ओsम् का महत्व

ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ।
ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ।
ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ।
ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ।
भज मन ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ओsम् ।
        एक दक्षिणी ब्राह्मण  उठते-बैठते ,चलते-फिरते,निरन्तर निष्काम भाव से "ऊँ" का जप किया करते थे।उनको गाने का भी शौक़ था।इसलिए उन्होंने जप को संगीतमय बना लिया था।वे मधुर कण्ठ से गाया करते थे।वे हर समय लयबद्ध जप में तल्लीन रहते थे।एक बार एक सज्जन ने उनसे पूछा,क्या आपको इससे कोई लाभ या चमत्कार जान पड़ा है?तो उन्होंने उत्तर दिया कि और कोई चमत्कार तो नहीं देखा ,परन्तु मुझे अपने जीवन में किसी प्रकार की तंगी अथवा अशान्ति सहन नहीं करनी पड़ी।मुझे जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह समय पर सहज में ही मिल जाती है।मेरी गृहस्थी सुखपूर्वक चलती है,यही मुझे एक चमत्कार मालूम पड़ता है। 

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