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व्यवहार

हमें वही व्यवहार करना चाहिए  जो हम अपने लिए  दूसरों से चाहते हैं। तभी हम अच्छे नागरिक बन पाएंगे .     अरुणा कालिया

शब्दों की भीड़

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शब्दों की भीड़ थी,दिशा अर्थहीन थी। मन की उद्विग्नता पर  निराशा की एक परत थी,  इस पर भी मस्तिष्क  निरन्तर प्रयासरत था शब्दों की भीड़ से  उपयुक्त   शब्द चुनता रहा। चुने शब्दों से अर्थ का प्रकाश जब फैलने लगा, धीरे-धीरे, यह प्रकाश, अर्थहीन दिशा को  एक दिशा-निर्देश देने लगा । प्रकाशित मार्ग पर अब, मंज़िल साफ-साफ नज़र आने लगी। उद्विग्न मन से मानो निराशा की परत छंटने लगी ।                

मेरी पाठशाला ,

            सब पढ़ें,सब बढ़ें ,            कहते  हैं सब ,पर मूर्त रूप         देता  है कोई-कोई ।         सब चाहें,सब  सराहें,         पर  सन्मार्ग           दिखाता है कोई-कोई।         पाठशाला में  जहाँ,          जीवन जीने का          पाठ पढ़ाया जाता है,         मार्गदर्शक बन मार्ग        दिखाता है, कोई कोई।        किताबी ज्ञान और        व्यवहारिक ज्ञान में        अंतर कितना, यह भेद        बताता है कोई कोई          सब पढ़ें,सब बढ़ें  अभियान,          सभी सराहें,          मगर मार्ग पर चलना         सिखाता है, ...

शुभग्रीष्मावकाश

शुभग्रीष्मावकाश अरुणा कालिया गर्मी की ऋतु,  बारिश की ठंडी फुहार, गर्म हवा की तपिश और मेघों का गर्जनाद लेकर आया जैसे  सुखद समाचार। दुःख में सुख अंधकार में प्रकाश -सी अनुभूति दे जाता प्रकृति का अनूठा  उतार-चढ़ाव। ममत्व भरा  यह  प्रकृति का  स्पर्श, मानव में भर देता, जीवन का संचार। अठखेलियाँ करता  दुःख भुलाकर  बच्चे-सा मासूम है, मानव का संसार।