बेटी नाम की शख़्सियत
बेटी नाम ही ऐसी शख़्सियत दिल धड़कना सिखाया जिसने वह बेटी ही हो सकती है झंकृत कर दिल के तारों को प्रसन्न होना सिखाया जिसने । रिश्तों की नज़दीकियाँ क्या होती हैं समझाया जिसने । उस बेटी के दूर हो जाने की कल्पना मात्र तड़पाती है स्वार्थी होना न चाहूँ , पर स्वार्थी बन जाती हूँ । इसलिए इक बात राज़ की तुमको आज बतलाती हूँ, जब जब दूर हुई तुम हमसे, चैन नहीं तब पाया है , डरता रहता हृदय सदा, अनजाना खौफ़ सताता है। याद रखना यह बात सदा, दूर कहीं भी जाओ घर से सतर्कता अपनाना सदा। सज्जनता के भेस में दुर्जन भी हैं यहाँ-वहाँ। आशीष रहेगा साथ सदा रहो तुम जहाँ-जहाँ । घर लौट कर आना हर हाल घर पर मिलेगी पनाह सदा। घर की पहचान यही है, जिसके दरवाज़े खुले हैं सदा, जिस घर से दो आंखें झांक रही हों, बांहें फैलाए जहां मां खड़ी हो, स्वागत में तेरे हरदम डटी हो, और भाई को तेरे डांट रही हो । घर की पहचान यही है, जिसके दरवाज़े खुले हैं सदा। सक्षम हो,शिक्षित हो,आधुनिक भी हो, सतर्क होकर कुतर्क को मात देना सदा। आधुनिक हो, ...