भी भाग्योदय हो जाता है-
हिन्दू धर्मग्रंथ वाल्मीकि रामायण में सुग्रीव द्वारा वानर दलों को सीता खोज के लिए दिए मार्गदर्शन के प्रसंग में गुरु चरित्र में समाई ऐसी 3 शक्तियों की ओर संकेत किया गया है, जिनके प्रभाव से कोई भी शिष्य बड़ा ही बलवान, भाग्यवान व सिद्ध बन सकता है।
कोई भी व्यक्ति श्रद्धा के साथ अपने गुरु के इन 3 खास गुणों पर गौर कर, इन्हें मन, वचन व कर्म से अपनाकर मनचाही सफलता पा सकता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ वाल्मीकि रामायण के मुताबिक-
वन्दितव्यास्तत: सिद्धास्तपसा वीतकल्मषा:।
प्रष्टव्या चापि सीताया: प्रवृत्तिर्विनान्वितै:।
इसका अर्थ है- निष्पाप, सिद्ध व तपस्वियों को नमन कर विनम्रता से सीता का पता पूछना। व्यावहारिक नजरिए से इस बात में श्रेष्ठ गुरुओं की तीन विशेषताएं सामने आती है। पहली वह पापरहित हो, दूसरा स्थापित यानी कामयाब व अनुभवी हो, तीसरी तपस्वी यानी संकल्पित और संयमित हो।
ऐसे गुरु के अधीन ही शिष्य भी लक्ष्य पाने का सारा ज्ञान पाकर और जिज्ञासा को शांत कर सफलताओं को पा सकता है। ठीक, सीता की सफलतापूर्वक खोज और लंकाविजय की तरह।
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धर्मग्रंथों की बातें अच्छे गुण और काम को ज़िंदगी में अपनाने की सीख देती हैं। इस पर अगर गुरु का आशीर्वाद मिल जाए तो फिर मुश्किल से मुश्किल लक्ष्यों को पाना भी आसान हो जाता है। शास्त्रों में गुरु की महिमा और स्थान सर्वोपरि बताया गया है। “मोक्षमूलं गुरुकृपा” शास्त्रों की यह बात उजागर करती है कि गुरु कृपा मुक्ति तक देने वाली सिद्ध होती है।
वहीं, शास्त्रों में ही यह भी बताया गया है कलियुग में पाप कर्मों का बोलबाला होगा। आज के दौर में फैली व्यक्तिगत और सामाजिक अशांति और कलह इस बात को साबित भी करती है।
ऐसे वक्त में अच्छे गुरु का मिलना व जुड़ना ही सबसे बड़ा सौभाग्य बताया गया है। इसलिए अगर एक साधारण इंसान ज़िंदगी में शांति और सुख लाना चाहता है तो श्रद्धा के साथ ही धर्मग्रंथों में बताई गुरु चरित्र से जुड़ी 3 खास बातों पर भी जरूर विचार करें। बाद किसी धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु की शरण ले, ताकि गुरु व गुरु सेवा की श्रद्धा, निष्ठा व मर्यादा आहत न हो।
हिन्दू पंचांग के मुताबिक 12 जुलाई को गुरु भक्ति व सेवा की शुभ घड़ी गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ पूर्णिमा) ही है। जानिए, हिन्दू धर्मग्रंथ वाल्मीकि रामायण में उजागर जीवन में उतारने के लिए बेहद जरूरी गुरु के वे 3 विशेष गुण, जिनके शुभ प्रभावो से शिष्य या गुरु सेवक का भी भाग्योदय हो जाता है-
हिन्दू धर्मग्रंथ वाल्मीकि रामायण में सुग्रीव द्वारा वानर दलों को सीता खोज के लिए दिए मार्गदर्शन के प्रसंग में गुरु चरित्र में समाई ऐसी 3 शक्तियों की ओर संकेत किया गया है, जिनके प्रभाव से कोई भी शिष्य बड़ा ही बलवान, भाग्यवान व सिद्ध बन सकता है।
कोई भी व्यक्ति श्रद्धा के साथ अपने गुरु के इन 3 खास गुणों पर गौर कर, इन्हें मन, वचन व कर्म से अपनाकर मनचाही सफलता पा सकता है।
हिन्दू धर्मग्रंथ वाल्मीकि रामायण के मुताबिक-
वन्दितव्यास्तत: सिद्धास्तपसा वीतकल्मषा:।
प्रष्टव्या चापि सीताया: प्रवृत्तिर्विनान्वितै:।
इसका अर्थ है- निष्पाप, सिद्ध व तपस्वियों को नमन कर विनम्रता से सीता का पता पूछना। व्यावहारिक नजरिए से इस बात में श्रेष्ठ गुरुओं की तीन विशेषताएं सामने आती है। पहली वह पापरहित हो, दूसरा स्थापित यानी कामयाब व अनुभवी हो, तीसरी तपस्वी यानी संकल्पित और संयमित हो।
ऐसे गुरु के अधीन ही शिष्य भी लक्ष्य पाने का सारा ज्ञान पाकर और जिज्ञासा को शांत कर सफलताओं को पा सकता है। ठीक, सीता की सफलतापूर्वक खोज और लंकाविजय की तरह।
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