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देववाणी

दविद्युतत्या रुचा परिश्तोभन्त्या कृपा | सोमाः शुक्रा गवाशिरः | अर्थात,सौम्य शुद्ध तथा इन्द्रियों को वश में रखने वाले उपासक जन प्रकाशभान क्रान्ति और सर्वत्र प्रशंसित सामर्थ्य से युक्त रहा करते हैं |     सरल भाषा में अर्थ  ः         जो शुद्ध और पवित्र मन रखता है,तथा इंद्रियों को भटकने से बचा लेता है, ऐसा         व्यक्ति वास्तविकता में ईश्वर का सच्चा उपासक है ,भले ही वह नियमित रूप से पूजा-पाठ करे या न करे।        ऐसा व्यक्ति समाज में चहुँ ओर ज्ञानरूपी प्रकाश को फैलाता है तथा ऐसा व्यक्ति सब ओर  से  प्रशंसा               प्राप्त करता है और सब सुविधाओं से युक्त जीवन व्यतीत करते हैं।

Bharat Bhaavna Divas

Bharat Bhavna Divas ke mauke par ek Kavita par sab ka dhyan kendrit karne ka prayas karna chahati hoon. KAB JAAYEGA BACHPANA मैं ,  विभिन्न जातियों के विभिन्न रंगों के  फूलों को पौधों को ,अपने में संजोए हुए  खड़ा हूँ  कब से इस पृथ्वी पर  मानवों के बीच । दुःख -सुख के  प्राकृतिक आवागमन में  होता नहीं विचलित कभी  और न विमुख कभी । मनुष्य की देख -रेख में  रहता हूँ मगर  विडम्बना कि  मानव मुझसे  नहीं लेता सीख । जाति भेद की नीति  वर्ग विशेष की बीथि  युगों से खड़ी है  जहाँ तहाँ  अनेक आये  समाज -सुथारक  मगर कुरीतियों ने ले लिया  और रूप नया । मैं , बागीचा हूँ  धरती की शोभा हूँ । मानव -स्वभाव पर  रोता हूँ  फूलों को रोंदता है  काँटों को समेटता है  कब जाएगा मानव  तेरा यह बचपना ।